देश में जातिगत जनगणना को असंभव बताने वाली बीजेपी आखिर बिहार में कैसे हुई राजी, पढ़िए इनसाइड स्‍टोरी

जातीय जनगणना करने वाला बिहार देश का दूसरा राज्य होगा। कर्नाटक ने जातीय सर्वे पहले ही कराया था, हालांकि रिपोर्ट अभी तक सामने नहीं आई है। अब सभी की निगाह नीतीश कुमार पर टिकी है कि आखिर उनकी सरकार कब तक यह काम पूरा कर लेगी।

पटना : देश में अब तक जातीय जनगणना को असंभव बताने वाली भारतीय जनता पार्टी (BJP) बिहार (Bihar) में इसका समर्थन करती दिख रही है। सीएम नीतीश कुमार (Nitish Kumar) इस मुद्दे पर फ्रंटफुट पर दिखाई दे रहे हैं तो बीजेपी भी उनके साथ कदमताल कर रही है। बुधवार को बुलाई गई सर्वदलीय बैठक के बाद मुख्यमंत्री ने ऐलान किया कि अब बिहार में जातीय जनगणना कराई जाएगी। इस बैठक में बीजेपी की तरफ से उप-मुख्‍यमंत्री तारकिशोर प्रसाद (Tarkishore Prasad) भी शामिल हुए और पार्टी ने खुलकर इस मुद्दे पर सहमति जताई। ऐसे में सियासी गलियारों में सवाल उठने लगा कि केंद्र में इस मुद्दे के लिए राजी न होने वाली बीजेपी आखिर किस मजबूरी के चलते बिहार में हामी भर दी। 

मजबूरी या रणनीति
बिहार की राजनीति की बात करें तो पिछले कुछ समय से एक बार फिर नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) के बीच की दूरियां कम हो रही हैं। जातिगत जनगणना पर तेजस्वी ने पहले ही नीतीश को समर्थन दे दिया था। यह भाजपा के लिए भी किसी चिंता से कम नहीं। चूंकि बिहार में ओबीसी का एक बड़ा जनाधार है। राज्य की 52 फीसदी आबादी इसी वर्ग से आती है। ऐसे में अगर बीजेपी इससे दूरी बनाती है या इसका विरोध करती तो उसे ओबीसी की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है और बड़ा वोटबैंक हाथ से छिटक सकता है। यही कारण है कि बीजेपी को लगता है कि इस मुद्दे पर सभी के साथ चलने में ही उसका भी भला है। 

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तो राष्ट्रीय स्तर पर बिगड़ सकता है समीकरण
राज्य की पूरी राजनीति ही जातीय समीकरण से आसपास सिमटी नजर आती है। जातीय गनगणना की मांग भी सबसे बड़े वर्ग ओबीसी की तरफ से ही की जा रही है, ऐसे में बीजेपी को यह समझ आ रहा है कि अगर यहां उसने विरोध किया तो कहीं न कहीं नीतीश कुमार और उसका रास्ता अलग भी हो सकता है। ऐसे में राष्ट्रीय स्तर पर उसके सामने बहुत बड़ी चुनौती आ जाएगी। यूपी, एमपी समेत कई बड़े राज्यों में पूरा जातिगत समीकरण ही बिगड़ सकता है। यही कारण है बीजेपी नीतीश कुमार के एजेंडे के साथ खड़ी दिखाई दे रही है।

राजनीतिक लाभ की गेंद नीतीश के पाले में क्यों जाए
राजनीतिक जानकार कहते हैं कि बीजेपी यह भी नहीं चाहती कि वह इस मुद्दे का विरोध करे और नीतीश कुमार सियासी फायदा उठाएं। कुल साल पहले जब नीतीश सरकार की तरफ से विधानमंडल के दोनों सदनों में इसका प्रस्ताव लाया तो बीजेपी ने भी समर्थन किया था। उस वक्त भी सर्वदलीय बैठक में कंधे से कंधा मिलाकर बीजेपी साथ खड़ी दिखाई दी थी। जातिगत जनगणना की मांग को लेकर पिछले साल नीतीश कुमार की अगुआई में एक प्रतिनिधिमंडल पीएम नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) से भी मिलने पहुंचा था। बुधवार को हुई सर्वदलीय बैठक के बाद उप-मुख्‍यमंत्री तारकिशोर प्रसाद ने कहा कि हमारी पार्टी जातिगत जनगणना के विरोध में नहीं है। बस हमारी चिंता इतनी सी है कि इससे लोग कैसे फायदा पा सकेंगे। उन्‍होंने यह भी कहा कि पीएम मोदी तो कह ही चुके हैं कि राज्य चाहें तो अपने खर्च पर जातिगत जनगणना करा सकते हैं।

केंद्र में बीजेपी क्यों कर रही विरोध
अब बात केंद्र में बीजेपी के विरोध की। दरअसल बीजेपी की राजनीति का आधार हिंदू माना जाता है। ऐसे में वह नहीं चाहती कि यह समाज जातियों में बंट जाए। क्योंकि तब इसका फायदा क्षेत्रीय दलों को मिलने लगेगा। क्योंकि उनकी राजनीति ही जातियों से शुरू होती है। अब हिंदू समाज बंटा तो बीजेपी का हिंदुत्व का मुद्दा कमजोर पड़ सकता है। हालांकि बीजेपी ने क्षेत्रीय दलों की काट भी तैयार किया था। पिछड़ा और अति पिछड़ा नेतृत्व बनाकर उसने काफी हद तक गेंद अपने पाले में डाली है। लेकिन कई राज्य आज भी ऐसे हैं जहां जाति आधारित दल ही मजबूत माने जाते हैं। इनमें बिहार के अलावा यूपी, हरियाणा जैसे कई राज्य हैं। ऐसे में अब अगर बिहार में जातिगत जनगणना होती हे तो इस मुद्दे को काफी बल मिलेगा और बीजेपी की राजनीति थोड़ी प्रभावित भी हो सकती है।

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