फिल्म 'उमराव जान' के लिए खय्याम साहब को फिल्मफेयर और नेशनल अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था। संगीतकार 2011 में पद्म भूषण जैसे सम्मानों से भी नवाजे जा चुके हैं।
मुंबई. 'कभी-कभी' और 'उमराव जान' जैसी फिल्मों के संगीतकार मोहम्मद जहुर खय्याम हाशमी का सोमवार रात निधन हो गया। 92 वर्षीय संगीतकार लंग्स में इन्फेक्शन के चलते पिछले कुछ दिनों से बीमार थे और मुंबई के सुजय अस्पताल के आईसीयू में भर्ती थे। वे पद्म भूषण और संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित थे। उनके निधन के बाद बॉलीवुड में शोक की लहर है। खय्याम साहब द्वारा रची गई धुनों में एक खास किस्म का आकर्षण रहा है, जिसने उन्हें संगीत जगत में एक खास मुकाम तक पहुंचाया।
लुधियाना से की थी कॅरियर की शुरुआत
18 फरवरी, 1927 को पंजाब में जन्मे खय्याम साहब ने म्यूजिक कॅरियर की शुरुआत लुधियाना में 1943 में महज 17 साल की उम्र में की थी। 1953 में आई फिल्म 'फुटपाथ' से उन्होंने बॉलीवुड में अपने कॅरियर की शरुआत की थी। खय्याम साहब को 1961 में आई फिल्म 'शोला और शबनम' में संगीत देकर पहचान मिली। इसके बाद उन्होंने आखिरी खत, कभी-कभी, त्रिशूल, नूरी, बाजार, उमराव जान और यात्रा जैसी फिल्मों में धुनें दीं। ये वो धुनें हैं, जो आज भी लोगों की जुबान पर रहती है।
'उमराव जान' के लिए मिला था दो अवॉर्ड
फिल्म 'उमराव जान' के लिए खय्याम साहब को फिल्मफेयर और नेशनल अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था। संगीतकार 2011 में पद्म भूषण जैसे सम्मानों से भी नवाजे जा चुके हैं। इसके अलावा 2007 में संगीत नाटक एकेडमी अवॉर्ड से भी उन्हें सम्मानित किया गया था। बहुत कम लोगों को ये बात पता होगी कि साल 2007 में आई फिल्म 'यात्रा' में खय्याम साहब का संगीत था। फिल्म में रेखा और नाना पाटेकर लीड रोल में थे। भले ही खय्याम साहब इस दुनिया से को अलविदा कह गए हो लेकिन उनकी यादें और गाने लोगों के जहन में हमेशा ही रहेंगे।