
EMI Risk and Hidden Costs: फेस्टिव सीजन सिर्फ रोशनी, मिठाइयों और खुशियों का नहीं, बल्कि कंपनियों के लिए बिक्री का सबसे बड़ा अवसर भी है। बैंक, रिटेलर्स और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स आपको आकर्षक ऑफर देते हैं। इनमें जीरो-कॉस्ट EMI, नो डाउन पेमेंट और इंस्टेंट अप्रूवल शामिल हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इन ऑफर्स के पीछे कर्ज़ का जाल भी छिपा होता है? आइए जानते हैं नो-कॉस्ट EMI का सच...
छोटे हिस्सों में बड़ी रकम
₹80,000 के स्मार्टफोन की कीमत ज्यादा लगती है, लेकिन अगर इसे ₹6,600 मंथली में बाँट दिया जाए, तो यह आसान लगता है। यही ट्रिक टीवी, फ्रिज और हॉलिडे पैकेज पर भी काम करती है।
बजट का ओवरस्टेच
छोटे हिस्सों की वजह से लोग ज्यादा महंगे प्रोडक्ट खरीदने लगते हैं। ₹20,000 का फोन ₹35,000 में बदल जाता है क्योंकि मंथ के हिसाब से थोड़ी ज्यादा रकम जोड़ने में कोई दिक्कत नहीं।
EMI का स्टैकिंग
एक फोन, एक वाशिंग मशीन, शायद एक सोफा सेट। हर EMI छोटा लगता है, लेकिन सब मिलकर भारी मासिक खर्च बन जाते हैं।
छिपे हुए चार्ज और डिस्काउंट का नुकसान
कई नो-कॉस्ट EMI प्लान में पहले डिस्काउंट नहीं मिलता या प्रोसेसिंग फीस जुड़ जाती है। इसलिए असल में आप ज्यादा खर्च कर रहे होते हैं।
रिजिडेंसी और इमरजेंसी में समस्या
लाइफ अनप्रेडिक्टेबल है। नौकरी बदलती है, मेडिकल इमरजेंसी आती है। EMI तय है, अगर मिस हो जाए तो पेनल्टी और क्रेडिट स्कोर पर असर पड़ता है।
पछताना और मेंटल प्रेशर
कई बार शॉपिंग की खुशी खत्म हो जाता है, लेकिन EMI की याद हर महीने आती रहती है। जो खुशी मिली वह धीरे-धीरे तनाव में बदल जाती है।
फेस्टिवल सीजन में कंपनियां और बैंक सेल्स बढ़ाने के लिए हर ट्रिक अपनाते हैं। ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स नो-कॉस्ट EMI को सीधे प्रोडक्ट डिस्काउंट से ज्यादा प्रमोट करते हैं, ताकि यूजर्स इसे आसान और आकर्षक समझें। वहीं सोशल मीडिया और इंफ्लुएंसर्स नए फोन और गैजेट्स 'EMI पर' दिखाकर खरीदने के लिए प्रेरित करते हैं। जिसकी वजह से अक्टूबर–नवंबर में क्रेडिट कार्ड और Buy-Now-Pay-Later ट्रैकिंग में 30–40% का उछाल देखा गया।
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