जमशेदजी टाटा: एक सपने की कहानी जो बनी उद्योग जगत की मिसाल

Published : Oct 10, 2024, 10:30 AM ISTUpdated : Oct 10, 2024, 10:31 AM IST
जमशेदजी टाटा: एक सपने की कहानी जो बनी उद्योग जगत की मिसाल

सार

जमशेदजी टाटा, एक साधारण पारसी परिवार से निकलकर भारत के उद्योग जगत में कैसे छा गए? जानिए उनकी प्रेरणादायक कहानी, शुरुआती संघर्षों से लेकर टाटा समूह की स्थापना तक।

जमशेदजी टाटा मूल रूप से गुजरात के पारसी परिवार से थे। उस समय पारसी समुदाय उद्योग जगत में नहीं था। टाटा के पिता नसरवानजी टाटा गुजरात से बॉम्बे जाकर जूट उत्पादों का निर्यात करने का व्यवसाय शुरू किया। यह 1857 के आसपास का समय था जब भारतीय सैनिकों ने अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल बजा दिया था। 

ऐसे अशांत समय में व्यवसाय करना आसान नहीं था। जमशेदजी टाटा बॉम्बे जाकर अपने पिता के साथ व्यवसाय में शामिल हो गए। तब टाटा की उम्र 29 साल थी और उनके मन में सैकड़ों सपने थे। 1869 में उन्होंने साहस दिखाते हुए चिंचपोकली में दिवालिया हो चुकी एक तेल निर्माण कंपनी को खरीदा और उसे सूती कपड़ा मिल में बदल दिया। बाद में इस कारखाने को अधिक लाभ पर बेचकर, उस पैसे से उन्होंने 1874 में नागपुर में एक विशाल सूती कपड़ा मिल शुरू की। 

यहाँ से टाटा के उद्योग साम्राज्य की कहानी शुरू हुई और फिर उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने धीरे-धीरे कई कारखाने स्थापित किए। टाटा स्टील, टाटा पावर और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस जैसी संस्थाओं को जन्म दिया। मुंबई के कोलाबा जिले में आलीशान ताज होटल की स्थापना की। सभी क्षेत्रों को एक ही संस्था के अंतर्गत लाने के लिए टाटा समूह की स्थापना की और दुनिया के सफल उद्यमियों में अपनी पहचान बनाई।

 

आज भारत के उद्योग जगत में विशाल रूप से फैले टाटा स्टील और लोहा कारखाने के पीछे जमशेदजी का अथक परिश्रम है। टाटा अपने जीवनकाल में इस कारखाने को स्थापित नहीं कर सके। उनके निधन के 3 साल बाद 1907 में उनके बेटे दोराबजी टाटा और भाइयों ने मिलकर उनके इस सपने को साकार किया।

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