आम जनता को बड़ी राहत ! न लोन महंगे होंगे, न बढ़ेगी EMI, रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं

भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने 10 अगस्त 2023 को मॉनेटरी पॉलिसी मीटिंग के फैसलों की जानकारी दी। लगातार तीसरी बार ऐसा हुआ है, जब RBI ने ब्याज दरों में बदलाव न करने का फैसला लिया है।

Satyam Bhardwaj | Published : Aug 10, 2023 5:02 AM IST / Updated: Aug 10 2023, 11:05 AM IST

बिजनेस डेस्क : भारतीय रिजर्व बैंक ने गुरुवार को आम जनता को बड़ी राहत देते हुए रेपो रेट में किसी तरह का बदलाव न करने का फैसला लिया है। रेपो रेट में इजाफा न करने का ऐलान करते हुए RBI ने बताया कि ब्याज दर 6.50% बरकरार रहेगी। लगातार तीसरी बार ऐसा हुआ है, जब RBI ने ब्याज दरों में किसी तरह का बदलाव नहीं किया है। RBI गवर्नर शक्तिकांत दास (Shaktikanta Das) ने 10 अगस्त 2023 को मॉनेटरी पॉलिसी मीटिंग के फैसलों की जानकारी दी।

कितनी रहेगी महंगाई दर

FY 2023-24 में महंगाई का अनुमान रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने 5.1% से बढ़ाकर 5.4% कर दिया है। वित्त वर्ष 2023-24 में रियल GDP ग्रोथ का अनुमान 6.5% पर बरकरार है। पहली तिमाही में 8 प्रतिशत, दूसरी में 6.5 फीसदी, तीसरी में 6% और चौथी तिमाही में 5.7 प्रतिशत GDP रहने का अनुमान है।

6 बार में 2.50% बढ़ी रेपो रेट

हर दो महीने पर मॉनेटरी पॉलिसी की मीटिंग होती है। पिछले फाइनेंशियल ईयर 2022-23 की पहली मीटिंग अप्रैल 2022 में हुई थी। तब रेपो रेट 4% पर बरकरार रखा गया था लेकिन इसके बाद 2 और 3 मई को आरबीआई ने इमरजेंसी मीटिंग बुलाकर रेपो रेट 0.40% बढ़ाकर 4.40% कर दिया था। इसके बाद 6 से 8 जून को मीटिंग हुई और रेपो रेट में 0.50% इजाफा कर इसे 4.90% कर दिया गया। अगस्त 2022 में एक बार फिर रेपो रेट में बदलाव हुआ और 0.50% बढ़ाकर 5.40% कर दिया गया। सितंबर में 5.90% हो गईं। फिर दिसंबर 2022 में ब्याज दरें 6.25% तक पहुंच गई। वित्त वर्ष 2022-23 की लास्ट मॉनेटरी पॉलिसी की मीटिंग इसी साल फरवरी में हुई, जिसमें ब्याज दर 6.25% से बढ़ाकर 6.50% आरबीआई ने कर दी।

रेपो रेट में बदलाव न होने से आम जनता को क्या फायदा

महंगाई ज्यादा होने पर इकोनॉमी में मनी फ्लो कम करने रिजर्व बैंक रेपो रेट बढ़ा देता है। रेपो रेट बढ़ने से बैंकों को रिजर्व बैंक से मिलेने वाला कर्ज महंगा हो जाता है। इसके बदले में बैंक अपने कस्टमर्स का लोन महंगा कर देता है। जिससे इकोनॉमी में मनी फ्लो कम हो जाता है और डिमांड में कमी आती है और महंगी घट जाती है। ठीक इसी तरह जब इकोनॉमी का बुरा दौर आता है, जब रिकवरी के लिए मनी फ्लो बढ़ाने की आवश्यकता पड़ती है। ऐसी स्थिति में RBI रेपो रेट कम कर देता है। तब बैंकों को रिजर्व बैंक से मिलने वाला कर्ज सस्ता हो जाता है और ग्राहकों को सस्ती दर पर लोन मिलने लगता है।

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