
Will Registration in India: वसीयत रजिस्ट्रेशन एक कानूनी प्रक्रिया है। इससे किसी व्यक्ति के अंतिम वसीयत और वसीयतनामा की वैधता सुनिश्चित होती है। इसमें संपत्ति के बंटवारे, संपत्ति विरासत और उस व्यक्ति के अंतिम इच्छाओं का आधिकारिक रिकॉर्ड होता है। ऐसा करने के लिए उपयुक्त अधिकारियों के साथ वसीयत दर्ज करना जरूरी है।
अगर किसी व्यक्ति को चिंता है कि उसके दुनिया से जाने के बाद उसकी संपत्ति का क्या होगा तो विल रजिस्ट्रेशन जरूरी है। इससे संपत्ति नियोजन प्रयासों में सुरक्षा की एक अतिरिक्त परत जुड़ती है। संबंधित व्यक्ति के निधन के बाद विवादों की संभावना कम होती है। उसने जिसे जिंदा रहते हुए संपत्ति देने का फैसला किया उसे बिना किसी बाधा के संपत्ति मिलती है।
भारत में वसीयत को रजिस्ट्रेशन अधिनियम 1908 के तहत रजिस्टर्ड किया जाता है। यह एक्ट यह अनिवार्य करता है कि रजिस्ट्रेशन के लिए पेश किए जाने पर वसीयत को संबंधित रजिस्टर्ड अथॉरिटी द्वारा दर्ज किया जाए। भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार वसीयत रजिस्ट्रेशन अनिवार्य नहीं है। अगर कोई व्यक्ति वसीयत रजिस्ट्रेशन कराता है तो इसके कई लाभ मिलते है। यह विरासत की सुरक्षा के लिए विवेकपूर्ण कदम बन जाता है। इससे सुनिश्चित होता है कि कानूनी उत्तराधिकारी बिना जटिलताओं के संपत्ति के उत्तराधिकारी बन जाएं।
भारत में अपनी वसीयत रजिस्टर्ड करने के लिए संबंधित व्यक्ति को जहां वह रहते हैं उस इलाके के सब-रजिस्ट्रार ऑफिस में जाना होगा। वसीयत रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया में आपकी मूल वसीयत के साथ-साथ नीचे दिए गए आवश्यक दस्तावेज जमा करना शामिल है। आपको रजिस्ट्रेशन फीस भी देना होगा।
रजिस्ट्रेशन के बाद सब रजिस्ट्रार से रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट मिलता है। इसे सुरक्षित स्थान पर रखना चाहिए। रेफरेंस के लिए परिवार के सदस्यों और नियुक्त निष्पादक को कॉपी देने पर विचार करना चाहिए।
भारत में वसीयत रजिस्ट्रेशन से कई लाभ मिलते हैं। इससे संबंधित व्यक्ति के उत्तराधिकारियों को मानसिक शांति मिलती है। वसीयत रजिस्ट्रेशन के मुख्य फायदे इस प्रकार हैं:
विवादों से बचाव: वसीयत रजिस्ट्रेशन से संबंधित व्यक्ति के निधन के बाद संपत्ति के बंटवारे में लाभार्थियों के बीच विवाद होने की संभावना कम होती है। यह वसीयत कराने वाले व्यक्ति के इरादों का एक स्पष्ट और कानूनी रूप से बाध्यकारी रिकॉर्ड देता है। इससे किसी के लिए भी वसीयत की शर्तों पर विवाद करना मुश्किल हो जाता है।
तेज प्रोबेट प्रोसेस: प्रोबेट कोर्ट में वसीयत को मान्य करने की कानूनी प्रक्रिया है। रजिस्टर्ड वसीयत आम तौर पर बिना रजिस्टर्ड वसीयत की तुलना में तेज और आसान प्रोबेट प्रक्रिया से गुजरती है। इससे संबंधित व्यक्ति के उत्तराधिकारियों के लिए समय और कानूनी खर्च की बचत होती है।
संपत्ति की सुरक्षा: वसीयत पंजीकरण संपत्तियों की सुरक्षा करता है। इससे यह तय होता है कि वसीयत कराने वाले व्यक्ति की इच्छा के अनुसार संपत्ति बांटी जाए। यह सुरक्षा विशेष रूप से महत्वपूर्ण है यदि अधिक या जटिल संपत्ति हो।
रिकॉर्ड्स की सुरक्षा: रजिस्ट्रेशन वसीयत का आधिकारिक रिकॉर्ड बनाता है। इसे रजिस्ट्रार के पास सुरक्षित रखा जाता है। इससे वसीयत के खो जाने, नष्ट हो जाने या छेड़छाड़ होने का जोखिम नहीं रहता।
पहुंच में आसानी: रजिस्टर्ड वसीयत संबंधित व्यक्ति के कानूनी उत्तराधिकारियों और लाभार्थियों के लिए अधिक सुलभ है। वे लंबी कानूनी प्रक्रियाओं से गुजरे बिना अधिकारियों से वसीयत की सर्टिफाइड कॉपी प्राप्त कर सकते हैं।
मन की शांति: यह जानना कि वसीयत कानूनी रूप से रजिस्टर्ड है इसे तैयार कराने वाले और उसके परिवार के लोगों को मन की शांति देता है। यह तय करता है कि संपत्ति वसीयत कराने वाले व्यक्ति की इच्छाओं के अनुसार मैनेज की जाए। इससे पहले से ही चुनौतीपूर्ण समय के दौरान उत्तराधिकारियों पर भावनात्मक और वित्तीय बोझ कम हो जाता है।
1- क्या वसीयत रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है?
नहीं, अपनी वसीयत को वैध कानूनी दस्तावेज बनाने के लिए उसे रजिस्टर्ड कराना अनिवार्य नहीं है। भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम और हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में वसीयत को रजिस्टर्ड कराने की जरूरत नहीं है। भारतीय पंजीकरण अधिनियम 1908 की धारा 18 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि वसीयत का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य नहीं है।
2. क्या रजिस्टर्ड वसीयत पब्लिक रिकॉर्ड है?
हां, रजिस्टर्ड वसीयतें अन्य रजिस्टर्ड दस्तावेजों की तरह पब्लिक रिकॉर्ड का हिस्सा हैं, लेकिन इस तक पहुंच प्रतिबंधित है। केवल वसीयतकर्ता (वसीयत बनाने वाला व्यक्ति) और अधिकृत कानूनी उत्तराधिकारी ही वसीयत की सर्टिफाइड कॉपी प्राप्त कर सकते हैं।
3. क्या सब रजिस्ट्रार ऑफिस में वसीयत रजिस्टर्ड करने की कोई समय सीमा है?
नहीं, भारत में सब रजिस्ट्रार के पास वसीयत रजिस्टर्ड करने के लिए कोई विशेष समय सीमा नहीं है। पंजीकरण अधिनियम 1908 की धारा 40(1) के अनुसार वसीयतकर्ता की मृत्यु के बाद भी वैध वसीयत रजिस्टर्ड करना संभव है। इसे मरणोपरांत पंजीकरण के रूप में जाना जाता है। इसके लिए सभी शर्ते पूरी होनी चाहिए।
4. क्या भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के तहत वसीयत रजिस्टर्ड करने के लिए कोई पात्रता मानदंड है?
भारतीय कानून के अनुसार वसीयत दर्ज करने के लिए कोई खास पात्रता मानदंड नहीं हैं। यह आवश्यक है कि वसीयत बनाने वाले व्यक्ति के पास वसीयत करने की क्षमता हो। उसका दिमाग स्वस्थ होना चाहिए। उसे अपनी वसीयत का मतलब पता होना चाहिए। वसीयत स्वयं सादे कागज पर लिखी जा सकती है। इसके लिए स्टाम्प पेपर की जरूरत नहीं है। यह वसीयतकर्ता की अपनी राइटिंग में हो सकती है या दो गवाहों की उपस्थिति में वसीयतकर्ता द्वारा टाइप और साइन की जा सकती है।
5. क्या ऑनलाइन वसीयत रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं?
इस समय भारत में वसीयत के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन उपलब्ध नहीं है। वसीयत रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया उप रजिस्ट्रार के कार्यालय में व्यक्तिगत रूप से पूरी होती है। कुछ राज्यों में आपको उप रजिस्ट्रार कार्यालय में जाने से पहले कुछ दस्तावेज ऑनलाइन अपलोड करने होते हैं। यह शर्त भारत के सभी राज्यों में समान रूप से लागू नहीं है।
6. यदि किसी ने अपनी पिछली वसीयत रजिस्टर्ड कराई है और नई वसीयत बनाता है तो क्या उसे फिर से रजिस्ट्रेशन करना होगा?
वास्तव में नहीं, एक गैर-पंजीकृत वसीयत पूरी तरह से वैध वसीयत है, इसलिए तकनीकी रूप से नई वसीयत को पंजीकृत करने की जरूरत नहीं है। यदि कोई बड़ा बदलाव किया जाता है तो यह एक विवेकपूर्ण कदम हो सकता है।