एक वोट की कीमत: 6 साल पहले नजदीकी मुकाबले में फंसे 4 कैंडिडेट, हारने वालों पर भारी पड़ गए थे 1-1 वोट

एक वोट की कीमत तब समझ में आती है जब नजदीकी मुकाबलों में लोगों के पसंदीदा उम्मीदवार हार जाते हैं। नतीजों के बाद सिर्फ अफसोस करना बाकी रह जाता है। लद्दाख में ऐसा नतीजा आ चुका है। 

Asianet News Hindi | Published : Oct 1, 2020 2:21 PM IST / Updated: Oct 02 2020, 02:56 PM IST

नई दिल्ली। बिहार में विधानसभा (Bihar Polls 2020) चुनाव की घोषणा हो चुकी है। इस बार राज्य की 243 विधानसभा सीटों पर 7.2 करोड़ से ज्यादा वोटर मताधिकार का प्रयोग करेंगे। 2015 में 6.7 करोड़ मतदाता थे। कोरोना महामारी (Covid-19) के बीचे चुनाव कराए जा रहे हैं। इस वजह से इस बार 7 लाख हैंडसैनिटाइजर, 46 लाख मास्क, 6 लाख PPE किट्स और फेस शील्ड, 23 लाख जोड़े ग्लब्स इस्तेमाल होंगे। यह सबकुछ मतदाताओं और मतदानकर्मियों की सुरक्षा के मद्देनजर किया जा रहा है। ताकि कोरोना के खौफ में भी लोग बिना भय के मताधिकार की शक्ति का प्रयोग कर सकें। बिहार चुनाव समेत लोकतंत्र की हर प्रक्रिया में हर एक वोट की कीमत है।

एक वोट की कीमत तब समझ में आती है जब नजदीकी मुकाबलों में लोगों के पसंदीदा उम्मीदवार हार जाते हैं। नतीजों के बाद सिर्फ अफसोस करना बाकी रह जाता है। छह साल पहले 2014 में ऐसा ही अफसोस जम्मू-कश्मीर की लद्दाख लोकसभा सीट (Ladakh Lok Sabha constituency) पर भी लोगों ने किया होगा। लद्दाख का ये चुनाव इतिहास की सबसे मुश्किल चुनावों में से एक माना जाता है। 

देश का सबे बड़ा लोकसभा क्षेत्र 
लद्दाख पहले जम्मू-कश्मीर (J&K) का हिस्सा था। लेकिन अब संघशासित राज्य है। यह देश का ऐसा लोकसभा क्षेत्र भी है जो भौगोलिक रूप से सबसे बड़ा है। लद्दाख का कुल क्षेत्रफल 173,266.37 वर्ग किमी है। क्षेत्रफल के मामले में देश की यह एकमात्र सीट अमेरिका के फ्लोरिडा स्टेट से भी बड़ी है। 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के नेतृत्व में हुए चुनाव में बीजेपी (BJP) ने यहां से थुपस्तेन चेवांग (Thupstan Chhewang) को अपना उम्मीदवार बनाया था। 

 

चतुष्कोणीय मुक़ाबले में समझ आया वोट की कीमत 
2014 में यहां चतुष्कोणीय मुक़ाबला था। बीजेपी के अलावा दो निर्दलीय और कांग्रेस (Congress) मुख्य मुक़ाबले में थी। कैम्पेन से नजदीकी मुक़ाबला झलकने लगा था। बीजेपी उम्मीदवार चेवांग के सामने निर्दलीय गुलाम रजा (Ghulam Raza), निरदलीय सईद मोहम्मद काजिम (Syed Mohd Kazim) और कांग्रेस के Tsering Samphel मैदान में थे। बीजेपी उम्मीदवार ने ये चुनाव मात्र 36 वोटों से जीता था। चेवांग को 31,111 वोट मिले थे। दूसरे नंबर पर गुलाम रजा को 31,075 वोट मिले थे। 

बीजेपी ने प्रत्याशी बदला और बढ़ गया जीत का अंतर 
मजेदार यह भी है कि तीसरे और चौथे नंबर पर जो प्रत्याशी थे वो भी ज्यादा बड़े मतों के अंतर से पीछे नहीं थे। तीसरे नंबर पर सईद मोहम्मद काजिम थे जिन्हें 28,234 वोट मिले थे। चौथे नंबर पर रहे कांग्रेस उम्मीदवार को भी 26,402 वोट मिले। हालांकि 2014 में मुश्किल जीत हासिल करने वाली बीजेपी ने 2019 के चुनाव में अपना प्रत्याशी बदल दिया। इस बार पार्टी ने यहां से युवा जामयांग नामग्याल (Jamyang Tsering Namgyal) को उम्मीदवार बनाया। नामग्याल ने उम्मीद के मुताबिक 11 हजार से ज्यादा मतों से जीत दर्ज की थी। यह भी बताते चलें कि 2019 के चुनाव में लद्दाख में करीब 159,000 हजार मतदाता थे। 

बिहार में विधानसभा चुनाव के साथ ही साथ कुछ राज्यों में उपचुनाव भी हो रहे हैं। हर मतदाता को अपने मताधिकार का प्रयोग अवश्य करना चाहिए। क्योंकि मजबूत लोकतंत्र के लिए हर मतदाता को चुनाव प्रक्रिया में हिस्सा लेना चाहिए।  

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