लता मंगेशकर का देशभक्ति पर गाया वह गाना, जिसे सुनकर नेहरुजी की आंखों में आ गया पानी

ऐ मेरे वतन के लोगों...इस गीत को लिखे जाने के पीछे बेहद रोचक किस्सा है। देश में लोग 1962 की चीन से भारत की हार को लेकर गमजदा थे। कवि प्रदीप ने सोचा कि कोई ऐसा गीत लिखा जाए जो देशवासियों का आत्मविश्वास फिर से जगा दे।

नई दिल्ली। 
भारत में देशभक्ति के प्रतीक राष्ट्रगीत और राष्ट्रान के बाद सबसे अधिक लोकप्रिय जो गीत है वह ऐ मेरे वतन के लोगों... है। इस गीत को लिखे जाने के पीछे बेहद रोचक किस्सा है। देश में लोग 1962 की चीन से भारत की हार को लेकर गमजदा थे। कवि प्रदीप ने सोचा कि कोई ऐसा गीत लिखा जाए जो देशवासियों का आत्मविश्वास फिर से जगा दे। साथ ही उन जवानों को श्रद्धांजलि भी अर्पित हो, जिन्होंने युद्ध में वीरगति पाई। 

कवि प्रदीप एक शाम मुंबई माहिम बीच पर पैदल जा रहे थे। तभी उनके मन में कुछ शब्द आए। अपने साथी से तुरंत कागज और कलम मांगा। सिगरेट सुलगाई और कश लेते हुए उन शब्दों को कागज पर उतार दिया। ये शब्द उस गीत के थे, जो आज भी लोकप्रिय भी बने हुए हैं। यह गीत था ऐ मेरे वतन के लोगों। 

Latest Videos

यह भी पढ़ें: भाई-बहनों ने बताया- पिताजी की मौत के बाद Lata Mangeshkar ने कैसे संभाला घर, कैसे की हमारी परवरिश

आशा जी ने ऐन वक्त पर जाने से इंकार कर दिया 
इस गीत को लिखने के बाद कवि प्रदीप ने लता मंगेशकर के सामने इसे गाने का प्रस्ताव रखा। लता जी ने शुरू में इसे गाने से इंकार कर दिया। तब उनके पास रिहर्सल के लिए समय नहीं होता था। उन्होंने यह भी कहा कि एक किसी खास गाने पर ध्यान नहीं दे सकती। हालांकि, प्रदीप ने जब जिद्द की तो लता जी मान गईं। ऐ मेरे वतन के लोगों की पहली प्रस्तुति दिल्ली में 1963 में गणतंत्र दिवस समारोह में होनी थी। लता जी ने रिहर्सल शुरू की। वे इसे अपनी बहन आशा भोसले के साथ गाना चाहती थीं। दोनों साथ में रिहर्सल कर चुकी थी, लेकिन जिस दिन दिल्ली जाना था, उससे एक दिन पहले आशा जी ने जाने से इंकार कर दिया। लता जी को अकेले ही जाना पड़ा। 

यह भी पढ़ें: लता मंगेशकर बचपन में गरीबी की वजह से नहीं पढ़ सकीं, बड़ी हुईं तो 6 यूनिवर्सिटी ने डॉक्टरेट की उपाधि से नवाजा

कवि प्रदीप को ही नहीं बुलाया गया 
अब लता जी ने इसे अकेले गाने का फैसला किया। गाने के कंपोजर सी. रामचंद्र थे। उन्होंने म्यूजिक टेप दिया, जिसे वे रास्ते में सुनते हुए गईं। दिल्ली के जिस स्टेडियम में समारोह होना था वहां, राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन, प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी भी मौजूद थीं। यह समारोह सेना के जवानों के लिए फंड जुटाने के लिए आयोजित किया गया था। इसमें करीब दो लाख रुपए जुटाए गए, लेकिन विडंबना यह रही कि जिस कवि प्रदीप ने इस गीत को लिखा था, उन्हें ही इस समारोह में आमंत्रित नहीं किया गया। हालांकि, यह गाना बेहद लोकप्रिय हुआ। नेहरू जी ने  गाना सुनने के बाद खड़े होकर लता जी का अभिवादन किया और कहा कि इसे सुनकर मेरी आंखों में पानी आ गया।

यह भी पढ़ें: कभी बेहद अमीर थे लता मंगेशकर के पिता, मगर नशे की लत ने उनके साथ-साथ बिगाड़ दी घर की भी सेहत

लता मंगेशकर का जन्म 28 सितंबर 1929 को मध्य प्रदेश के इंदौर जिले में हुआ था। वह पांच भाई-बहनों में सबसे बड़ी थीं। उनके पिता का नाम दीनानाथ मंगेशकर था। वह शास्त्रीय संगीतज्ञ और रंगमंच के मशहूर कलाकार थे। उनका देहांत वर्ष 1942 में हुआ था। इसके बाद बहन मीना, उषा और आशा तथा भाई ह्रदयनाथ मंगेशकर की परवरिश की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई। लता मंगेशकर ने करीब 30 हजार फिल्मों में गाना गया था। उन्हेंने अंतिम गाना वर्ष 2011 में सतरंगी पैराशूट गाया था। उन्होंने दस फिल्मों में गाना गाया, जिसमें बड़ी मां, जीवन यात्रा जैसी मशहूर फिल्में भी शामिल हैं। 

Read more Articles on
Share this article
click me!

Latest Videos

पहले गई सीरिया की सत्ता, अब पत्नी छोड़ रही Bashar Al Assad का साथ, जानें क्यों है नाराज । Syria News
Mahakumbh 2025: महाकुंभ में तैयार हो रही डोम सिटी की पहली झलक आई सामने #Shorts
The Order of Mubarak al Kabeer: कुवैत में बजा भारत का डंका, PM मोदी को मिला सबसे बड़ा सम्मान #Shorts
LIVE 🔴: रविशंकर प्रसाद ने भाजपा मुख्यालय में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया | Baba Saheb |
20वां अंतरराष्ट्रीय अवॉर्ड, कुवैत में 'द ऑर्डर ऑफ मुबारक अल कबीर' से सम्मानित हुए पीएम मोदी