देश के सबसे अमीर राज्यसभा सांसद किंग महेंद्र नहीं रहे, जानें कैसे गरीबी, बेरोजगारी से तंग आकर भाग गए थे मुंबई

Published : Dec 27, 2021, 11:22 AM IST
देश के सबसे अमीर राज्यसभा सांसद किंग महेंद्र नहीं रहे, जानें कैसे गरीबी, बेरोजगारी से तंग आकर भाग गए थे मुंबई

सार

किंग महेंद्र पहली बार 1980 में कांग्रेस से लोकसभा का चुनाव लड़े और जीते थे। इसके बाद जनता दल से जुड़े। 1985 में पहली बार राज्‍यसभा सदस्‍य बने। बाद में राजद से राज्‍यसभा भेजे गए। इसके बद वे जनता दल यूनाइटेड में शामिल हो गए और नीतीश कुमार ने उन्‍हें लगातार 3 बार राज्‍यसभा भेजा। किंग महेंद्र राज्यसभा में खासे लोकप्रिय और चर्चित थे। 

पटना। बिहार में जदयू (JDU) के राज्यसभा सांसद महेंद्र प्रसाद (Mahendra Prasad) उर्फ किंग महेंद्र (King Mahendra) 81 साल की उम्र में निधन हो गया। उन्होंने रविवार देर रात 12:30 बजे अंतिम सांस लीं। वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे। किंग महेंद्र का जन्म 1940 में हुआ था। वे देश के सबसे अमीर सांसदों में से एक थे। उनकी संपत्ति करीब 4 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा है। किंग महेंद्र की अरिस्टो फार्मास्यूटिकल और माप्रा लैबोरेटरीज प्रा. लि. के नाम से दो दवा कंपनियां हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) ने शोक जताया है और श्रद्धांजलि दी है।

किंग महेंद्र पहली बार 1980 में कांग्रेस से लोकसभा का चुनाव लड़े और जीते थे। इसके बाद जनता दल से जुड़े। 1985 में पहली बार राज्‍यसभा सदस्‍य बने। बाद में राजद से राज्‍यसभा भेजे गए। इसके बद वे जनता दल यूनाइटेड में शामिल हो गए और नीतीश कुमार ने उन्‍हें लगातार 3 बार राज्‍यसभा भेजा। किंग महेंद्र राज्यसभा में खासे लोकप्रिय और चर्चित थे। उन्होंने खुद एक इंटरव्यू में कहा था- ‘अगर राज्यसभा में एक ही सीट खाली होती, तो भी मैं ही चुना जाता।’ किंग महेंद्र की जिंदगी एक फिल्मी कहानी की तरह है। एक गरीब और किसान के घर में जन्म लिया। बेरोजगारी से इतने तंग आए कि घर छोड़कर मुंबई भाग गए थे। 

ऐसा रही किंग महेंद्र की जिंदगी...
किंग महेंद्र ने जहानाबाद से करीब 17 किलोमीटर दूर गोविंदपुर गांव में जन्म लिया। पिता वासुदेव सिंह भूमिहार थे और साधारण किसान थे। महेंद्र ने पटना कॉलेज से अर्थशास्त्र में BA किया। इसके बाद नौकरी नहीं लगी तो वे गांव पहुंच गए। आर्थिक हालात से काफी परेशान रहे। घर की स्थिति भी कमजोर थी। किंग महेंद्र बताते थे कि 1964 में मुफलिसी के वक्त एक साधु मिले। उन्होंने एक पुड़िया दी और कहा कि इसे नदी किनारे जाकर सपरिवार खा लेना। सारा दुख दूर भाग जाएगा। महेंद्र ने घर के लोगों को नदी किनारे ले जाकर पुड़िया दे दी और खुद भी खा ली, इसमें परिवार के दो लोगों की मौत हो गई। जब उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिली तो वे गांव छोड़कर मुंबई चले गए। 

जब गए तो कुछ नहीं था, लौटे तो किंग बनकर
महेंद्र के मित्र रहे राजाराम शर्मा बताते हैं कि हादसे के बाद जब महेंद्र गांव छोड़कर गए तो उनके पास कुछ भी नहीं था, लेकिन जब लौटे तो किंग बनकर। वे एक छोटी दवा कंपनी में पहले साझेदार बने, फिर बाद में 1971 में 31 साल की उम्र में ही खुद की अपनी कंपनी बना ली। ग्रेजुएशन के बाद शर्मा ओकरी हाइस्कूल में टीचर बन गए थे। महेंद्र को भी बेरोजगार देखकर कहा कि आप भी शिक्षक बन जाओ। तब महेंद्र ने कहा था कि मर जाना पसंद करूंगा, पर नौकरी नहीं करूंगा।

16 साल लौटे गांव और लोकसभा सांसद बने
16 साल बाद महेंद्र जहानाबाद लौटे और 1980 में लोकसभा चुनाव लड़ा। पहली बार जहानाबाद की सड़कों पर चुनाव में एक साथ इतनी गाड़ियां और प्रचारकों को देखा गया था। इस चमक ने लोगों के मन में महेंद्र की छवि किंग वाली बना दी। बाद में उन्होंने ओकारी (जहानाबाद) में एक कॉलेज शुरू किया। महेंद्र 1984 का लोकसभा चुनाव हार गए थे। लेकिन, राजीव गांधी के करीबी होने के चलते राज्यसभा भेजे गए। उसके बाद लगातार राज्यसभा सदस्य रहे। अभी सातवीं बार राज्यसभा सांसद थे।  

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