जब RJD ने 808 मतों से जीत लिया JDU का गढ़, यहां काम नहीं आया था नीतीश कुमार का 'सुशासन'

Published : Nov 06, 2020, 02:08 PM IST
जब RJD ने 808 मतों से जीत लिया JDU का गढ़, यहां काम नहीं आया था नीतीश कुमार का 'सुशासन'

सार

परबत्ता में सबसे ज्यादा 7 बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की है। 2010  के विधानसभा चुनाव में परबत्ता का फैसला मात्र 808 मतों से हुआ था। तब आरजेडी ने जेडीयू के मजबूत किले में सेंध लगा दी थी। 

खगड़िया/पटना। बिहार में विधानसभा (Bihar Polls 2020) हो रहे हैं। इस बार राज्य की 243 विधानसभा सीटों पर 7.2 करोड़ से ज्यादा वोटर मताधिकार का प्रयोग करेंगे। 2015 में 6.7 करोड़ मतदाता थे। कोरोना महामारी (Covid-19) के बीचे चुनाव कराए जा रहे हैं। इस वजह से इस बार 7 लाख हैंडसैनिटाइजर, 46 लाख मास्क, 6 लाख PPE किट्स और फेस शील्ड, 23 लाख जोड़े ग्लब्स इस्तेमाल होंगे। यह सबकुछ मतदाताओं और मतदानकर्मियों की सुरक्षा के मद्देनजर किया जा रहा है। ताकि कोरोना के खौफ में भी लोग बिना भय के मताधिकार की शक्ति का प्रयोग कर सकें। बिहार चुनाव समेत लोकतंत्र की हर प्रक्रिया में हर एक वोट की कीमत है।

एक-एक वोट की कीमत समझनी हो तो रामविलास पासवान के गृह जिले खगड़िया की परबत्ता विधानसभा सीट पर 2010 का नतीजा सटीक उदाहरण है। इस सीट पर सबसे ज्यादा 7 बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की है। बाद में ये जेडीयू का गढ़ बन गई। पिछले छह चुनाव में लालू यादव की आरजेडी ने भी यहां दो बार जीत हासिल की है। 2010 में परबत्ता का चुनाव इसलिए दिलचस्प बन गया क्योंकि तब यहां मात्र 808 वोट से हार-जीत का फैसला हुआ था। 

जेडीयू का गढ़ है परबत्ता 
परबत्ता सीट एनडीए में हमेशा जेडीयू के पास रही है। जेडीयू ने पहली बार यहां 2004 के चुनाव में  रामानंद प्रसाद सिंह को प्रत्याशी बनाया था। इसके बाद रामानंद ने यहां से लगातार तीन बार जीत दर्ज की थी। 2010 में भी वो मैदान में थे। उनके सामने आरजेडी ने सम्राट चौधरी और कांग्रेस ने नरेश को टिकट दिया था। कुल 10 प्रत्याशी मैदान में थे, लेकिन मुख्य मुक़ाबला आरजेडी और जेडीयू के बीच ही था। 

काम नहीं आया नीतीश का सुशासन 
सम्राट चौधरी के मैदान में होने की वजह से परबत्ता में आरजेडी काफी मजबूत नजर आ रही थी। हालांकि नीतीश के पांच साल के काम और रामानंद की यहां हैट्रिक जीत की वजह से जेडीयू प्रत्याशी के हारने का अनुमान किसी ने नहीं लगाया था। यह भी कि सम्राट इससे पहले भी रामानंद के साथ दो-दो हाथ कर हार चुके थे। 2010 में जब मतगणना शुरू हुई यहां के रुझान बिल्कुल अलग थे। लगातार जीत हासिल कर रहे जेडीयू प्रत्याशी को आरजेडी के सामने जूझते नजर आए। 

 

दरक गया जेडीयू का किला 
मतगणना आगे बढ़ने के साथ परबत्ता की लड़ाई नजदीकी होती जा रही थी। हर राउंड में जेडीयू का किला दरकता दिख रहा था। आखिर में जब नतीजों की घोषणा हुई किसी को भी एक बार भरोसा नहीं हुआ। लगातार जीत हासिल करने वाले रामानंद सिंह महज 808 वोट से सम्राट चौधरी के हाथों परबत्ता गंवा चुके थे। रामानंद को 59, 620 वोट मिले। जबकि सम्राट चौधरी को 60, 428 वोट मिला। 10 उम्मीदवारों में कांग्रेस 10,385 वोटों के साथ तीसरे नंबर पर थी। चौथे नंबर पर निर्दलीय प्रत्याशी था जिसे 2796 वोट मिले थे। ये दूसरी बात है कि 2015 के चुनाव में आरजेडी से गठबंधन होने के बाद जेडीयू के रामानंद सिंह ने यहां से बड़ी जीत हासिल की।  

2010 में परबत्ता के नतीजों ने एक बार फिर साबित किया कि लोकतंत्र में जनता के राज में सबसे बड़ी शक्ति मतदाताओं के पास है। 

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