सार
स्थापना से लेकर अब तक के सफर में उत्तराखंड ने सफलता के कई मुकाम हासिल किए। कई चुनौतियों का सामना किया। कुछ में सफलता हाथ लगी और कुछ में संघर्ष करने और नई राह तलाश करने का दौर जारी है।
देहरादून : आज उत्तराखंड (uttarakhand) 21 साल का हो गया। एक युवा की तरह ही देवभूमि अब अपने 21वें स्थापना दिवस पर उत्साह से भरपूर है, नई ऊर्चा से लबरेज है और नई चुनौतियों का सामना करने को तैयार खड़ा है। स्थापना से लेकर अब तक के सफर में उत्तराखंड ने सफलता के कई मुकाम हासिल किए। कई चुनौतियों का सामना किया। कुछ में सफलता हाथ लगी और कुछ में संघर्ष करने और नई राह तलाश करने का दौर जारी है। आंदोलन की आग में तपकर 9 नवंबर, 2000 को राज्य का जन्म हुआ था, जो आज तपकर कुंदन हो है। 21वें स्थापना दिवस पर जानिए अब तक का सफर और इससे जुड़ी रोचक बातें...
साल 2000 से सफर की शुरुआत
साल 2000 से जिस सफर की शुरुआत हुई वह अब 21 साल की यात्रा पूरी कर चुकी है। राज्य गठन के दौर में जन्मी एक पूरी पीढ़ी जवान हो चुकी है। इस सफर में उत्तराखंड कभी सिर उठाकर खड़ा हुआ और कभी टूटा और बिखरा भी लेकिन हार नहीं मानी और फिर उठ खड़ा हुआ। 21 साल के कालखंड में उत्तराखंड ने कई बाधाओं के साथ अपना सफर तय किया। गठन के साथ राजनीतिक अस्थिरता रही तो सफर के बीच में हुई सबसे बड़ी हिमालयन सुनामी का सामना किया। प्रकृति की मार से रोजाना दोचार हुए तो पलायन की पीड़ा भी सही। लेकिन यंग उत्तराखंड ने अब अपनी रफ्तार पकड़ ली है
1897 में पहली बार हुई थी अलग राज्य की मांग
उत्तराखंड को एक अलग पहाड़ी राज्य बनाने के लिए कई दशकों तक संघर्ष करना पड़ा। पहली बार पहाड़ी क्षेत्र की तरफ से ही पहाड़ी राज्य बनाने की मांग हुई थी। 1897 में सबसे पहले अलग राज्य की मांग उठी थी। उस दौरान पहाड़ी क्षेत्र के लोगों ने तत्कालीन महारानी को बधाई संदेश भेजा था। इस संदेश के साथ इस क्षेत्र के सांस्कृतिक और पर्यावरणीय आवश्यकताओं के अनुरूप एक अलग पहाड़ी राज्य बनाने की मांग भी की गई थी।
पं. जवाहरलाल नेहरू ने किया था समर्थन
साल 1928 में कांग्रेस के मंच पर अलग पहाड़ी राज्य बनने की मांग रखी गयी थी। यही नहीं साल 1938 में श्रीनगर गढ़वाल में आयोजित कांग्रेस (congress) के अधिवेशन में शामिल हुए पंडित जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) ने भी अलग पहाड़ी राज्य बनाने का समर्थन किया था। इसके बाद भी जब अलग राज्य नहीं बना तो साल 1946 में कुमाऊं के बद्रीदत्त पांडेय ने एक अलग प्रशासनिक इकाई के रूप में गठन की मांग की।
साल 1979 में तेज हुआ संघर्ष
साल 1950 से ही पहाड़ी क्षेत्र एक अलग पहाड़ी राज्य की मांग को लेकर हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के साथ मिलकर 'पर्वतीय जन विकास समिति' के माध्यम से संघर्ष शुरू हुआ। साल 1979 में अलग पहाड़ी राज्य की मांग को लेकर क्षेत्रीय पार्टी उत्तराखंड क्रांति दल का गठन हुआ। जिसके बाद पहाड़ी राज्य बनाने की मांग ने तूल पकड़ा और संघर्ष तेज हो गया। इसके बाद 1994 में अलग राज्य बनाने की मांग को और गति मिली। तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) ने 'कौशिक समिति' का गठन किया। इसके बाद 9 नवंबर 2000 में एक अलग पहाड़ी राज्य बना।
21 साल, 21 रोचक बातें
1. उत्तराखंड के प्रमुख धार्मिक स्थल केदारनाथ (Kedarnath), ऋषिकेश (Rishikesh), बद्रीनाथ (Badrinath), गंगोत्री, यमुनोत्री, उत्तरकाशी, देवप्रयाग, पंच प्रयाग प्रमुख हैं। केदारनाथ चार धाम की यात्रा का महत्वपूर्ण हिस्सा है। अप्रैल से नवंबर महीने के बीच ही यहां के कपाट खुलते हैं। पिछले कुछ सालों में युवाओं में केदरनाथ जाने का क्रेज बहुत अधिक बढ़ गया है।
2. गंगा नदी उत्तराखंड का प्रतीक मानी जाती है। वहीं राज्य पशु हिमालयन कस्तूरी प्रिय है, हिमालयन मोनाल है, राज्य पेड़ बुरश है और राज्य फूल ब्रह्म कमल है।
3. दक्षिण-पूर्व में बसा ऋषिकेश धार्मिक स्थानों में से प्रमुख है। गंगा मैया के किनारे बस यह तट पवित्र स्थानों में से एक है। यह स्थान एडवेंचर गतिविधियों के साथ ही अध्यात्म की दृष्टि से बहुत सुखदाई स्थान है। ऋषिकेश को योग की राजधानी भी कहा जाता है। कहते हैं यहां पर ध्यान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
4. हर की पौड़ी हरिद्वार में गंगा घाट पर हर दिन सूर्यास्त के बाद गंगा आरती होती है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु घाट पर इकट्ठा होते हैं।
5. नैनीताल में मौजूद जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान भारत का सबसे पुराना राष्ट्रीय उद्यान है। यह 1000 साल पुराना है।
6. 1970 में हुए चिपको आंदोलन सबसे अधिक चर्चा में रहा। एक विशेष समूह ने खासकर महिलाएं पेड़ों की रक्षा के लिए पेड़ों के गले लग गई थीं।
7. टिहरी बांध भागीरथी नदी पर बना हुआ है। जो भारत का सबसे ऊंचा बांध है। यहां से पैदा की जाने वाली बिजली पंजाब, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, हरियाणा, दिल्ली तक वितरित की जाती है।
8. उत्तराखंड राज्य का सबसे प्रमुख त्योहार कुंभ मेला है। साथ ही चमोली का गौचर मेला, बागेश्वर का उत्तरायणी, पूर्णगिरी मेला, नंदा देवी राज जाट यात्रा प्रमुख है।
9. उत्तराखंड में 2 विधानसभा भवन हैं एक देहरादून में और दूसरा भराडीसैंण, गैरसैंण में. और संभवतः यह अकेला राज्य है जिसकी दो विधानसभा भवन के बावजूद एक भी स्थाई राजधानी नहीं है।
10. जिन चक्रवर्ती सम्राट भरत के नाम पर देश का नाम भारत पड़ा उनका जन्म कण्वाश्रम, पौड़ी में हुआ था।
11. ऋग्वेद में उत्तराखंड क्षेत्र को देवभूमि और मनीषियों की पूर्ण भूमि कहा गया है।
12. भगवान राम ने अपने अंतिम समय में देवप्रयाग में तपस्या की थी।
13. उत्तराखंड पर शासन करने वाली प्रथम राजनीतिक शक्ति थी कुणिन्द शासक।
14. कौसानी को महात्मा गांधी ने भारत का स्विट्जरलैंड कहा था।
15. ऋषिकेश में गंगा पर स्थित राम व लक्ष्मण झूला पुल देहरादून और पौड़ी जिले को जोड़ता है।
16. एशिया के सबसे बड़े कागज उद्योग समूह सेंचुरी पेपर एण्ड पल्प बोर्ड की मिलें लालकुआं में हैं।
17. राज्य का प्रथम समाचार पत्र (पाक्षिक) मसूरी से अंग्रेजी में 1842 में निकलने वाला द हिल्स था।
18. भारत का प्रथम कृषि विश्वविद्यालय गोविंद वल्लभ पंत कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय पंतनगर (ऊधमसिंह नगर) में है।
19. एशिया का दूसरा सर्वाधिक ऊंचाई पर स्थित स्टेडियम है पौड़ी का रांसी स्टेडियम है।
20. भारत का सर्वाधिक खेल मैदान वाला कैम्पस- रॉयल इंडियन मिलिट्री कॉलेज देहरादून में है। इसमें 7 फ़ुटबॉल मैदान, 3 क्रिकेट मैदान, 3 स्क्वैश कोर्ट, 3 बास्केटबाल मैदान और एक जिमनास्टिक सेंटर है।
21. भारत का सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र (मरणोपरांत) सबसे पहले उत्तराखंड के कुमाऊं रेजिमेंट के मेजर सोमनाथ शर्मा को (मरणोपरांत) दिया गया था।
कई चुनौतियां जिससे पार पाना है
ऐसा नहीं है कि उत्तराखंड में सबकुछ अच्छा हो रहा है। सब कुछ बदल गया है। एक राज्य के तौर पर अभी बहुत सी चुनौतियां हैं, जिनसे पार पाना है। राज्य में शिक्षा के क्षेत्र में सुधार की जरूरत है। इन चुनौतियों में प्रमुख हैं...
- रोजगार की कमी को दूर करना
- पर्वतीय क्षेत्र और मैदानी क्षेत्रों के बीच की विषमता की खाई को कम करना।
- गांवों से हो रहे पलायन को रोकना और उन्हें फिर से आबाद करना।
- मौसम के बदलाव का सामना करने को कारगर रणनीति पर काम करना।
- राज्य के बजट का बेहतर प्रबंधन, सरकारी खर्च पर अंकुश और राजस्व के स्रोत बढ़ाना।
- पर्वतीय और मैदानी इलाकों के दुर्गम क्षेत्रों में बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य की व्यवस्था करना।
- लोगों की भावनाओं के अनुसार स्थायी राजधानी की तलाश।
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