Good News: महंगाई दर 15 महीने के निचले स्तर पर, खाने-पीने की चीजों के दाम घटे

महंगाई के मोर्च पर अच्छी खबर है। कंज्यूमर प्राइस बेस्ड इंडेक्स (CPI) महंगाई दर के आंकड़ों में लगातार दूसरे महीने गिरावट आई है। मार्च, 2023 में खुदरा महंगाई दर 5.66 फीसदी रही, जो फरवरी के 6.44 फीसदी से कम है।

Ganesh Mishra | Published : Apr 12, 2023 3:06 PM IST / Updated: Apr 12 2023, 08:37 PM IST

Retail inflation Rate: महंगाई को लेकर एक अच्छी खबर आई है। कंज्यूमर प्राइस बेस्ड इंडेक्स (CPI) महंगाई दर के आंकड़े में गिरावट आई है। मार्च, 2023 में खुदरा महंगाई दर 5.66 फीसदी रही, जो फरवरी के 6.44 फीसदी से भी कम है। इससे पहले जनवरी, 2023 में यह 6.52 फीसदी के स्तर पर थी। इसका मतलब है कि खाने-पीने की चीजों के दाम कम हुए हैं। बता दें कि कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (CPI) के बास्केट में करीब आधी से ज्यादा हिस्सेदारी खाने-पीने के सामान की होती है।

15 महीने के निचले स्तर पर पहुंचीं महंगाई दर :

बता दें कि खुदरा महंगाई दर 15 महीने के निचले स्तर पर पहुंच गई है। नवंबर, 2021 में ये 4.91% और दिसंबर 2021 में 5.66% थी। वहीं खाद्य महंगाई दर भी फरवरी के 5.95% की तुलना में मार्च, 2023 में घटकर 4.79% पर आ गई है। इसके साथ ही सब्जियों की महंगाई दर 8.51%, मीट और मछली की महंगाई दर 1.42%, ऑयल और फैट्स की महंगाई दर 7.86 फीसदी रही। वहीं, मसालों की महंगाई दर 18.21%, दाल की महंगाई दर 4.33%, फलों की महंगाई दर 7.55% रही है।

क्या होता है कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (CPI)

इसे उपभोक्ता मूल्य सूचकांक भी कहते हैं। शहरी उपभोक्ताओं द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली आवश्यक चीजों और सेवाओं के बास्केट को CPI इंडेक्स कहते हैं। इसमें समय-समय पर होने वाला बदलाव खाने-पीने की चीजों के दाम में उतार-चढ़ाव को दिखाता है। इस बास्केट में मुख्य रूप से अनाज, दूध, चाय, कॉफी, गैसोलीन, कपड़े, मेडिकल केयर, टेलिकॉम सर्विसेज, पर्सनल सर्विसेज जैसी चीजें होती हैं। इस बास्केट में करीब 300 चीजें ऐसी हैं, जिनके आधार पर रिटेल महंगाई दर तय की जाती है।

महंगाई कंट्रोल करने के लिए RBI करता है ये उपाय :

बता दें क महंगाई पर काबू पाने के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया समय-समय पर मौद्रिक नीति की समीक्षा करता है। इसमें बैंक प्रमुख आधार दर यानी रेपो रेट (Repo Rate) को बढ़ा देता है। रेपो रेट बढ़ने से रिजर्व बैंक द्वारा अन्य बैंकों को मिलने वाला कर्ज महंगा हो जाता है। इससे बैंक भी लोन महंगा कर देते हैं। लोन महंगा होने से बाजार में कैश फ्लो में कमी आती है। बता दें कि पिछले एक साल में आरबीआई ने 6 बार रेपो रेट बढ़ाया था।

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