मोदी सरकार द्वारा लाए गए व्हाइट पेपर के जवाब में कांग्रेस ने ब्लैक पेपर पेश किया। व्हाइट पेपर में जहां 2 सरकार के कार्यकालों की तुलना है, वहीं कांग्रेस का ब्लैक पेपर महज आरोपों के इर्द-गिर्द घूमता है। एस गुरुमूर्ति इसे विस्तार से बता रहे हैं।
मोदी सरकार ने हाल ही में संसद में 'श्वेत पत्र' पेश किया, जिसमें कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन (UPA) के साथ अपने एक दशक के आर्थिक प्रदर्शन की तुलना की। सूत्रों के मुताबिक, यह श्वेत पत्र UPA सरकार के कार्यकाल में दिवालियापन की कगार पर पहुंची अर्थव्यवस्था को स्थिर करने में मोदी सरकार द्वारा उठाए गए अहम फैसलों पर जोर देता है। यह श्वेत पत्र मोदी सरकार की अभूतपूर्व उपलब्धियों को बताने के साथ ही भारत के आर्थिक परिदृश्य को पुनर्जीवित करने की कोशिशों को उजागर करता है।
मोदी सरकार के 'श्वेत पत्र' के जवाब में कांग्रेस ने सरकार द्वारा पेश किए गए दावों का खंडन करने के लिए 'ब्लैक पेपर' जारी किया। हालांकि, कांग्रेस के ब्लैक पेपर में 2014 में आर्थिक उथल-पुथल या मोदी सरकार के तहत हासिल विकास का जिक्र नहीं है। ब्लैक पेपर मुख्य रूप से मोदी सरकार पर लगाए गए आरोपों के इर्द-गिर्द ही घूमता है, जिसमें वैकल्पिक रणनीतियों की कमी साफ झलकती है।
मोदी सरकार का श्वेत पत्र तीन प्रमुख तथ्यों को बताता है, जिन पर कांग्रेस का ब्लैक पेपर न तो विवाद करता है और न ही खंडन करता है। सबसे पहले और सबसे अहम ये कि यह 2004-05 के बजट में कांग्रेस सरकार द्वारा की गई स्वीकारोक्ति का रिफरेंस देता है, जिसमें अर्थव्यवस्था को मजबूत स्थिति में छोड़ने के लिए पूर्ववर्ती वाजपेयी सरकार की प्रशंसा की गई थी। ये ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य क्रमिक प्रशासनों के दौरान भारत के आर्थिक परिदृश्य को समझने के लिए एक बेस तैयार करता है।
दूसरा, श्वेत पत्र 10 साल के कांग्रेस गठबंधन वाली UPA सरकार के उथल-पुथल भरे कार्यकाल को भी विस्तार से बताता है। साथ ही इसे गलत नीतियों और बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार से ग्रस्त समय के रूप में दिखाता है। इन कमियों के गंभीर परिणामों के चलते ही भारत की अर्थव्यवस्था में गिरावट आई और ग्लोबल फाइनेंशियल इंस्टिट्यूशंस ने भारत को ‘पांच ढहती वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं’ में से एक माना।
श्वेत पत्र में उजागर किया गया तीसरा मेन प्वाइंट मोदी सरकार के 10 साल के कार्यकाल के दौरान देखे गए आर्थिक परिवर्तन से जुड़ा है। कोविड-19 महामारी और यूक्रेन संकट जैसी जियो-पॉलिटिकल टेंशन का सामना करने के बावजूद, भारत की अर्थव्यवस्था वैश्विक स्तर पर 10वें से पांचवें नंबर पर पहुंच गई। इस विकास ने भारत को आर्थिक शक्ति के मामले में सबसे आगे खड़ा कर दिया और दुनिया की सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में अपनी जगह भी सुरक्षित कर ली। ये एक प्रमाण है, जिसे अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों ने समर्थन दिया है। ब्लैक पेपर ने भी इससे इनकार नहीं किया है।
1- 2022 में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने कहा- भारत अंधकारमय क्षितिज पर एक 'चमकता सितारा' कहलाने का हकदार है, जो दुनिया के विकास में भारत के महत्वपूर्ण योगदान को दिखाता है। दिसंबर 2023 में, IMF की तारीफ ने ग्लोबल डेवलपमेंट में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया। IMF ने ग्लोबल इकोनॉमिक रिकवरी और विश्व विकास में भारत के अहम योगदान के बारे में बताते हुए कहा- भारत एक 'स्टार परफॉर्मर' है, जिसका वैश्विक विकास में 16% योगदान है।
2- सितंबर 2023 में इन्वेस्टमेंट रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पूअर्स (S&P) ने भारत की मजबूत आर्थिक वृद्धि की तारीफ करते हुए IMF की बात का समर्थन किया। S&P ने कहा- भारत की बेहतरीन आर्थिक प्रगति ग्लोबल ग्रोथ के लिए अहम साबित होगी।
3- एसएंडपी ने ग्लोबल इकोनॉमिक डायनेमिक्स को चलाने में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला। PM मोदी के सत्ता संभालने से पहले भारत को जिस संदेह और उपहास का सामना करना पड़ा था, उसके बिल्कुल विपरीत मोदी की परिवर्तनकारी आर्थिक नीतियां ग्लोबल फोरम पर भारत के कद को बढ़ाने में मददगार रहीं। उनके दूरदर्शी नेतृत्व और आर्थिक विकास के प्रति अटूट प्रतिबद्धता ने भारत को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है, जिससे वे प्रेरणा के साथ ही ग्लोबल लेवल पर प्रगति के प्रतीक बन गए हैं।
2014 में भारत के आर्थिक परिदृश्य पर नजर डालने से एक कठोर वास्तविकता सामने आती है, जो मोदी सरकार के नेतृत्व में देखी गई ग्रोथ को रेखांकित करती है। बदलाव न सिर्फ महत्वपूर्ण रहा, बल्कि शुरुआत में अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाली चुनौतियों को देखते हुए चमत्कारी होने की कगार पर भी है। 2014 में भारत की आर्थिक गति स्थिरता, बड़े पैमाने पर खर्च, बजटीय अव्यवस्था और बढ़ते इन्फ्लेशन रेट के चलते बाधित हुई थी। UPA सरकार ने खुद को न सिर्फ निष्क्रियता की हालत में पाया बल्कि बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार, घोटालों और एक्शन लेने में असमर्थता के चलते वह अपंग-सी हो गई। मल्टीनेशनल कॉर्पोरेशन दिवालिया हो गए, जबकि बैंक बढ़ते NPA से उबर नहीं पा रहे थे। इसके चलते बैंकिंग सिस्टम आर्थिक विस्तार के लिए महत्वपूर्ण लोन की सुविधा देने में असमर्थ हो गए।
मामला तब और गंभीर हो गया, जब विदेशी मुद्रा की कमी ने सरकार को अत्यधिक ब्याज दरों पर शॉर्ट टर्म विदेशी ऋण का सहारा लेने के लिए मजबूर किया। इससे अर्थव्यवस्था में गिरावट और बढ़ गई। श्वेत पत्र इन चुनौतियों को विस्तार से बताता है और उस अवधि के दौरान भारत ने खुद को जिस आर्थिक रसातल में पाया, उसका एक व्यापक विवरण देता है। श्वेत पत्र के आंकड़े अलग-अलग सरकारों में भारत के आर्थिक प्रक्षेप पथ का एक ब्योरा पेश करते हैं। जैसे ही 2003-2004 में वाजपेयी सरकार का अंत हुआ, मुद्रास्फीति जो पहले 2.1% थी, 2013 तक कांग्रेस शासन के दौरान बढ़कर 12.3% पर पहुंच गई।
2009-2014 तक कांग्रेस के कार्यकाल के दौरान, औसत मुद्रास्फीति दर 10.4% पर पहुंच गई, जबकि 10 साल की मोदी सरकार के दौरान यह गिरकर 5.5% पर रह गई। कांग्रेस और भाजपा सरकार का विश्लेषण करने पर एक महत्वपूर्ण ट्रेंड सामने आता है: कांग्रेस शासन के दौरान कीमतें बढ़ीं और भाजपा सरकार के तहत अपेक्षाकृत कम रहीं।
2014-24 के दौरान COVID-19 महामारी और यूक्रेन युद्ध जैसे संकटों का सामना करने के बावजूद, मोदी सरकार ने मुद्रास्फीति को प्रभावी ढंग से मैनेज किया, विकास को बढ़ावा दिया और पर्याप्त प्रगति की। बेरोजगारी दर, जो 2017-18 में 6.1% थी, मोदी सरकार के कार्यकाल में 2022-23 तक घटकर लगभग आधी यानी 3.2% रह गई।
कांग्रेस की UPA सरकार के दौरान 2009 में बैंकों का NPA 4.5% से बढ़कर 2014 में 10% से ज्यादा पहुंच गया। यहां तक कि राहुल गांधी के साथ भारत जोड़ो यात्रा पर निकले मशहूर इकोनॉमिस्ट रघुराम राजन ने भी बैंकिंग क्षेत्र पर बैड लोन्स के खराब प्रभावों पर बात की है।
मोदी सरकार द्वारा किए गए उपायों में बैंकों में पर्याप्त निवेश और यूनिवर्सल बैंक अकाउंट्स एक्सेस, डिमॉनेटाइजेशन और GST लागू करने जैसी पहल शामिल हैं। इसके चलते अर्थव्यवस्था को स्थिर करने में मदद मिली। इन सुधारों से भ्रष्टाचार और Tax चोरी पर नकेल कसने के साथ ही आर्थिक विकास को बढ़ावा मिला। संक्षेप में कहें तो स्टेबल बैंकिंग सेक्टर के लिए मोदी सरकार द्वारा किए गए प्रयासों से भारत में आर्थिक पुनरुत्थान हुआ।
विपक्ष का ब्लैक पेपर मोदी सरकार की 10 साल की उपलब्धियों का 'काला टीका'
मोदी सरकार के 'श्वेत पत्र' से पहले ही कांग्रेस ने अपना 'काला पत्र' जारी कर दिया। हालांकि, सरकारी वेबसाइट पर व्हाइट पेपर जहां आसानी से मौजूद है, वहीं ब्लैक पेपर कहीं नहीं दिखा। कई मीडिया ग्रुप्स ने ब्लैक पेपर के कथित कंटेंट को प्रसारित किया। द वायर, जो कथित तौर पर कांग्रेस के गठबंधन वाला मंच है, ने दावा किया कि इसमें एक दशक की आर्थिक बर्बादी, बढ़ती बेरोजगारी, कृषि क्षेत्र में गिरावट, महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध, अल्पसंख्यकों और हाशिए पर रहने वाले लोगों के खिलाफ अन्याय को विस्तार से बताया गया है। ब्लैक पेपर आखिर क्या दिखाता है? ब्लैक पेपर उन आलोचनाओं को बताता है, जो कांग्रेस ने मोदी सरकार के खिलाफ की हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि यह बिना पुख्ता सबूत के मोदी सरकार पर आक्षेप लगाने की एक और कोशिश है। PM मोदी ने कांग्रेस के ब्लैक पेपर पर कटाक्ष कर इसकी तुलना 'काला टीका' से करते हुए कहा था-देश की समृद्धि को नजर न लगे, इसके लिए काला टीका जरूरी होता है।
BJP के श्वेत पत्र में कोयला घोटाला, राष्ट्रमंडल खेल घोटाला, 2जी घोटाला, आईएनएक्स घोटाला समेत 10 साल के कांग्रेस शासन के दौरान हुए 15 बड़े घोटालों का जिक्र है। वहीं, इसके उलट भाजपा का 10 साल का कार्यकाल ईमानदारी और सैद्धांतिक शासन के प्रतीक के रूप में दिखता है। श्वेत पत्र दो अलग-अलग सरकारों के कार्यकाल के दौरान की असमानता को उजागर करता है। एक सरकार के दौरान जहां नैतिक पतन की चरम सीमा दिखती है, तो वहीं दूसरी सरकार के दौरान सद्गुणों का शिखर नजर आता है। वहीं, ब्लैक पेपर जैसा कि द वायर द्वारा रिपोर्ट किया गया है, साफतौर पर भाजपा के खिलाफ दुर्भावना से प्रेरित दिखता है।
कांग्रेस खुद को भ्रष्टाचार के दलदल में फंसी हुई पाती है और वो अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ आरोप लगाने में विफल रहती है। भ्रष्टाचार में डूबी कांग्रेस के पास भाजपा का मुकाबला करने के लिए नैतिक आधार ही नहीं है। वैसे व्हाइट पेपर-ब्लैक पेपर की बहस के बीच PM मोदी की ये बात सच ही लगती है: देश के लोग ब्लैक पेपर को कांग्रेस द्वारा भाजपा पर लगाया गया 'काला टीका' ही मानेंगे।
Disclaimer: यह लेख मूल रूप से तुगलक तमिल साप्ताहिक पत्रिका में छपा था। इसका अंग्रेजी में अनुवाद तुगलक डिजिटल द्वारा www.gurumurthy.net के लिए किया गया था। इसे एशियानेट न्यूज नेटवर्क में दोबारा प्रकाशित किया गया है।