बिहार में बंद है शराब, फिर कैसे इसे पीने से हुई इतने लोगों की मौत, जानिए क्या है इसके पीछे का पूरा खेल...

बिहार में पांच अप्रैल 2016 से पूर्ण शराबबंदी लागू है, लेकिन महाराष्ट्र , तेलंगाना और गोवा की तुलना में बिहार में शराब की खपत आज भी ज्यादा है। आंकड़े बताते हैं कि बिहार के शहरी क्षेत्र की महिलाएं भी शराब की शौकीन हैं। 

Asianet News Hindi | Published : Nov 4, 2021 10:50 AM IST / Updated: Nov 07 2021, 03:56 PM IST

पटना :  कहने को तो बिहार (Bihar) में शराबबंदी है लेकिन ऐसा कहीं भी दिखाई नहीं दे रहा। ड्राई स्टेट में जहरीली शराब पीने से मौत का सिलसिला बंद होने का नाम नहीं ले रहा है। सूबे में दिवाली के मौके पर जहरीले शराब का ऐसा कहर देखने को मिला कि कई परिवार अपनों को खोकर कराह रहे हैं और सरकार की मंशा पर सवाल है। पहले पश्चिम चंपारण (Pashchim Champaran) इसके बाद वैशाली (Vaishali) फिर मुजफ्फरपुर (Muzaffarpur) और अब गोपालगंज (Gopalganj)। अगली बारी किस जिले की है, कहा नहीं जा सकता। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि शराबबंदी वाले बिहार में ये क्या हो रहा है? जब राज्य में पूरी तरह शराब पर बैन है तो फिर शराब या जहरीली शराब मिल कैसे रहा? 

शराबबंदी वाले बिहार में ये क्या हो रहा?
हाल के महीनों में राज्य के चार जिलों में जहरीली शराब से कई लोगों की मौत हो चुकी है। पहले पश्चिम चंपारण फिर वैशाली इसके बाद मुजफ्फरपुर और अब गोपालगंज में जहरीली शराब से लोगों की मौत हुई है। इसके पहले मार्च महीने में नवादा में भी 15 से अधिक लोगों की मौत जहरीली शराब पीने से हो गई थी। दो जिलों में बीते दो दिनों में 21 लोगों की मौत हो गई है। इन 21 परिवारों में खुशी बजाए मातम की चीखें सुनाई दे रही हैं। शुरूआती जांच में मौत की वजह जहरीली शराब पीने से बताई जा रही है। इस घटना के बाद से पुलिस-प्रशासन में हड़कंप मच गया है। मौके पर अधिकारी पहुंच गए हैं।

क्या है बिहार की पूर्ण शराबबंदी का सच?
बिहार में पांच अप्रैल 2016 से पूर्ण शराबबंदी लागू है, लेकिन महाराष्ट्र (Maharashtra), तेलंगाना (Telangana) और गोवा (Goa) की तुलना में बिहार में शराब की खपत आज भी ज्यादा है। आंकड़े बताते हैं कि बिहार के शहरी क्षेत्र की महिलाएं भी शराब की शौकीन हैं। शराबबंदी से पहले बिहार में शराब की करीब 6 हजार दुकानें थीं और सरकार के खजाने में इससे करीब डेढ़ हजार करोड़ रुपया आता था। इसके बाद 5 अप्रैल, 2016 को बिहार देश का ऐसा पांचवां राज्य बन गया जहां शराब पीने और जमा करने पर बैन लग गया।

कब कहां कितनी मौत?

शराबबंदी तब से अब तक

2018 में ये बदलाव हुए

शराबबंदी के बाद कितना असर
बिहार में खुलेआम शराब बिकनी बंद हो गई लेकिन पड़ोसी देश नेपाल (nepal) और फिर दूसरे राज्यों जैसे यूपी और झारखंड (jharkhand) से इनकी पूर्ति होने लगी। पड़ोस के राज्यों से सटे लोग केवल पीने के लिए दो-तीन घंटे के सफर से नहीं हिचकते। चोरी-छिपे शराब को राज्य में लाने का खेल भी खूब होने लगा। एक पूरा नेटवर्क तैयार हो गया है जो डिमांड पूरी करने लगा। राज्य में पंचायत तक शराब माफियाओं की पैठ है। शराब की अवैध भट्ठियां हैं। देसी से विदेशी तक शराब की होम डिलीवरी है। कानून को लागू करनेवाले के माफिया से मिले होने के आरोप भी लगतेरहे हैं। पैसे के दम पर शराब सिंडिकेट बोली लगाने लगे। आरोप लगे कि सब कुछ पता रहते हुए भी ऊपर से लेकर नीचे तक सभी चुप हैं। माफियाओं को किसी का डर नहीं है। घूस लेने वाले हैं। घूस देनेवाले हैं। शराब पकड़ी जाती है। शराब बेची जाती है। शराब के गोदाम हैं। शराब के रिटेलर हैं। शराब के सप्लायर हैं। उत्पाद विभाग है। पुलिस है। नाकेबंदी है। सभी बेड़ों को पार कर शराब गांवों तक पहुंचता है।

किसके जिम्मे शराबबंदी
लोगों तक शराब न पहुंचे इसके लिए बकायदा मंत्रालय है। इसके मंत्री, IPS ऑफिसर रहे सुनील कुमार हैं। मंत्रालय में कई अफसर की अहम जिम्मेदारी मिली है। अपर मुख्य सचिव हैं। एक्साइज कमिश्नर हैं। इसके बाद दो-दो ज्वाइंट सेक्रेटरी और डिप्युटी कमिश्नर भी हैं। आधा दर्जन से ज्यादा कमिश्नर हैं। राज्य के 38 जिलों में 90 उत्पाद निरीक्षक हैं। एक हजार से ज्यादा थाने हैं। हजारों पुलिसवाले हैं। लेकिन शराबबंदी फेल दिखाई दे रही है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (nitish kumar) ने 5 साल पहले शराबबंदी लागू करने का ब्लूप्रिंट तैयार किया था, वो भी फेल दिख रहे हैं।

अब तक की कार्रवाई
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक कार्यक्रम में जानकारी देते हुए एक आंकड़ा पेश किया था, जिसके मुताबिक अप्रैल 2016 से लेकर जनवरी 2021 तक शराबबंदी से संबंधित 2 लाख 55 हजार 111 मामले दर्ज किए गए हैं। बिहार के सीमावर्ती और नेपाल के इलाकों में 5,401 शराब कारोबारियों को गिरफ्तार किया गया। शराब से जुड़े मामलों 37 हजार 484 गाड़‍ियां जब्त की गईं। 3 हजार 482 गाड़‍ियां नीलाम की गई हैं। मद्य निषेध इकाई द्वारा असम, पंजाब और हरियाणा जाकर बड़े कारोबारियों को गिरफ्तार किया गया। शराबबंदी कानून के बाद अब शराब पीने और बेचने वालों को मिला कर कुल तीन करोड़ के लगभग का जुर्माना लगाया जा चुका है। इसमें शराब पीने वालों से एक करोड़ 33 लाख की जुर्माना वसूली हुई है, जबकि शराब बेचने वाले से एक करोड़ 51 लाख चार हजार रुपये के जुर्माना की वसूली की जा चुकी है। वहीं, शराब पीने वाले 195 लोगों को और शराब बेचने वाले 131 लोगों को सजा दी जा चुकी है।

शहरी-ग्रामीण क्षेत्रों में महाराष्ट्र से ज्यादा खपत
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS), 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक ड्राई स्टेट होने के बावजूद बिहार में महाराष्ट्र से ज्यादा लोग शराब पी रहे हैं। आंकड़े बताते हैं कि बिहार में 15.5 प्रतिशत पुरुष शराब का सेवन करते है। महाराष्ट्र में शराब प्रतिबंधित नहीं है लेकिन शराब पीने वाले पुरुषों की तादाद 13.9 फीसदी ही है। अगर शहर और गांव के परिप्रेक्ष्य में देखें तो बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में 15.8 प्रतिशत और शहरी इलाकों में 14 फीसदी लोग शराब पीते हैं। इसी तरह महाराष्ट्र के शहरी क्षेत्र में 13 प्रतिशत और ग्रामीण इलाकों में 14.7 फीसदी आबादी शराब का सेवन करती है। महिलाओं के मामले में बिहार के शहरी इलाके की 0.5 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्रों की 0.4 फीसदी महिलाएं शराब पीती हैं। महाराष्ट्र के लिए यह आंकड़ा शहरी इलाके में 0.3 प्रतिशत और ग्रामीणों में 0.5 फीसदी है। शराबबंदी के बावजूद बिहार में शराब उपलब्ध है। यह बात भी सच है कि लोगों को देसी या विदेशी शराब के लिए दो या तीन गुनी ज्यादा कीमत चुकानी पड़ती है।

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