महागठबंधन; RJD को अभी से अकेले सरकार बनाने की फिक्र, कांग्रेसियों को घर में ही चाहिए 'उत्तराधिकारी'

2015 में महागठबंधन ने चुनाव में बहुमत हासिल कर सरकार भी बना ली थी। मगर बाद में अनबन के बाद नीतीश कुमार पाला बदलकर एनडीए खेमे में चले गए, और उनके नेतृत्व में एनडीए की सरकार भी बन गई।

Asianet News Hindi | Published : Aug 28, 2020 1:02 PM IST / Updated: Sep 04 2020, 08:32 PM IST

पटना। बिहार में 243 विधानसभा सीटों पर चुनाव के लिए अभी चुनाव आयोग ने तारीखों की घोषणा नहीं कि है मगर राजनीतिक पार्टियों में सरगर्मी बढ़ गई है। लंबे समय से बिहार की सत्ता से बाहर आरजेडी इस बार इतिहास की गलतियों को दोहराना नहीं चाहती। महागठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद के दावेदार माने जा रहे तेजस्वी यादव का एक करीबी कोरोना पॉज़िटिव मिला जिसके बाद उन्हें होम आइसोलेशन में जाना पड़ा है। इससे आरजेडी के अभियान को अहम मौके पर धक्का लगा है। 

आरजेडी इतिहास के सबसे मुश्किल चुनाव का सामना करने जा रही है। पार्टी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव भ्रष्टाचार के मामले में जेल की सजा काट रहे हैं। हालांकि खराब तबीयत की वजह से वो फिलहाल रिम्स में इलाज करा रहे हैं और बिहार की हर घटना पर नजर भी बनाए हुए हैं। लालू के बिना पार्टी भले ही मुश्किलों में है, लेकिन वो इस बार 2015 की गलतियों को दोहराना नहीं चाहती है। मगर पार्टी इस बार फूंक-फूंक कर कदम रख रही है और चुनाव जीतकर सरकार बनाने का फूलप्रूफ प्लान लेकर चल रही है। 

 

आरजेडी नहीं भुला पाई है नीतीश के घाव 
लंबे समय से बिहार की सत्ता से बाहर आरजेडी ने 2015 में नीतीश कुमार की जेडीयू और कांग्रेस के साथ महागठबंधन किया था। महागठबंधन ने चुनाव में बहुमत हासिल कर सरकार भी बना ली थी। मगर बाद में अनबन के बाद नीतीश कुमार पाला बदलकर एनडीए खेमे में चले गए, और उनके नेतृत्व में एनडीए की सरकार भी बन गई। 2015 में आरजेडी और जेडीयू ने 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ा था। बाकी 41 सीटें कांग्रेस के हिस्से आई थीं। नतीजों में आरजेडी ने सबसे ज्यादा 80, जेडीयू ने 71 और कांग्रेस को 27 सीटें मिली थीं। सबसे ज्यादा सीट जीतने के बावजूद आरजेडी ने मुख्यमंत्री का पद नीतीश कुमार को दे दिया था। मगर दो साल के अंदर ही नीतीश ने आरजेडी और कांग्रेस को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया। 

पुरानी गलती से बचने की कोशिश 
इस बार आरजेडी सुप्रीमो महागठबंधन पर दबदबा कायम रखने और चुनाव में जीत सुनिश्चित करने के लिए दो तरह से योजनाएं बना रहे हैं। इसके तहत गठबंधन में चुनाव लड़ते हुए भी ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने की रणनीति बनाई जा रही है। राजनीतिक चर्चाओं की मानें तो पार्टी राज्य में 122 सीटों को जीतने का लक्ष्य लेकर चल रही है। आरजेडी 243 सीटों में से 160 सीट पर चुनाव लड़ना चाहती है। बाकी सीटें सहयोगियों को देने के लिए बात चल रही है। जीत पुख्ता करने के लिए महागठबंधन में पुराने सहयोगी कांग्रेस के साथ ही आरएलएसपी, वीआईपी, और वामपंथी दलों को मिलाने की योजना है। पार्टी सपा-एनसीपी जैसे दलों से भी सहयोग की उम्मीद पाले हुए है। सैफई में अखिलेश और तेजप्रताप की मुलाक़ात को इसी कड़ी में देखा जा रहा है। 

 

कांग्रेस में दूसरा राग, युवा के नाम पर रिश्तेदार 
उधर, महागठबंधन की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस भी इस बार राज्य में ज्यादा सीटों की आस लगाए बैठी है। पार्टी नेताओं ने महागठबंधन में ज्यादा सीटों के लिए तेजस्वी के नेतृत्व पर सवाल उठाकर दबाव भी बनाने की कोशिश की थी। हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक बिहार के बदले हालात में पार्टी ज्यादा सीटें पाने और युवा उम्मीदवारों के जरिए राज्य में पैठ मजबूत बनाने की फिराक में है। हालांकि पार्टी में युवा उम्मीदवारों की तलाश वरिष्ठ नेताओं के घर से बाहर ही नहीं निकल पा रही। रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में एक दर्जन से ज्यादा सीनियर कांग्रेसी अपने बेटे-बेटियों के लिए टिकट की चाह जता चुके हैं।

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