एक वोट की कीमत: जब लालू-नीतीश की आंधी में सिर्फ 504 मतों से अपना गढ़ हार गई थी BJP

यहां के चुनावी इतिहास पर गौर करें तो कभी कांग्रेस, कभी जनता दल और कभी आरजेडी की ओर से मुस्लिम विधायक ही जीतते रहे हैं। बाद में ये सीट बीजेपी का दुर्ग बन गई। 

Asianet News Hindi | Published : Oct 7, 2020 2:03 PM IST / Updated: Oct 15 2020, 10:16 AM IST

नई दिल्ली/पटना। बिहार में विधानसभा (Bihar Polls 2020) हो रहे हैं। इस बार राज्य की 243 विधानसभा सीटों पर 7.2 करोड़ से ज्यादा वोटर मताधिकार का प्रयोग करेंगे। 2015 में 6.7 करोड़ मतदाता थे। कोरोना महामारी (Covid-19) के बीचे चुनाव कराए जा रहे हैं। इस वजह से इस बार 7 लाख हैंडसैनिटाइजर, 46 लाख मास्क, 6 लाख PPE किट्स और फेस शील्ड, 23 लाख जोड़े ग्लब्स इस्तेमाल होंगे। यह सबकुछ मतदाताओं और मतदानकर्मियों की सुरक्षा के मद्देनजर किया जा रहा है। ताकि कोरोना के खौफ में भी लोग बिना भय के मताधिकार की शक्ति का प्रयोग कर सकें। बिहार चुनाव समेत लोकतंत्र की हर प्रक्रिया में हर एक वोट की कीमत है।

2015 में बिहार की बरौली विधानसभा सीट (Barauli Vidhan Sabha constituency) पर सबकी नजरें थीं। ये सीट गोपालगंज जिले (Gopalganj district) में है। यहां के चुनावी इतिहास पर गौर करें तो कभी कांग्रेस (Congress), कभी जनता दल (JD) और कभी आरजेडी (RJD) की ओर से मुस्लिम विधायक ही जीतते रहे हैं। बाद में ये सीट बीजेपी (BJP) का दुर्ग बन गई। 1995 में मोहम्मद नेमतुल्लाह (Md. Nematullah) ने जनता दल उम्मीदवार के रूप में पहली बार यहां जीत हासिल की थी। उन्होंने बीजेपी के रामप्रवेश राय (Ram Pravesh Rai) को हराकर सीट जीती थी। बीजेपी के टिकट पर राय ने पहली बार 2000 में नेमतुल्लाह को हराकर न सिर्फ यहां अपनी हार का सिलसिला तोड़ा बल्कि लगातार चार बार जीतते रहे। इस कामयाबी की वजह से बरौली बीजेपी का गढ़ बन गई। 

ध्वस्त हो गया बीजेपी का गढ़ 
लेकिन 2015 में एक बार फिर ये सिलसिला टूट गया। दरअसल, पांच साल पहले जेडीयू महागठबंधन में छाई गई थी। इस वजह से सीट आरजेडी के खाते में आई। बीजेपी ने एक बार फिर राय पर ही भरोसा जताया। वहीं आरजेडी ने नेमतुल्लाह को मैदान में उतारा। जेडीयू (JDU) बीजेपी के अलग होने से पिछली बार बरौली में मुक़ाबला नजदीकी हो गया था। मतगणना खत्म होने के साथ बरौली में बीजेपी का गढ़ ध्वस्त हो चुका था। 

20 साल बाद फिर मिला हराने का मौका 
नेमतुल्लाह ने 20 साल बाद राय को दूसरी बार हराकर पिछली कई पराजयों का हिसाब कर लिया। बीजेपी सिर्फ 504 मत कम मिलने से ये सीट हार गई। आरजेडी के नेमतुल्लाह को 61,690 वोट मिले। रामप्रवेश राय 61,186 वोट के साथ दूसरे नंबर पर थे। बरौली पिछले साल बिहार में सबसे कम अंतर से हार-जीत वाली सीटों में शामिल थी। बरौली के नतीजे बताते हैं की कैसे कुछ मत किसी प्रत्याशी और पार्टी के गढ़ को ध्वस्त कर सकते हैं। इसलिए सभी को अपने मताधिकार का प्रयोग जरूरा करना चाहिए।  

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