Explainer: अमेरिका की नई व्यापार नीति लेगी मोदी-ट्रंप के मधुर संबंधों की परीक्षा
डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने से भारत-अमेरिका के व्यापारिक रिश्तों पर सवाल उठ रहे हैं। 'अमेरिका फर्स्ट' नीति के चलते क्या मोदी-ट्रंप की दोस्ती रंग लाएगी या फिर नए टैरिफ वार की शुरुआत होगी?
Dheerendra Gopal | Published : Nov 7, 2024 12:12 PM IST / Updated: Nov 07 2024, 06:54 PM IST
Trump 2nd Term and US-India relationship: भारत-अमेरिका के बीच बड़ी व्यापारिक साझेदारी है। पीएम मोदी और नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच रिश्ते भी काफी मधुर हैं और दोनों एक-दूसरे को अपना दोस्त कहते हैं। लेकिन अहम सवाल यह कि डोनाल्ड ट्रंप के फिर से राष्ट्रपति बनने के बाद दोनों देशों के बीच आर्थिक साझेदारी कितनी मधुर रहेगी। यह इसलिए क्योंकि अमेरिका की व्यापार नीति, दोनों देशों के संबंधों की असल परीक्षा है। डोनाल्ड ट्रंप, अमेरिका फर्स्ट की नीति पर अमल करते हैं और इसके लिए वह दोस्ती में भी समझौता नहीं करते हैं।
पीएम मोदी और डोनाल्ड ट्रंप के बीच मधुर संबंधों की असली परीक्षा अमेरिका की नई व्यापार नीति होगी। दरअसल, आधिकारिक मुलाकातों के दौरान दोनों नेता काफी गर्मजोशी के साथ एक दूसरे के गले मिलते हैं। लेकिन दोस्ती के बीच-बीच में ट्रंप अपने पहले कार्यकाल के दौरान नई दिल्ली के प्रति कई बार आक्रामक रुख अपना चुके हैं।
पहले कार्यकाल में डोनाल्ड ट्रंप ने भारत को टैरिफ किंग और व्यापार का दुरुपयोग करने वाला कहा था।
दूसरे कार्यकाल के लिए राष्ट्रपति पद संभालने जा रहे डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के साथ सरप्लस ट्रेड करने वाले देशों पर टैरिफ टैक्स लगाने का वादा अपने देश के लोगों से कर चुके हैं। अगर ट्रंप अपना वादा पूरा करते हैं तो दुनिया की पांचवीं अर्थव्यवस्था भारत के लिए यह काफी बाधा पहुंचाने वाला होगा।
आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार, डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका में अपनी कंपनियों की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स को वापस लाना चाहते हैं। अगर ऐसा होता है तो कई विकासशील देशों के लिए यह मुश्किलों भरा होगा। आर्थिक और औद्योगिक गतिविधियों को वापस अमेरिका में लाने से कई देशों की मुश्किलें बढ़ सकती।
भारत अमेरिका का नौवां सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। इसका 2023-24 वित्तीय वर्ष में ट्रेड सरप्लस $30 बिलियन से अधिक है।
मोदी सरकार ने भारत में मेक इन इंडिया कैंपेन से लोकल मैन्युफैक्चरिंग पर जोर दिया है। इसके लिए उद्यमों के लिए सरल कानून और टैक्स रिलीफ भी दी हैं। इसी वजह से Apple और अन्य टेक जॉयन्ट्स ने यहां भारत में अपना बड़ा निवेश किया है। इस वजह से चीन के बाहर भी तमाम टेक दिग्गज भारत में संभावना खोज रहे हैं।
भारत की सबसे बड़ी टेक कंपनियां TCS और Infosys भी अमेरिकी कंपनियों को यहां के सस्ते वर्क फोर्स को आउटसोर्स करके आगे निकली हैं। ऐसे में अगर ट्रंप नौकरियों को वापस लाने के लिए ट्रैरिफ वार शुरू करते हैं तो दूसरे देशों को काफी नुकसान उठाना पड़ेगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप की आक्रामक अमेरिका फर्स्ट व्यापार नीति, भले ही चीन को नुकसान पहुंचाने के लिए हो लेकिन इससे भारत भी काफी हद तक प्रभावित होगा जोकि विकासशील देश के लिए नुकसानदायक साबित होगा।
डोनाल्ड ट्रंप, अमेरिका में अवैध माइग्रेंट्स के खिलाफ अभियान चलाने का वादा कर चुके हैं। हाल के वर्षों में कनाडा और मैक्सिकन सीमाओं को पार करके हजारों भारतीयों ने अवैध रूप से अमेरिका में प्रवेश किया है। जब ट्रंप अवैध अप्रवास पर नकेल कसने की अपनी घोषित नीति पर आगे बढ़ेंगे तो यह निश्चित रूप से एक समस्या होगी। विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर भारतीयों को पकड़ा जाता है और बड़े पैमाने पर निर्वासित किया जाता है तो संबंधों पर आंच आनी तय है।