4 दिन तक अस्पताल में पड़ी रही लाश, न पोस्टमार्टम न जांच; कोरोना के सस्पेक्ट का करा दिया दाह संस्कार

दिल्ली से भागलपुर आने वाली विक्रमशिला एक्सप्रेस से सारण का एक व्यक्ति भागलपुर आया था। यहां आने पर उसकी तबियत बिगड़ी। उसे मेडिकल कॉलेज में कोरोना का संदिग्ध बता एडमिट किया गया। 28 मार्च को उसकी मौत हुई। 1 अप्रैल को अस्पताल प्रशासन ने उसके परिजनों को बिना बताए उसका दाह संस्कार करा दिया। 
 

Asianet News Hindi | Published : Apr 2, 2020 7:16 AM IST

भागलपुर। मामला बिहार के भागलपुर जिल के प्रतिष्ठित जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल का है। जहां सीवान के एक व्यक्ति की इलाज के दौरान बीते दिनों मौत हो गई थी। चर्चा थी उक्त व्यक्ति कोरोना संक्रमित है। लेकिन इस बात की पुष्टि अभी तक नहीं हुई है। हालांकि दूसरी ओर अस्प्ताल प्रशासन उक्त व्यक्ति का दाह संस्कार करा चुका है। अस्पताल प्रशासन के अनुसार मृतक सीवान का 55 वर्षीय बसंत कुमार सिंह था। वह 25 मार्च को दिल्ली से भागलपुर पहुंचा था। जहां तबियत खराब होने पर उसे मायागंज हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। बसंत कुमार सिंह का मूल रूप से बिहार के सीवान का रहने वाला था। 

कोरोना संदिग्ध था शख्स, नहीं हुई पोस्टमार्टम
इलाज के दौरान 28 मार्च की शाम बसंत की मौत हो गई थी। जिस दिन बसंत की मौत हुई थी, उस दिन अस्पताल से भेजा गया मुंगेर के चार लोगों का कोरोना सैंपल पॉजिटिव आया था। चर्चा थी मायागंज में कोरोना से एक की मौत और चार पॉजिटिव केस मिले है। हालांकि बसंत की मौत कोरोना से हुई या नहीं इसकी अभी तक पुष्टि नहीं की गई है। चार दिनों तक उसके शव को अस्पताल में रखने के बाद एक अप्रैल को अस्पताल प्रशासन ने उसका दाह संस्कार कर दिया। मेडिकल कॉलेज के अधीक्षक डॉक्टर रामचरित्र मंडल के अनुसार बसंत की मौत हार्ट अटैक से हुई, लिहाजा उसका पोस्टमार्टम नहीं कराया गया।

अपनी लापरवाही पर पर्दा डाल रहा प्रशासन
भागलपुर अस्पताल प्रशासन का कहना है कि बसंत के परिजनों का पता लगाने के लिए छपरा के सिविल सर्जन को पत्र लिखा गया था। लेकिन चार दिनों तक जब बसंत का कोई परिजन सामने नहीं आया तो उसका दाह संस्कार कर दिया गया। हालांकि अस्पताल से जुड़े सूत्रों का कहना है कि बसंत की मौत और उसकी जांच में अस्पताल प्रबंधन ने लापरवाही बरती है।

छपरा के सीएस को पत्र लिखना इस लापरवाही पर पर्दा डालने की एक कोशिश मात्र है। अस्पताल में भर्ती होते समय मरीजों से नाम-पता घर का मोबाइल नंबर लिया जाता है। लेकिन बसंत के केस में उसकी पूर्जी पर केवल सोनपुर, सारण लिखा था। ऐसे में लॉकडाउन की स्थिति में उसके परिवार का पता नहीं लगाया जा सका। 

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