
पटना। भारतीय न्याय व्यवस्था में सजा के रेयरेस्ट मामलों में फांसी की सजा दी जाती है। फांसी की सजा मिलने के बाद दोषी ऊपरी अदालत में अपील करता है। फिर वहां सुनवाई होती है। यदि ऊपरी अदालत भी फांसी की सजा को बरकरार रखता है तब दोषी व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट का रुख करता है। यदि सुप्रीम कोर्ट भी वही सजा बरकरार रखे तो दोषी राष्ट्रपति के पास दया याचिका दाखिल करता है। महामहिम के यहां से दया याचिका खारिज होने के बाद दोषी को निर्धारित तिथि पर सुबह के समय फांसी की सजा दी जाती है। यूं तो फांसी देने की व्यवस्था भारत के लगभग सभी बड़े जेलों में हैं, लेकिन आप शायद यह नहीं जानते होंगे कि फांसी का फंदा भारत में केवल एक भी जेल बनता है।
अफजल गुरु और कसाब के समय भी यहीं बना था फंदा
फांसी का फंदा बनाने वाला भारत का इकलौता जेल बिहार में है। जहां अंग्रेजों के जमाने से ही फांसी के लिए फंदा बनाया जाता है। यहीं से बने फंदों को पूरे देश के जेलों में आपूर्ति की जाती है। फांसी का फंदा बनाने वाला देश का इकलौता जेल बिहार के बक्सर जिले में है। इस कारागार को बक्सर सेंट्रल जेल के नाम जाना जाता है। देश में आखिरी बार संसद पर हमला करने के आरोप में जम्मू-कश्मीर के आतंकी अफजल गुरु को फांसी की दी गई थी। उससे पहले मुंबई आतंकी हमले में जिंदा पकड़ाए पाकिस्तानी आतंकी कसाब को फांसी की सजा दी गई थी। दोनों बक्सर जेल में बने फांसी के फंदे पर ही झूले थे।
अंग्रेजों के जमाने का है पावरलुम मशीन
बक्सर जेल के कैदी और कुशल तकनीकी जानकार फांसी के फंदे को तैयार करते हैं। इसमें सूत का धागा, फेविकोल, पीतल का बुश, पैराशूट रोप का उपयोग होता है। बक्सर जेल में अंग्रेजों के जमाने का एक पावरलुम मशीन है, जो धागों की गिनती कर अलग-अलग करती है। कहा जाता है कि फांसी के एक फंदे में 72 सौ धागों का प्रयोग होता है। फंदे पर 150 किलोग्राम तक के वजन वाले व्यक्ति को झुलाया जा सकता है। यह रस्सी को काफी मुलायम और लचीला होता है।
प्रतीकात्मक फोटो
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