Bihar Diwas 2022 : आज 110 साल का हुआ बिहार, जानिए कैसे पड़ा नाम, बुद्ध से लेकर महावीर तक गौरवशाली इतिहास

बिहार दिवस समारोह बिहार की माटी की खुशबू ,अस्मिता और उसकी पहचान का प्रतीक है। बिहारियों के लिए यह गौरव का दिन है। इस बार के समारोह का थीम जल-जीवन-हरियाली रखा गया है। आज से 24 मार्च तक समारोह का आयोजन किया जा रहा है।

Asianet News Hindi | Published : Mar 22, 2022 4:13 AM IST / Updated: Mar 22 2022, 09:44 AM IST

पटना : आज बिहार (Bihar) 110 साल का हो गया है। हर साल 22 मार्च को बिहार दिवस (Bihar Diwas 2022) मनाया जाता है। साल 1912 में इसी दिन बंगाल प्रेसिडेंसी (Bengal Presidency) से अलग होकर बिहार राज्य बना था। उस समय ओडिशा (Odisha) भी बिहार का ही हिस्सा हुआ करता था। 1936 में बिहार और ओडिशा अलग-अलग राज्य बने। आज बिहार दिवस पर राज्य में तीन दिवसीय समारोह का आयोजन होने जा रहा है। पटना के गांधी मैदान में होने जा रहे इस समारोह का उद्घाटन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) करेंगे। इस मौके पर आइए जानते हैं बिहार के गौरवशाली इतिहास के बारें में..

कैसे अस्तित्व में आया, कैसे पड़ा नाम
बहुत ही कम लोग ये जानते होंगे कि आखिर इस राज्य का नाम बिहार कैसे और कब पड़ा। इतिहासकारों के मुताबिक बिहार का नाम बौद्ध विहारों के विहार शब्द से हुआ है। विहार के बजाय इसे बिहार से संबोधित किया जाता है। बिहार शब्द संस्कृत और पाली शब्द विहार यानी मठ से बना। बिहार बौद्ध संस्कृति का जन्म स्थान है, जिस वजह से इस राज्य का नाम पहले विहार और उससे बिहार बना। बिहार को पहले मगध नाम से जाना जाता था। बिहार की राजधानी पटना का नाम पहले पाटलिपुत्र था। यह क्षेत्र गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों के उपजाऊ मैदानों में बसा है। साल 1912 में बंगाल का विभाजन के बाद बिहार नाम का राज्य स्थापित हुआ था, जिसके बाद ये राज्य अस्तित्व में आया।

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बिहार का गौरवशाली इतिहास
हिंदु पुराणों के अनुसार माता सीता का जन्म भी बिहार में हुआ। इसी राज्य में भगवान राम और माता सीता का मिलन भी हुआ। बिहार से ही बुद्ध और जैन धर्म की उत्पत्ति हुई। इसी राज्य में भगवान बुद्ध (Gautama Buddha) और महावीर (Mahavira) का जन्म हुआ। बिहार में ही दुनिया के सबसे पुराना विश्वविद्यालय नालंदा यूनिवर्सिटी (Nalanda University) है। 12वीं शताब्दी के बाद इस खूबसूरत स्थान के साथ तोड़-फोड़ कर नुकसान पहुंचाया गया। इस स्थान के खंडहर हो जाने के बावजूद साल 2016 में इस स्थान को यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज (UNESCO World Heritage) में शामिल किया गया। विश्व प्रसिद्ध गणितज्ञ आर्यभट (Aryabhata) भी बिहार से थे। कामसूत्र किताब लिखने वाले प्रसिद्ध दार्शनिक वात्स्यायन (Vatsyāyana) भी बिहार से ही थे। सिखों के 10वें गुरु गुरु गोबिंद सिंह (Guru Gobind Singh) का जन्म भी बिहार में हुआ। हरमिंदर तख्त यानी पटना साहिब पटना में है। बिहार के वैशाली जिले को दुनिया का पहला गणतंत्र माना जाता है। भारत के प्रसिद्ध सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य (Chandragupta Maurya), विक्रमादित्य (Vikramaditya) और सम्राट अशोक (Ashoka) भी बिहार से ही है।

बिहार दिवस मनाने के पीछे का इतिहास
22 अक्टूबर, 1764 को बक्सर का युद्ध (Battle of Buxar) हेक्टर मुनरो के नेतृत्व में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना और बंगाल के नवाब, अवध के नवाब, और मुगल राजा शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना के बीच में लड़ा गया। इस लड़ाई में ईस्ट इंडिया कंपनी की जीत हुई। इस हार के बाद मुगलों और नवाबों ने अपना नियंत्रण खो दिया और दीवानी के अनुसार ईस्ट इंडिया कंपनी को राजस्व के संग्रह और प्रबंधन का अधिकार मिल गया। उस समय बंगाल प्रेसीडेंसी में पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, उड़ीसा और बांग्लादेश का वर्तमान इलाका शामिल था। फिर जब 1911 में दिल्ली को राजधानी बनाया गया। 21 मार्च, 1912 को, थॉमस गिब्सन कारमाइकल ने बंगाल के नए गवर्नर का पद संभाला और ऐलान कर दिया कि अगले दिन, 22 मार्च से बंगाल प्रेसीडेंसी को बंगाल, उड़ीसा, बिहार और असम में विभाजित किया जाएगा। तभी से 22 मार्च को बिहार दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

किसने शुरू ही बिहार दिवस मनाने की परंपरा
भले ही साल 1912 से बिहार का अस्तित्व एक अलग राज्य के तौर पर बन चुका था, लेकिन बिहार दिवस मनाने की परंपरा की शुरुआत मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने की। सत्ता संभालने के पांच साल के बाद ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पहल की और साल 2010 में पहली बार बिहार दिवस का आयोजन किया। इस आयोजन से बिहार के लोगों को जानने का मौका मिला कि बिहार का इतिहास कितना गौरवशाली समृद्ध है। अब हर साल तीन दिवसीय कार्यक्रम होता है। जिसमें बड़ी-बड़ी हस्तियां शामिल होती हैं।

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