43 साल बाद अपने बिछड़े परिवार से मिली बेटी, बेल्जियम से छठ मनाने आई थी बिहार, भाई को देखते ही पहचाना

Published : Oct 30, 2022, 08:38 AM ISTUpdated : Oct 30, 2022, 08:39 AM IST
43 साल बाद अपने बिछड़े परिवार से मिली बेटी, बेल्जियम से छठ मनाने आई थी बिहार, भाई को देखते ही पहचाना

सार

छठ पर 43 साल पहले अपने परिवार से बिछड़ गई बेटी अचानक अपने परिवार से मिल गई। उसे मुजफ्फरपुर के एक पादरी की हवेली से एक निःसंतान दंपत्ति ने गोद लिया था जो बेल्जियम में रहता था।

पटना(Bihar). बिहार में छठ पूजा का लोक महापर्व बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। बिहार की महिलाओं में छठ पूजा अको लेकर बड़ी आस्था है और वह शुक्रवार से शुरू हुआ ये त्यौहार पूरी धार्मिक आस्था के साथ बना रही हैं। इसी बीच छठ पर 43 साल पहले अपने परिवार से बिछड़ गई बेटी अचानक अपने परिवार से मिल गई। शीला के मुजफ्फरपुर के एक पादरी की हवेली से एक निःसंतान दंपत्ति ने गोद लिया था जो बेल्जियम में रहता था। बेल्जियम से वह दीवाली और छठ मनाने के बहाने अपने परिवार को ढूंढने ही मुजफ्फरपुर आई थी।

छठ पूजा के दौरान बिहार में वो घटना हुई जिसे सुनने के बाद हर कोई छठ मैया की जय-जयकार कर रहा है। 43 साल बाद छठ मैया की कृपा से एक बेटी अपने परिवार से वापस मिल गई। मुजफ्फरपुर के मंसूरपुर के चमरुआ के स्वर्गीय तूफानी पासवान की बेटी 43 साल बाद अपने परिवार से मिली तो वह फूट-फूट कर रोने लगी। वो दिवाली और छठ मनाने पटना आई थी। माता-पिता को नहीं देखने के गम के बीच बेल्जियममें रहने वाली शीला भाई-बहनों के गले लग खूब रोई। 1981 में अपनों से बिछड़ी शीला का एडॉप्शन बेल्जियम के दंपत्ति ने किया था। 

बेल्जियम में शिक्षिका है शीला 
परिवार से बिछड़ कर वह किन परिस्थितियों में चर्च पहुंची उसे खुद भी नहीं पता। वहां से पादरी उसे अपने घर ले गए और वहीं से बेल्जियम में रहने वाले एक निःसंतान दंपत्ति ने शीला को गोद ले लिया। शीला बेल्जियम में ही पली बढ़ी। शीला इस समय बेल्जियम के सरकारी स्कूल में टीचर है। उसकी शादी हो चुकी है और उसके तीन बच्चे भी हैं। शीला का पति अविन बेल्जियम में बिजनेसमैन है। 

भारतीय संस्कृति लगती थी अपनी 
तीन बच्चों के साथ अपने बचपन की तस्वीर लेकर परिवार को ढूंढने पटना आई शीला बताती है कि वह भले विदेश में पली हो, लेकिन भारतीय संस्कृति व यहां के त्योहार हमेशा अपना सा लगता था। सोशल मीडिया पर छठ की महिमा के बारे में जाना। फिर बच्चों के साथ दिवाली व छठ मनाने पटना आ गई। शीला ने पादरी की हवेली पहुंच अपनी जानकारी हासिल की। उसके आधार पर वह मुजफ्फरपुर के मंसूरपुर पहुंचीं। यहां वह अपने परिवार से मिली तो मारे खुशी के उसकी आखें भर आईं। उसे बस एक गम है कि उसके माता पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं। वह अपने भाई बहनों के साथ है और इतने सालों बाद परिवार से मिलने पर बेहद खुश है ।

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