सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर के निधन(Lata Mangeshkar Passes Away) से फिल्म संगीत के एक युग का अंत हो गया। लताजी के साथ कई सुपरहिट गानों में तबले की संगत कर चुके राज शर्मा ने उनसे जुड़े कुछ किस्से शेयर किए। राज शर्मा ख्यात संगीतकार स्वर्गीय खय्याम साहब के शार्गिद रहे हैं। इन्हें खय्याम साहब दत्तक पुत्र मानते थे।
बॉलीवुड डेस्क(अमिताभ बुधौलिया). सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर के निधन(Lata Mangeshkar Passes Away) से फिल्म संगीत के एक युग का अंत हो गया। लताजी के साथ कई सुपरहिट गानों में तबले की संगत कर चुके राज शर्मा ने उनसे जुड़े कुछ किस्से शेयर किए। राज शर्मा ख्यात संगीतकार दिवंगत खय्याम साहब(Mohammed Zahur Khayyam-मोहम्मद ज़हुर खय्याम) के शार्गिद रहे हैं। इन्हें खय्याम साहब दत्तक पुत्र मानते थे। राज शर्मा ने अपना करियर खय्याम साहब के साथ ही शुरू किया था। राज शर्मा खय्याम के अलावा उत्तम सिंह, जतिन-ललित के अलावा श्रीनिवास खेले जैसे दिग्गजों के साथ काम कर चुके हैं। पढ़िए उन्हीं की जुबानी लताजी से जुड़ीं कुछ यादें...
बहुत ही दु:खद खबर कि दीदी हमारे बीच नहीं हैं। साक्षात सरस्वती थीं लता दीदी। मैं बहुत दु:खी हूं इतना कि लग नहीं रहा कि वे हमारे साथ नहीं हैं अब। लेकिन वे हमेशा अमर रहेंगी, क्योंकि उनके गाने इतने अमर हैं, इतने सुरीले हैं कि हम उनको कभी भूल नहीं सकते।
मालूम है कि तीन-साढ़े तीन मिनट में पब्लिक से वाहवाही निकलवानी पड़ती है
मैं याद कर रहा था 1976-77 में जब मैं मुंबई आया था और खय्याम साहब को ज्वाइन किया था। पहली ही रिकॉर्डिंग में 'कभी-कभी' का गाना था, तो ख्य्याम साहब ने मुझे इंट्रोड्यूज किया कि लताजी ये राज शर्मा है, भोपाल से आया है और ग्रेजुएट है और तबला बजाने इसके पिताजी ने यहां भेजा है। इसके पिताजी ज्वाइंट डायरेक्टर एग्रीकल्चर हैं। यह सुनकर लताजी बड़ी आश्चर्यचकित हुईं, क्योंकि उन दिनों 1976-77 में हमारे तबला और ढोलक फील्ड में ज्यादा पढ़े-लिखे लोग नहीं आते थे। लताजी बोलीं कि इतना पढ़-लिखकर तुम्हारे पिताजी ने यहां कैसे भेज दिया? बेटा बहुत मेहनत है यहां। मैंने कहा कि जी दीदी मैं करूंगा। वे बोली-आपको मालूम है कि यहां हम जो काम करते हैं, तीन-साढ़े तीन मिनट का गाना होता है, उसमें हमको पब्लिक से वाह निकलवानी पड़ती है कि 'वाह क्या गाया है, वाह क्या बजाया है, वाह कितना सुंदर म्यूजिक बना हुआ है इसका। तो ये मुश्किल काम है तीन मिनट में वाहवाही निकलवाना। समझते हो न कि मेहनत बहुत होगी इसमें। मैंने कहा कि जी दीदी। उन्होंने मुस्कराते हुए पूछा कि हिम्मत करके आए हो या दो-चार महीने में घर भाग जाओगे? उन्होंने मेरी बहुत हौसलाअफजाई की। मुझे खय्याम साहब की वजह से मुझे उनके बहुत सारे गाने; जो मुझे अच्छे से याद हैं, वो हिट गाने मुझे बजाने को मिले। ये मुलाकात इक बहाना है, नूरी फिल्म का गाना-चोरी-चोरी कोई आए। आजा रे..आजा रे ओ मेरे दिलबर आजा। थोड़ी-सी वेबवफाई फिल्म के गाने। दर्द फिल्म का गाना-अहल-ए-दिल यूं भी निभा लेते हैं। दर्द फिल्म का ही-न जाने क्या हुआ, जो तूने छू लिया। दिल-ए-नादान फिल्म का गाना-चांदनी रात में। तो उनके बहुत सारे गानों में तबला बजाया। रजिया सुल्तान के गाने-जलता है बदन, ऐ दिले नादान जैसे दर्जनों गाने।
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बहुत कम बोलती थीं वो
जब मैंने जतिन-ललित जी के साथ काम किया, तब भी उनके कई गानों में तबला बजाया। उत्तम सिंह जी के साथ फिल्म दिल तो पागल है के कई गानों में उनके साथ तबला बजाने का मौका मिला। वो बहुत कम बोलती थीं। बस इतना पूछती थीं कि कसा है? उनका पूरा ध्यान सेट(स्टूडियो) पर अपने गाने की तरफ रहता था। ट्यून सीखना, उसके लफ्जों का देखना। संगीतकार से पूछना-'मेरा उच्चारण ठीक आ रहा है न?' उनकी एक बात और थी कि वो गाना रिकॉर्ड करने से पहले म्यूजिक डायरेक्टर को बुलाकर पूछती थीं कि गाने के आगे-पीछे के सीन बताइए? आपकी हीरोइन कौन है? गांव के परिवेश की है या शहर की? ऐसा कोई भी सिंगर आज की तारीख में नहीं पूछता, जैसा पहले के सिंगर पूछते थे। सब पूछकर गाने में वो भाव लाती थीं। उस समय तो लाइव ऑर्केस्ट्रा बजता था। 60-70 या 90 म्यूजिशियन के साथ वो आकर रिहर्सल करती थीं। अपनी तरफ से भी वे सिंगिग में एड करती थीं, अलाप-वलाप अगर संगीतकार अप्रूव्ड करता था तो। वे साक्षात सरस्वती थीं। बाद में संगीतकार आकर कहता कि बहुत अच्छा दीदी...आपने तो ये बहुत अच्छा एड किया है।
नूरी(1979) फिल्म की रिकॉर्डिंग का किस्सा
नूरी फिल्म के गाने-'आजा रे..आज रे ओ मेरे दिलबर आजा' की रिकॉर्डिंग हो रही थी। नितिन(नितिन मुकेश) जी तब नए-नए थे, वे बहुत बार मिस्टेक कर रहे थे। खय्याम साहब ने 12-14 टेक लिए। तब वो परेशान हो गईं और पूछने लगीं कि खय्याम साहब मेरी कोई गलती हो रही है, तो बताइए? अब इनकी(लताजी) का तो गलती का सवाल नहीं उठता था। हालांकि वो समझ रही थीं कि नितिनजी की गलती है। किसी तरह नितिनजी समझ गए और टेक ओके हुआ। वो अमर गाना है। मैं सत-सत नमन करता हूं दीदी को। आप हमेशा अमर रहें और भगवान आपको स्वर्ग नसीब करे।
एक एलबम के बारे में
पंडित भीमसेन जोशी और लताजी का एक एलबम आया था-राम श्याम गुन गान। ये बहुत लाजवाब एलबम था। इसे संगीतकार श्रीनिवास खले जी(Shrinivas Khale) ने कम्पोज किया था। उसकी रिहर्सल के लिए मैं दीदी के यहां जाता था। उस दौरान दीदी के हाथ का खाना भी मेरे नसीब में होता था। दीदी बड़े चाव से रिहर्सल करती थीं। वो मेरे जीवन का यादगार एलबम है। मेरा अहोभाग्य कि मुझे उसमें तबला बजाने और श्रीनिवास खले के साथ असिस्ट करने का मौका मिला। आनंद मिलिंद के साथ भी मैंने 250 से अधिक फिल्मों के गीतों में तबले पर संगत की। इनमें से कई गीत लता मंगेशकर ने गाए।
(यह तस्वीर 1979 की है, जब खय्याम के मधुर संगीत से सजी फिल्म खानदान के हिट गीत-'ये मुलाकात इक बहाना है' की रिकॉर्डिंग हो रही थी। लताजी के साथ राज शर्मा)