E-Waste Management in India: भारत आकार और आबादी दोनों मामले में दुनिया का बड़ा देश है। आबादी में तो अपना स्थान पहले नंबर पर है। आज करीब-करीब हर घर में मोबाइल फोन, टीवी, रेडियो और दूसरे इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट का इस्तेमाल हो रहा है। इससे बड़ी मात्रा में इलेक्ट्रॉनिक कचरा या ई-कचरा पैदा हो रहा है।
भारत में ई-कचरा मैनेजमेंट चुनौतियों का सामना कर रहा है। एक बड़ा अनौपचारिक क्षेत्र कचरा जुटाने और उसे रिसाइकल करने का काम संभाल रहा है। यह काम अक्सर असुरक्षित तरीकों से किया जाता है। सरकार नए नियमों और विनियमों से इस क्षेत्र में स्थिति को सुधारने की कोशिश कर रही है।
ई- कचरा खराब या गैर इस्तेमाल इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट हैं। ये इंसानों, जानवरों और पर्यावरण के लिए बहुत बड़ा खतरा पैदा करते हैं। दूसरी ओर इसमें कीमती धातु भी होते हैं जो रिसाइकल करने पर मिलते हैं। ई-कचरे में आमतौर पर प्लास्टिक, धातु, कैथोड रे ट्यूब (CRTs), प्रिंटेड केबल, सर्किट बोर्ड आदि शामिल होते हैं। इनमें तांबा, चांदी, सोना और प्लैटिनम जैसी मूल्यवान धातुएं होती हैं। इन्हें वैज्ञानिक तरीके से प्रोसेस कर निकाला जा सकता है।
ई-कचरे में लिक्विड क्रिस्टल, लिथियम, पारा, निकल, सेलेनियम, पॉलीक्लोरीनेटेड बाइफिनाइल (पीसीबी), आर्सेनिक, बेरियम, ब्रोमीनेट्स, कैडमियम, क्रोम, कोबाल्ट, तांबा और सीसा जैसे विषैले पदार्थ भी होते हैं, जिससे ये बहुत खतरनाक बन जाते हैं। अगर ई-कचरे को ठीक तरह प्रोसेस नहीं किया जाए तो ये विषैले पदार्थ हवा, जमीन और पानी में मिल जाते हैं। इससे इंसानों और जानवरों को नुकसान होता है।
कंप्यूटर, मेनफ्रेम, सर्वर, मॉनिटर, प्रिंटर, स्कैनर, कॉम्पैक्ट डिस्क (सीडी), कॉपियर, कैलकुलेटर, बैटरी सेल, सेलुलर फोन, फैक्स मशीन, ट्रांसीवर, टीवी, मेडिकल उपकरण, आईपॉड, रेफ्रिजरेटर, वॉशिंग मशीन और एयर कंडीशनर ई-कचरे के उदाहरण हैं। जब वे इस्तेमाल करने लायक नहीं रह जाते हैं तो अत्यधिक विषैले पदार्थों और भारी धातुओं जैसे पारा, सीसा, बेरिलियम और कैडमियम की मौजूदगी के चलते पर्यावरण के लिए बहुत बड़ा खतरा है।
भारत में ई-कचरे का री-साइकिल मुख्य रूप से अनौपचारिक क्षेत्र द्वारा किया जाता है। हजारों गरीब परिवार कचरे के ढेर से सामग्री इकट्ठा करके अपना जीवन यापन करते हैं। आम लोग कागज, प्लास्टिक, धातु जैसे कचरा को अक्सर 'कबाड़ीवाला' को बेच देते हैं। वे इन्हें आगे छांटते हैं और कारीगरों या औद्योगिक प्रोसेसर (Industrial Processors) को बेचते हैं।
भारत में ई-कचरा मैनेजमेंट इसी पैटर्न पर होता है। अनौपचारिक ई-कचरा रीसाइक्लिंग क्षेत्र शहरी क्षेत्रों में हजारों परिवारों को बिजली और इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों को इकट्ठा करने, छांटने, मरम्मत करने, उन्हें नया रूप देने और नष्ट करने के लिए काम पर रखता है।
भारत में आम लोगों द्वारा औपचारिक ई-कचरा रीसाइक्लिंग सेंटर पर स्वेच्छा से बेकार बिजली और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण दान करने की कोई कॉन्सेप्ट नहीं है। कंज्यूमर द्वारा उत्पन्न ई-कचरे के निपटान के लिए भुगतान करने की अवधारणा भी नहीं है। ई-कचरे के रीसाइक्लिंग के लिए अनौपचारिक क्षेत्र पर भारी निर्भरता नीचे बताई गई चुनौतियों को जन्म देती है:
1- ई-कचरा मैनेजमेंट और प्रोसेसिंग नियमों का पालन नहीं करने या उल्लंघन पर फाइन लगाने का प्रयास काम नहीं करता।
2- ई-कचरे के रीसाइक्लिंग की बाजार कीमतों और स्वास्थ्य सुरक्षा लागतों के बारे में व्यापक सार्वजनिक जानकारी कम है। यह काम करने वाले मजदूरों को कम वेतन मिलता है। उन्हें उचित ट्रेनिंग भी नहीं दी जाती।
3- हर साल उत्पन्न होने वाले ई-कचरे की मात्रा में भारी वृद्धि के बाद भी ई कचरा जमा करने और रीसाइक्लिंग के लिए बड़े पैमाने पर औद्योगिक बुनियादी ढांचे द्वारा बहुत कम निवेश किया जाता है।
भारत में ई-कचरे के बड़े पैमाने पर मैनेजमेंट के लिए बुनियादी ढांचा क्षमता बहुत सीमित है। देश में सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त ई-कचरा रीसाइक्लिंग सेंटर बहुत कम हैं। ये हर साल पैदा होने वाले कुल ई-कचरे का केवल 1/5वां हिस्सा ही री-साइकिल करते हैं।
भारत सरकार ई-कचरा मैनेजमेंट के लिए सह-वित्तपोषित अनुदान योजना (co-funded grant scheme) देती है। यह ई-कचरा मैनेजमेंट फैसिलिटी और ई-कचरा बिजनेस के लिए क्षमता निर्माण से जुड़े प्रोजेक्ट की लागत का 25% से 50% तक कवर करती है। अब तक इस योजना का लाभ बहुत सीमित रहा है। औपचारिक रूप से स्वीकृत ई-कचरा रीसाइक्लिंग सेंटर की कमी है। वर्तमान में मौजूदा केंद्र अपनी क्षमता से बहुत कम काम कर रहे हैं।
भारत में औपचारिक क्षेत्र की रीसाइक्लिंग ई-कचरे के मैनेजमेंट के लिए मैन्युअल छंटाई और मशीन की मदद से कचरे के टुकड़े करने तक सीमित है। इस समय उचित पर्यावरण नियंत्रण वाले औद्योगिक ई-कचरा प्रबंधकों की कमी है। यह बड़े पैमाने पर कीमती और बेस मेटल्स निकालने के लिए जरूरी है। कुछ उभरती हुई भारतीय कंपनियां ई-कचरे से धातुएं निकालती हैं, लेकिन उनकी प्रोसेसिंग क्षमता सीमित है। औपचारिक क्षेत्र द्वारा प्रोसेस किया गया अधिकांश ई-कचरा धातु निकालने के लिए आवश्यक बड़े पैमाने के बुनियादी ढांचे वाले अन्य देशों को निर्यात किया जाता है। इसके विपरीत, अनौपचारिक क्षेत्र खुली हवा में भस्मीकरण और एसिड लीचिंग जैसे तरीकों का उपयोग करके धातुओं को निकालता है। यह खतरनाक हैं। इससे प्रदूषण बढ़ता है। लोगों का स्वास्थ्य जोखिम में पड़ता है।
भारत में औपचारिक और अनौपचारिक दोनों क्षेत्रों ने मुख्य रूप से धातु निकालने पर ध्यान केंद्रित किया है। कांच, प्लास्टिक और सिरेमिक पर कम ध्यान दिया है। ये ई-कचरे का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। प्लास्टिक ई-कचरे की रीसाइक्लिंग अग्निरोधी और अन्य कार्बनिक प्रदूषकों के रहने के चलते बहुत जटिल है।
अनौपचारिक क्षेत्र को मजबूत करें: अनौपचारिक क्षेत्र को ई-कचरा व्यवस्था में स्टेक होल्डर के रूप में पहचानना होगा। अनौपचारिक क्षेत्र को ई-कचरा मैनेज करने में जो समस्याएं हो रहीं उनके समाधान के इंतजाम करने होंगे।
अनौपचारिक क्षेत्र में ई-कचरा से जुड़े कामगारों से इस तरह जुड़ना होगा कि उनकी आजीविका के अधिकार को मान्यता मिले। सरकार को ऐसा मंच स्थापित करना चाहिए जो अनौपचारिक क्षेत्र के मजदूरों, गैर सरकारी संगठनों, तीसरे पक्ष, निजी संस्थाओं और रजिस्टर्ड रिसाइकिलर्स के बीच कम्युनिकेशन की सुविधा दे।
सरकार को ईपीआर दृष्टिकोण के तहत नीतिगत साधनों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। अनौपचारिक क्षेत्र की मौजूदगी में, संग्रह रसद में मजबूती की आवश्यकता है। संग्रह लक्ष्यों के साथ अनिवार्य वापसी आदर्श साधन नहीं हो सकता। उत्पादक जिम्मेदारी अनिवार्य वापसी के अलावा कई तरह की होती है।
सरकार को ईपीआर दृष्टिकोण के तहत नीतिगत साधनों पर पुनर्विचार करने की जरूरत है। अनौपचारिक क्षेत्र की मौजूदगी में ई-कचरा जुटाने में मजबूती जरूरी है। संग्रह लक्ष्यों के साथ अनिवार्य वापसी आदर्श साधन नहीं हो सकता। उत्पादक जिम्मेदारी अनिवार्य वापसी के अलावा कई तरह की होती है।
बाजार में बिकने वाले उत्पाद की हर इकाई पर एडवांस रिसाइकिलिंग शुल्क या एडवांस निपटान शुल्क जैसे आर्थिक साधन उत्पादकों को संग्रह की भौतिक जिम्मेदारी से मुक्त कर देंगे। इससे जुटाए जाने वाले धन का इस्तेमल ई-कचरा के लिए बाजार विकसित करने के लिए किया जा सकता है।