जानें भगवान गणेश के शहर में कैसे मनाया जाता है गणेशोत्सव, क्या है यहां का इतिहास

साल 1925 तक श्री कसबा गणपति मंदिर परिसर में ही गणेश उत्सव मनाया जाता था लेकिन 1926 के बाद से मंडप तैयार होने लगा। उत्सव के 10 दिन तक अलग-अलग तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।

बिजनेस डेस्क : महाराष्ट्र में मुंबई हो या पुणे 10 दिन का गणेश उत्सव (Ganeshotsav 2023) देखने लायक ही होता है। एक से बढ़कर एक दिव्य पंडाल सजाए जाते हैं। इस दौरान पूरे देश से लोग इस उत्सव में शामिल होते हैं और बप्पा की पूजा करते हैं। मुंबई की तरह पुणे में भी कई गणेश उत्सव काफी मशहूर हैं। इनमें से ही एक है कसबा गणपति (Kasba Ganpati Pune) का दरबार...गणेश उत्सव के दौरान यहां का माहौल पूरी तरह भक्तिमय होता है। इस मंदिर का इतिहास काफी खास है।

कस्बा गणपति का क्या है इतिहास

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कभी भारत का एक छोटा सा गांव पुनावाड़ी आज पुणे महानगर के तौर पर जाना जाता है। इसका इतिहास काफी दिलचस्प और प्रभावशाली है। अलग-अलग समय में यहां जितने भी मंदिरों का निर्माण कराया गया था, ज्यादातर को युद्ध के दौरान नष्ट कर दिया गया था। बात 1630 की है, जब रानी जीजाबाई भोंसले अपने 12 साल के बेटेर शिवाजी को साथ यहां आई। यह वह दौर था, जब युवा शिवाजी ने मावलों को मुगलों से मुक्त कराने की कसम खाई थी। उसी दौरान रानी जीजाबाई के निवास के पास रहने वाले विनायक ठाकर के घर के पास भगवान गणेश की एक प्रतिमा मिली। जीजाबाई ने इसे शुभ समय माना और एक मंदिर का निर्माण शुरू करवाया। यही मंदिर आज श्री कसबा गणपति मंदिर के नाम से मशहूर है।

ग्राम देवता के तौर पर पूजे जाते थे गणेश जी

इस मंदिर के निर्माण के बाद से ही पुणे को भगवान गणेश के शहर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में श्री गणेश ग्राम देवता के रूप में पूजे जाते हैं। माना जाता है कि शहर की रक्षा गणपति भगवान करते हैं। पुणे के स्थानीय देवता होने के कारण गणेश उत्सव के दौरान यहां का उत्सव मंडल को सबसे पहले भगवान गणेश की प्रतिमा विसर्जित करने का सौभाग्य प्राप्त है।

कितना भव्य होता है कसबा गणपति मंदिर में उत्सव

साल 1925 तक श्री कसबा गणपति मंदिर परिसर में ही गणेश उत्सव मनाया जाता था लेकिन 1926 के बाद से मंडप तैयार होने लगा। उत्सव के 10 दिन तक अलग-अलग तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। 10वें दिन श्री कसबा गणपति विसर्जन जुलूस में आगे-आगे चलते हैं। तब नजारा देखने लायक होता है।

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