सहरसा (बिहार): बिहार में सत्ता परिवर्तन होते ही बाहुबली नेता आनंद मोहन पावर में दिख रहे हैं। तभी तो पटना कोर्ट में पेशी के बाद वापस जेल जाने के बजाए वे पुलिस के पहरे में ही अपने घर चले गए। समर्थकों के साथ बैठक भी की। परिजनों से भी मुलाकात की। लेकिन इसकी तसवीरें वायरल होने के बाद बवाल मच गया। मामला प्रकाश में आने के बाद सहरसा जिले की एसपी लिपि सिंह ने 6 पुलिस कर्मियों को सस्पेंड कर दिया है। साथ ही पूरे मामले की जांच के आदेश भी लिपि सिंह ने दिया है। जानकारी हो कि एक कलक्टर की हत्या के मामले में बाहुबली आनंद मोहन उम्र कैद की सजा काट रहे हैं। वे सहरसा जेल में है। उनकी पत्नी और पुत्र राजद से जुड़े हैं। बेटा चेतन आनंद शिवहर से विधायक हैं।
पेशी के लिए ले जाया गया था पटना
दरअसल, कलेक्टर की हत्या मामले में बाहुबली आनंद मोहन को उम्र कैद की सजा मिली है। वे सहरसा जेल में सजा काट रहे हैं। केस के सिलसिले में ही उन्हें पेशी के लिए पुलिस के पहरे के बीच पटना कोर्ट लाया गया था। लेकिन कोर्ट में पेशी के बाद वापस सहरसा जेल ना जाकर वे अपने पाटलिपुत्रा वाले घर पहुंच गए। अपने परिवार के लोगों के साथ मिले और समर्थकों के साथ बैठक भी की। बाद में इसकी तस्वीरें वायरल हुई तो बवाल मच गया। सहरसा पुलिस भी हरकत में आई। एसपी के जांच के आदेश के बाद डीएसपी ने जांच रिपोर्ट सौंपा। जिसके बाद सहरसा की एसपी लिपि सिंह ने 6 पुलिस कर्मियों को सस्पेंड कर दिया।
इस मामले में सजा काट रहे आनंद मोहन
वर्ष 1994 में बिहार के गोपालगंज जिले के डीएम कृष्णैया की भीड़ ने पीट-पीट कर हत्या कर दी थी। उनकी हत्या कराने का आरोप आनंद मोहन पर लगा था। आरोप था कि आनंद मोहन ने भीड़ को डीएम की हत्या के लिए उकसाया था। जिसमें आनंद मोहन को जेल हो गई। वर्ष 2007 में निचली अदालत ने उन्हें मौत की सजा सुनाई। लेकिन बाद में पटना हाईकोर्ट ने उनकी मौत की सजा को उम्र कैद में बदल दिया। बाद में सुप्रिम कोर्ट ने भी इस फैसले को बरकरार रखा। आनंद मोहन ने 1990 में राजनीति में कदम रखा था। पहली बार वे 1990 के विधानसभा चुनाव में विधायक बने थे।
ऐसा रहा है राजनीतिक सफर
- 1990 में पहली बार महिषी से विधान सभा चुनाव जीत विधायक बने
- 1996 में समता पार्टी के टिकट से शिवहर से लोकसभा चुनाव जीत सांसद बने
- 1998 में राष्ट्रीय जनता पार्टी के टिकट पर शिवहर से लोकसभा चुनाव लड़ दोबारा सांसद बने
- 1999 और 2004 में शिवहर से चुनाव लड़े, लेकिन दोनों चुनाव हार गए
- 1996 और 1998 में जेल में रहते ही आनंद मोहन ने चुवान लड़ा था, जीते भी थे