भारत को आज़ादी मिलने के कुछ समय बाद तक ₹5000 और ₹10000 के नोट चलन में थे. 1954 में भारत सरकार के निर्देश पर रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने इन नोटों को जारी किया था. उस समय की आर्थिक ज़रूरतों को देखते हुए बड़ी रकम के लेन-देन के लिए इन नोटों का इस्तेमाल होता था. बड़े व्यापारी, कंपनियां और बैंक अधिक रकम की लेनदेन के लिए इन नोटों का इस्तेमाल करते थे. ₹5000 और ₹10000 के नोट 1954 से 1978 तक चलन में रहे. लेकिन 1978 में इन नोटों को आर्थिक व्यवस्था से हटा दिया गया. देश में बढ़ते भ्रष्टाचार और काले धन को रोकने के लिए इन नोटों को बंद कर दिया गया. इसके अलावा, आम लोगों को इन नोटों की ज़रूरत न होना और इनका इस्तेमाल काला धन जमा करने के लिए होने लगा था, इसलिए भी इन्हें बंद कर दिया गया.
1978 के जनवरी महीने में तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की सरकार ने बड़े नोटों को बंद करने का फैसला लिया. इस फैसले का मुख्य उद्देश्य काले धन पर रोक लगाना और भ्रष्टाचार कम करना था. बड़े नोटों के ज़रिए होने वाले गैरकानूनी लेन-देन को रोकने के लिए सरकार ने यह कदम उठाया था.
ये बड़े नोट ज़्यादातर बड़े व्यापारियों और कंपनियों के लिए उपयोगी थे. उस समय सिक्कों का चलन ज़्यादा था. इसलिए बड़ी रकम को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए बहुत ज़्यादा सामान की ज़रूरत पड़ती थी. सिक्कों को भी बड़े-बड़े बोरों में भरकर ले जाना पड़ता था. बैंकों में पैसे जमा करने में भी बहुत दिक्कत होती थी. ₹5000 और ₹10000 के नोटों से व्यापारियों को लेन-देन करने में आसानी होती थी. आम लोग इन नोटों का इस्तेमाल बहुत कम करते थे. उस ज़माने में आम लोगों को दो वक़्त की रोटी जुटाना भी मुश्किल होता था. उनके लिए तो बड़े नोट देखना ही बहुत बड़ी बात होती थी.
आम लोगों के लिए ₹5000 और ₹10000 के नोट किसी काम के नहीं थे. क्योंकि उनकी ज़रूरतें बहुत छोटी-छोटी होती थीं. उन्हें हर रोज़ खाने के लाले पड़ते थे. इसलिए वे बड़े नोटों का इस्तेमाल नहीं करते थे. इससे ये नोट कुछ बड़े व्यापारियों के पास ही जमा होने लगे. इससे सरकार को लगा कि काला धन बढ़ रहा है. भ्रष्टाचार बढ़ने लगा और अपराधी बड़ी मात्रा में काले धन को नोटों के रूप में छुपाने लगे. देश में पैसों का प्रवाह कम होने लगा और गरीबी बढ़ने लगी, इसलिए सरकार ने बड़े नोटों को बंद करने का फैसला लिया.
₹5000 और ₹10000 के नोटों को रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने 1954 में पहली बार छापा था. इन्हें भारत सरकार के निर्देश पर बैंकों द्वारा जारी किया जाता था. भ्रष्टाचार और काले धन में बढ़ोतरी को देखते हुए सरकार ने इन नोटों को बंद करने और आर्थिक व्यवस्था को साफ़-सुथरा बनाने का फैसला लिया. 1978 में जनता पार्टी की सरकार ने यह फैसला लिया था. तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के नेतृत्व में काले धन पर लगाम लगाने के लिए यह कदम उठाया गया था.
भारत में ₹2000 के नोट 2016 में आए थे. नोटबंदी के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने यह फैसला लिया था. 10 नवंबर को रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने इन्हें जारी किया था. इसके तहत ₹500 और ₹1000 के नोट बंद कर दिए गए थे. उनकी जगह नए ₹500 और ₹2000 के नोट लाए गए थे. माना जा रहा था कि इससे काले धन और भ्रष्टाचार पर रोक लगेगी और गैरकानूनी तरीके से जमा पैसे बाहर आएँगे. लेकिन जानकारों का मानना है कि यह फैसला बहुत कारगर साबित नहीं हुआ.
₹2000 के नोटों की छपाई 2016 में शुरू हुई थी और आरबीआई ने 2023 तक इन नोटों को चलन में रखा. हालाँकि, मई 2023 तक देश में ₹2000 के नोटों का कुल मूल्य लगभग ₹3.62 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान था. इन नोटों की संख्या कम होती जा रही थी क्योंकि 2018 के बाद से आरबीआई ने इनकी छपाई बंद कर दी थी.
19 मई 2023 को रिज़र्व बैंक ने ₹2000 के नोटों को बंद करने का ऐलान कर दिया. हालाँकि, लोगों को अपने पास मौजूद ₹2000 के नोट 30 सितंबर 2023 तक बैंकों में जमा कराने की मोहलत दी गई. उन्हें छोटे नोटों से बदला भी जा सकता है. आरबीआई का कहना है कि आर्थिक व्यवस्था में पारदर्शिता लाने और काले धन पर रोक लगाने के लिए यह फैसला लिया गया है।