11 सालों तक बांग्लादेश की जेल में कैद रहने के बाद ये शख्स पहुंचा तो उसकी हालत देख हर कोई दुखी हो गया। और तो और उसकी मां भी बेटे के मिलने के बाद गमजदा हैं।
दरभंगा(Bihar). बिहार के दरभंगा जिले में एक ऐसा मामला सामने आया है जिसे जिसने भी सुना उसकी आखें नम हो गई। 11 साल पहले अपने परिवार से बिछड़ा बेटा मिली भी तो उसके परिवार में खुशी से ज्यादा गम है। 11 सालों तक बांग्लादेश की जेल में कैद रहने के बाद ये शख्स पहुंचा तो उसकी हालत देख हर कोई दुखी हो गया। और तो और उसकी मां भी बेटे के मिलने के बाद गमजदा हैं। आइये जानते हैं कि आखिरकार ये पूरा मामला है क्या?
यह पूरा मामला दरभंगा जिले के मनोरथा (हायाघाट प्रखंड) का है। यहां का रहने वाला सतीश चौधरी 11 साल के बाद अपने परिवार से मिला है, लेकिन उसकी हालत देखकर परिवार वाले खुशी से ज्यादा गमजदा हैं। पटना के कदमकुआं में सतीश अपने भाई मुकेश के साथ पंडाल निर्माण का काम करता था। काम करने के दौरान 15 अप्रैल 2008 अचानक वह लापता हो गया। सतीश की तलाश की गई लेकिन कुछ भी पता नहीं चला। पटना के गांधी मैदान थाने में सतीश के भाई मुकेश ने गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवाई थी। इसके बाद भी उसका कोई सुराग मिल पाया। करीब 4 साल बीत जाने के बाद 17 मार्च 2012 को मुकेश को पता चला कि उसका भाई बांग्लादेश की जेल में बंद है। 11 साल तक रिहाई की कानूनी प्राक्रिया चली और सतीश की तीन साल पहले वतन वापसी हुई।
बेटे की हालत देखकर फफक कर रो रही मां
सतीश की मां ने कला देवी ने फफक कर रोते हुए मीडिया को बताया कि खोया हुआ बेटा 11 सालों बाद मिला तो काफी खुशी हुई, लेकिन उसकी हालत को देख हमारे ऊपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है। वह मानसिक तौर पर बीमार हो चुका है और कुछ काम नहीं कर सकता है, जेल से छूटने के बाद भी उसे जंजीरों में बांधकर रखना पड़ता है। जंजीरों में इसलिए बांधना पड़ता है ताकि वह कहीं भाग नहीं जाए। कला देवी ने बताया कि उसके बेटे सतीश की ससुराल पश्चिम बंगाल में है, वहां जाने के दौरान वह गलती से बॉर्डर क्रॉस कर गया जिसके बाद उसे बांग्लादेश की आर्मी ने गिरफ्तार कर लिया। बांग्लादेश की जेल में काफी प्रताड़ित किया गया जिसकी वजह से उसकी दिमागी हालत बिगड़ गई है। अब इस काबिल नहीं है कि कुछ काम कर परिवार का ख़र्च उठा सके।
बेहद दयनीय है परिवार की हालत
सतीश के परिवार के पास घर के नाम पर सिर्फ छप्पर है। बारिश होने के बाद छप्पर से पानी टपकता है। प्लास्टिक टांग कर किसी तरह से वक़्त गुज़रता है। परिवार के लोगों को बहुत मुश्किल से दो वक्त की रोटी मिलती है। सतीश की मां के मुताबिक वह खुद मज़दूरी कर बहुत ही मुश्किल से परिवार का गुज़ारा कर रही हैं, अब उनके पास इतने पैसे नहीं हैं कि सतीश के इलाज का ख़र्च उठा सकें। उन्होंने कहा कि जब सतीश को बांग्लादेश से घर लाया गया तो उन लोगों ने आर्थिक मदद का आश्वासन दिया था। सतीश की पत्नी और उनके दो छोटे बच्चों का खयाल रखने वाला कोई नहीं है। कहीं से भी कुछ मदद नहीं मिल रही है।