2008 में परिसीमन के बाद इस विधानसभा सीट का अस्तित्व सामने आया और यहां का पहला चुनाव ही कई मायनों में ऐतिहासिक बन गया। दस साल पहले मिथिलांचल की इस सीट पर लोगों ने लोकतंत्र में एक-एक वोट की ताकत देखी थी।
दरभंगा/पटना। बिहार में विधानसभा (Bihar Polls 2020) हो रहे हैं। इस बार राज्य की 243 विधानसभा सीटों पर 7.2 करोड़ से ज्यादा वोटर मताधिकार का प्रयोग करेंगे। 2015 में 6.7 करोड़ मतदाता थे। कोरोना महामारी (Covid-19) के बीचे चुनाव कराए जा रहे हैं। इस वजह से इस बार 7 लाख हैंडसैनिटाइजर, 46 लाख मास्क, 6 लाख PPE किट्स और फेस शील्ड, 23 लाख जोड़े ग्लब्स इस्तेमाल होंगे। यह सबकुछ मतदाताओं और मतदानकर्मियों की सुरक्षा के मद्देनजर किया जा रहा है। ताकि कोरोना के खौफ में भी लोग बिना भय के मताधिकार की शक्ति का प्रयोग कर सकें। बिहार चुनाव समेत लोकतंत्र की हर प्रक्रिया में हर एक वोट की कीमत है।
बहादुरपुर, दरभंगा जिले की विधानसभा सीट है। 2008 में परिसीमन के बाद इस विधानसभा सीट का अस्तित्व सामने आया और यहां का पहला चुनाव ही कई मायनों में ऐतिहासिक बन गया। दस साल पहले मिथिलांचल की इस सीट पर लोगों ने लोकतंत्र में एक-एक वोट की ताकत देखी थी। विधानसभा सीट बनने के बाद अब तक यहां दो बार चुनाव हुए हैं। पहला चुनाव ही अबतक सबसे दिलचस्प है।
दिलचस्प था नई विधानसभा पर पहले चुनाव का उत्साह
नई विधानसभा के रूप में पहले चुनाव को लेकर बहादुरपुर में उत्साह का माहौल था। 2010 में ये सीट एनडीए में जेडीयू के पास थी। जेडीयू ने मदन सहनी को मैदान में उतारा था। जबकि उनके सामने आरजेडी से हरिनंदन यादव, कांग्रेस से मुरारी मोहन, सीपीआई एमएल से बैजनाथ यादव समेत कुल 20 प्रत्याशी मैदान में थे। तब कांग्रेस बिहार चुनाव में महागठबंधन का हिस्सा नहीं थी। कैम्पेन से ही यहां की राजनीतिक लड़ाई में सीधे जेडीयू और आरजेडी उम्मीदवार आमने-सामने थे।
कसौटी पर थे नीतीश कुमार के 5 साल
उस चुनाव में स्थानीय मुद्दों के अलावा आरजेडी के 15 साल के शासन के सामने नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए सरकार का पांच साल कसौटी पर था। लालू यादव ने सत्ता में दोबारा वापसी के लिए हर सीट पर खूब तैयारी की थी। बहादुरपुर भी उनकी योजना में शामिल थी। मुस्लिम-यादव गठजोड़ के सहारे आरजेडी को जीत का पूरा भरोसा था। पहला चुनाव होने की वजह से मतगणना से पहले तक लोग इस सीट को लेकर कोई अनुमान नहीं लगा पा रहे थे। जब मतगणना शुरू हुई तो लड़ाई का पेंच ऐसा फंसा कि कोई भी बहादुरपुर के अंतिम नतीजों को लेकर तय नहीं था। दरअसल, जेडीयू और आरजेडी उम्मीदवारों में काफी बढ़त का अंतर बहुत मामूली था जो लगातार बदल भी रहा था।
और कुछ वोटों से जेडीयू ने दर्ज की पहली जीत
2010 की मतगणना में जैसे-जैसे गिनती के राउंड खत्म हो रहे थे दोनों प्रत्याशियों की सांस अटक रही थी। सबसे बड़ा सवाल था कि अंत में बहादुरपुर की पहली जीत का ताज किस उम्मीदवार के सिर पर सजेगा? इस बात का फैसला मतगणना खत्म होने के बाद ही हुआ। आखिर में जेडीयू के मदन सहनी मात्र 643 वोट से जीतने में कामयाब हुए। सहनी को 27,320 वोट मिले। जबकि कुछ वोटों से दूसरे नंबर पर रहने वाले हरिनंदन यादव को 26, 677 वोट मिले। कांग्रेस प्रत्याशी ने 12, 444 और सीपीआई एमएल उम्मीदवार ने 6, 889 मत हासिल किए। बहादुरपुर की कसौटी में एनडीए जीत गई। और लोगों ने देखा कि कुछ भी हो जाए जब तक लोकतंत्र और चुनाव की प्रक्रिया है, हर वोट की कीमत बनी रहेगी। बताते चलें कि 2015 में जेडीयू से समझौते के बाद जब आरजेडी को ये सीट मिली तो उसने आसानी से बीजेपी को हराकर इसपर कब्जा जमा लिया। इस बार जेडीयू ने फिर मदन सहनी को यहां मैदान में उतारा है।