सिर्फ ब्याज दर घटाने से दूर नहीं होगी आर्थिक सुस्ती, SBI ने बताया- सरकार को क्या करना चाहिए

एसबीआई रिसर्च के अर्थशास्त्रियों ने सोमवार को आगाह किया कि यदि सरकार राजकोषीय घाटे को काबू में रखने के लिए खर्च में किसी तरह की कटौती करती है तो यह वृद्धि की दृष्टि से ठीक नहीं होगा।
 

Asianet News Hindi | Published : Sep 16, 2019 2:42 PM IST / Updated: Sep 16 2019, 08:30 PM IST

मुंबई. अर्थव्यवस्था की सुस्ती दूर करने के लिए अकेले नरम मौद्रिक रुख अपनाने से कुछ नहीं होगा, इसके बजाय सरकार को विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्र की मांग बढ़ाने
पर ध्यान देना चाहिये। एसबीआई रिसर्च की रिपोर्ट में यह बात कही गई है।

एसबीआई रिसर्च के अर्थशास्त्रियों का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्र में मांग बढ़ाने के लिए सरकार को राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना के जरिये आगे बढ़कर व्यय करना
होगा।

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एसबीआई रिसर्च के अर्थशास्त्रियों ने सोमवार को आगाह किया कि यदि सरकार राजकोषीय घाटे को काबू में रखने के लिए खर्च में किसी तरह की कटौती करती है तो
यह वृद्धि की दृष्टि से ठीक नहीं होगा।

रिपोर्ट में कहा गया है कि अर्थव्यवस्था की मौजूदा सुस्ती को केवल मौद्रिक नीति में होने वाले उपाय से ही हल नहीं किया जा सकता। सरकार को अर्थपूर्ण तरीके से
मनरेगा और पीएम-किसान के शुरू में ही व्यय बढ़ाकर मांग में गिरावट को रोकना हेागा।

पीएम-किसान पोर्टल के अनुसार इस योजना के लाभार्थियों की संख्या अभी 6.89 करोड़ ही है, जबकि लक्ष्य 14.6 करोड़ का है। किसानों के आंकड़ों के अनुमोदन की
धीमी रफ्तार की वजह से यह स्थिति है। रिपोर्ट कहती है कि ग्रामीण मांग बढ़ाने के लिए इस काम को तेजी से करना होगा।

मनरेगा की वेबसाइट के अनुसार केंद्र द्वारा 13 सितंबर तक कुल 45,903 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं, लेकिन इसमें से सिर्फ 73 प्रतिशत यानी 33,420 करोड़ रुपये
की राशि ही खर्च हुई है।

पूंजीगत व्यय का बजट अनुमान 3,38,085 करोड़ रुपये है। जुलाई तक इसमें से सिर्फ 31.8 प्रतिशत राशि ही खर्च हुई थी। एक साल पहले समान अवधि में बजट
अनुमान का 37.1 प्रतिशत राशि खर्च कर ली गई थी।

रिपोर्ट के अनुसार 2007-14 के दौरान निजी निवेश का हिस्सा मूल्य के हिसाब से 50 प्रतिशत था जबकि 2015-19 के दौरान यह उल्लेखनीय रूप से घटकर 30
प्रतिशत रह गया।

एसबीआई रिसर्च की रिपोर्ट ने कहा है कि राजकोषीय घाटा 3.3 प्रतिशत तक रहना चाहिए। बुनियादी ढांचा क्षेत्र खर्च के लिए अतिरिक्त वित्तीय प्रभाव इसके ऊपर होना
चाहिए।

(यह खबर न्यूज एजेंसी पीटीआई भाषा की है। एशियानेट हिंदी की टीम ने सिर्फ हेडलाइन में बदलाव किया है।)

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