फिर चर्चा में विवाद; पालोंजी मिस्त्री को लिखी रतन टाटा की चिट्ठी 29 साल बाद वायरल

चेयरमैन के रूप में कार्यालय संभालने के तीसरे दिन बाद टाटा ने पल्लोनजी को लिखा, वे खत में उन्हें "पल्लोन" के रूप में संबोधित करते हैं। इस चिट्ठी में वे अपने करियर के शुरुआती सालों में पल्लोनजी के समर्थन और प्रोत्साहन का शुक्रिया करते हैं।

Asianet News Hindi | Published : Feb 21, 2020 6:44 AM IST / Updated: Feb 21 2020, 01:14 PM IST

मुंबई.  टाटा सन्स (Tata Sons) के चेयरमैन रतन टाटा और सायरस मिस्त्री के बीच का विवाद एक बार फिर चर्चा में है। ऐसे समय में जब रतन टाटा और उनके दुश्मन बन चुके साइरस मिस्त्री सुप्रीम कोर्ट में लड़ाई लड़ रहे हैं। हाल में एक पत्र जो टाटा ने साइरस के पिता पल्लोनजी मिस्त्री को 27 मार्च 1991 को लिखा था वायरल हो रहा है। दरअसल सायरस मिस्त्री ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किए गए अपने एफिडेबिट में इस चिट्ठी को सबूत के तौर पर शामिल किया है। चिट्ठी के द्वारा वे बातने की कोशिश कर रहे हैं कि टाटा कंपनी में उनका योगदान कितना रहा है।

90 के दशक में प्रमुख कंपनियों का नेतृत्व करने दो बड़े बिजनेसमैन के बीच लड़ाई इतनी भी मामूली नहीं थी। चिट्ठी में टाटा बता रहे हैं कि मिस्त्री उनके लिए कितने महत्वपूर्ण थे। वे चिट्ठी में सायरस के योगदान और समथर्न का शुक्रिया कर रहे हैं। चेयरमैन के रूप में कार्यालय संभालने के तीसरे दिन बाद टाटा ने पल्लोनजी को लिखा, वे खत में उन्हें "पल्लोन" के रूप में संबोधित करते हैं। इस चिट्ठी में वे अपने करियर के शुरुआती सालों में पल्लोनजी के समर्थन और प्रोत्साहन का शुक्रिया करते हैं।

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क्या लिखा है चिट्ठी में? 

टाटा ने पत्र को समाप्त करते हुए कहा, "अंत में, मैं ये कहना चाहता हूं कि मैं कभी भी आपको या आपके परिवार को चोट पहुंचाने के लिए कुछ नहीं करूंगा।" हालांकि अब हालात इतने बदल चुके हैं कि चिट्ठी में टाटा के शब्दों और आज में कोई प्रासंगिकता नजर नहीं आती।

लंबे समय से चल रही लड़ाई

बता दें कि अक्टूबर 2016 में साइरस मिस्त्री को टाटा ग्रुप के चेयरमैन के पद से हटाने के बाद, दो पारसी कारोबारी परिवार होल्डिंग कंपनी, टाटा संस के गैर-कानूनी निष्कासन और निजीकरण को लेकर कानूनी लड़ाई में लड़ रहे हैं। इसमें मिस्त्री परिवार की हिस्सेदारी 18.37 प्रतिशत है। इस मामले में टाटा ने नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) में जीत हासिल कर ली थी और अपीलीय ट्रिब्यूनल ने उस आदेश को पलट दिया, जिसमें समूह को चेयरमैन के रूप में साइरस को बहाल करने के लिए कहा गया था।

टाटा ने कंपनी को बदनाम करने के लगाए आरोप

सुप्रीम कोर्ट (SC) ने पिछले महीने नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT) के आदेश पर रोक लगा दी थी और मामले की सुनवाई के लिए भेज दिया था। इस बीच, साइरस मिस्त्री और उनकी निवेश फर्मों (साइरस इन्वेस्टमेंट्स प्राइवेट लिमिटेड और स्टर्लिंग इनवेस्टमेंट्स प्राइवेट लिमिटेड) ने टाटा संस में निर्देशन की अनुमति देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक नई याचिका दायर की है, जिसे सार्वजनिक होने के बाद एक निजी कंपनी में बदल दिया गया था। टाटा ने अपनी याचिका में कहा था कि, मिस्त्री के फैसलों से टाटा संस का नाम खराब हुआ और वे कंपनी के निदेशक बोर्ड का भरोसा पूरी तरह खो चुके थे। 

कंपनी में टाटा ने ऐसे बनाई अपनी जगह

जब 1991 में जेआरडी टाटा ने रतन टाटा को अपना उत्तराधिकारी चुना, तब युवा टाटा समूह की कंपनियों में कम ही जाने जाते थे और रज़ी मोदी, दरबारी सेठ और अजीत केलकर जैसे दिग्गजों के सामने कमजोर माने जाते थे। ये सभी बिजनेस के यौद्धा माने जाते थे और टाटा स्टील, टाटा केमिकल्स और इंडियन होटल्स कंपनी के मजबूत परिचालन प्रमुख थे। इसलिए एक डर था कि रतन टाटा को उनके द्वारा दरकिनार कर दिया जाएगा।

दुश्मनों को साइड करते गए टाटा

बहरहाल टाटा ने दूसरे पारसी उद्योगपति नुस्ली वाडिया की मदद से इसका मुकाबला किया। हालांकि, साइरस मिस्त्री को हटाए जाने के बाद से वाडिया और टाटा के संबंध में खटास आ गई। टाटा समूह की प्रमुख कंपनियों में शामिल वाडिया को साइरस के समर्थन के लिए टाटा द्वारा बाहर कर दिया गया था। 

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