यह कहानी पटना की एक झुग्गी बस्ती में रहने वाले युवक जावेद की है। कुछ समय पहले तक जावेद अंडे का ठेला लगाता था। लेकिन पढ़-लिखकर कुछ बनने के जज्बे ने उसे एक कामयाब इंसान बना दिया। आज वो एक मल्टीनेशनल कंपनी में इंजीनियर है।
पटना. प्रधानमंत्री मोदी के बारे में तो आपने सुना ही होगा कि वे कभी अपने गृहनगर वडनगर(गुजरात) के रेलवे स्टेशन पर चाय की दुकान लगाया करता थे। लेकिन कुछ अलग करने के जज्बे ने उन्हें पहले सीएम और फिर पीएम की कुर्सी तक पहुंचा दिया। ऐसा ही जज्बा पटना के जावेद में भी दिखाई दिया। पटना की पाटलिपुत्र मोहल्ले की झुग्गी बस्ती में रहने वाले जावेद एक समय सड़क किनारे अंडे का ठेला लगाते थे। उनके जज्बे को देखकर एक संस्था उनकी मदद को आगे आई। इसके बाद जावेद को आइटीआई में दाखिला मिला। आज वे एक मल्टीनेशनल कंपनी में इंजीनियर हैं।
जावेद बताते हैं कि उनकी कई लोगों ने मदद की। इसके बाद उन्हें लोयला स्कूल में पढ़ने का मौका मिला। यहां से उनकी किस्मत बदलना शुरू हुई। जावेद विशेषतौर पर दो लोगों का नाम लेना नहीं भूलते। वे कहते हैं कि रहमानी सुपर-30 और कन्हैया सिंह की मदद से ही वे इंजीनियरिंग के लिए संयुक्त प्रवेश परीक्षा(ज्वाइंट एंट्रेंस एग्जामिनेशन-JEE) में बैठने का मौका मिला। जावेद अभी मुंबई की एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करते हैं।
लोयला स्कूल का बड़ा योगदान..
जावेद के मुताबिक, वे अपने पिता जाकिर आलम के साथ लोयला स्कूल के सामने अंडे का ठेला लगाते थे। एक दिन लोयला स्कूल के मालिक ब्रदर जेम्स से उनकी बातचीत हुई। जेम्स उससे बहुत प्रभावित हुए और अपने स्कूल में पढ़ने की पेशकश कर दी। जेम्स ब्रदर ने जावेद की पढ़ाई का पूरा खर्चा उठाया। ब्रदर जेम्स अभी रोम में हैं। हालांकि वे मानते हैं कि जावेद अपनी लगन और मेहनत से इस मुकाम तक पहुंचा। उन्होंने तो बस हेल्प की।
जावेद बताते हैं कि JEE एग्जाम के ठीक पहले उसकी तबीयत खराब हो गई थी। तब लगा था कि शायद वो एग्जाम नहीं दे पाए। हालांकि टीचर कन्हैया सिंह ने उसका हौसला बढ़ाया और वो सफल हुआ। जावेद को आइआईटी-कानपुर में मैथेमेटिक्स इन कम्प्यूटिंग में एडमिशन मिला था। वहीं से मल्टीनेशनल कंपनी में प्लेसमेंट मिला।