लोन मोरेटोरियम (Loan moratorium) पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सरकारी बैंकों को 1800 से 2000 करोड़ रुपए तक का नुकसान उठाना पड़ सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में 2 करोड़ से ज्यादा लोन के मामले में कम्पाउंड इंटरेस्ट यानी चक्रवृद्धि ब्याज पर छूट दी है।
बिजनेस डेस्क। लोन मोरेटोरियम (Loan moratorium) पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सरकारी बैंकों को 1800 से 2000 करोड़ रुपए तक का नुकसान उठाना पड़ सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में 2 करोड़ से ज्यादा लोन के मामले में कम्पाउंड इंटरेस्ट यानी चक्रवृद्धि ब्याज पर छूट दी है। उच्चतम न्यायालय ने कोविड-19 महामारी (Covid-19 Pandemic) की वजह से मार्च-अगस्त, 2020 के दौरान कर्ज की किस्त के भुगतान पर छूट की अवधि के लिए चक्रवृद्धि ब्याज को माफ कर दिया है। यह ब्याज पर लगने वाला ब्याज होता है।
सरकार पर 5,500 करोड़ रुपए का बोझ
कर्ज की किस्त के भुगतान पर छूट के दौरान चक्रवृद्धि ब्याज समर्थन योजना से सरकार पर 2020-21 में 5,500 करोड़ रुपए का बोझ पड़ा है। बैंकों के सूत्रों के मुताबिक, शुरुआत में 60 फीसदी कर्जदारों ने इस छूट का लाभ उठाया था। वहीं, लॉकडाउन में छूट के बाद यह आंकड़ा 40 फीसदी और उससे भी नीचे आ गया था। कॉरपोरेट के मामले में जहां तक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का सवाल है, यह आंकड़ा 25 फीसदी के निचले स्तर पर है।
रिजर्व बैंक ने कब तक दी थी भुगतान से छूट
जानकारी के मुताबिक, बैंक किस्त के भुगतान की छूट की अवधि पर कम्पाउंड इंटरेस्ट में छूट देंगे। अगर किसी कस्टमर मे 3 महीने के लिए किस्त भुगतान की छूट ली है, तो 3 महीने के लिए उसका चक्रवृद्धि ब्याज माफ कर दिया जाएगा। रिजर्व बैंक ने कोरोना महामारी की वजह से सभी टर्म लोन पर 1 मार्च से 31 मई, 2020 तक की किस्तों के भुगतान पर छूट दी थी। बाद में इसे बढ़ा कर 31 अगस्त, 2020 कर दिया गया था।
IBA ने की सरकार से यह मांग
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट का निर्देश सिर्फ उन खातों तक ही सीमित है, जिनमें भुगतान की छूट का फायदा लिया गया है। ऐसे में, एक अनुमान के मुताबिक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को 2000 करोड़ रुपए का नुकसान हो सकता है। इस बीच, इंडियन बैंक्स एसोसिएशन (IBA) ने सरकार को लिखा है कि बैंकों को इसकी भरपाई की जाए।