मां की मेहनत की बदौलत पाया यह मुकाम, झुग्गी बस्ती से निकल कर अब अमेरिका में कर रहे काम

जब इंसान किसी लक्ष्य को हासिल करने का दृढ़ संकल्प कर लेता है तो लाख परेशानियां उसका रास्ता नहीं रोक सकतीं। जयकुमार वैद्य मुंबई की एक चॉल में रहते थे। लेकिन उनकी मां ने उन्हें उच्च शिक्षा दिलवाने के लिए दिन-रात एक कर दिया और आज जयकुमार अमेरिका के वर्जीनिया विश्वविद्यालय में ग्रैजुएट रिसर्च असिस्टेंट के पद पर काम कर रहे हैं। 

करियर डेस्क। जब इंसान किसी लक्ष्य को हासिल करने का दृढ़ संकल्प कर लेता है तो लाख परेशानियां उसका रास्ता नहीं रोक सकतीं। जयकुमार वैद्य मुंबई की एक चॉल में रहते थे। लेकिन उनकी मां ने उन्हें उच्च शिक्षा दिलवाने के लिए दिन-रात एक कर दिया और आज जयकुमार अमेरिका के वर्जीनिया विश्वविद्यालय में ग्रैजुएट रिसर्च असिस्टेंट के पद पर काम कर रहे हैं। उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाने में उनकी मां की भूमिका सबसे अहम रही। उनकी मां नलिनी का अपने पति से तलाक हो गया था। इसके बाद मुंबई के कुर्ला की एक चॉल में रहने वाली नलिनी ने अकेले अपने बेटे को पालन-पोषण करते हुए उसे अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए दिन-रात एक कर दिया। 

बेटे के लिए पैकेजिंग फर्म में किया काम
अकेले औरत को जिंदगी जीने में कितनी परेशानी का सामना करना पड़ता है, यह तो सिर्फ वही बता सकती है। पति से तलाक के बाद नंदिनी को बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ा। लेकिन उन्होंने अपने जीवन का एक ही लक्ष्य बना लिया कि किसी भी तरह बेटे जयकुमार को अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलानी है। इसके लिए उन्हें मेहनत-मशक्कत के कई काम किए। जयकुमार वैद्य का जन्म 15 सितंबर, 1994 को हुआ था। मां ने शुरुआत से ही उनकी शिक्षा पर ध्यान दिया। पैसे की कमी के कारण कई-कई दिनों तक मां-बेटे को सिर्फ बड़ा-पाव पर गुजारा करना पड़ता था, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। बेटे की पढ़ाई जारी रहे, इसके लिए उन्होंने एक पैकेजिंग फर्म में काम करना शुरू किया, जहां 8000 रुपए मासिक वेतन मिलता था। लेकिन किसी वजह से यह नौकरी भी छूट गई।  

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जयकुमार ने भी पढ़ाई के साथ किया काम
जयकुमार जब बड़े हो गए तो उन्होंने भी पढ़ाई के साथ काम करना शुरू कर दिया। उन्होंने टीवी बनाना सीख लिया था। वे टीवी मैकेनिक का काम करने लगे। इसी बीच, उन्हें एक मंदिर के ट्रस्ट से पढ़ाई जारी रखने के लिए आर्थिक मदद मिली। इंडियन डेवलपमेंट फाउंडेशन ने भी इंजीनियरिंग में एडमिशन के लिए उन्हें बिना ब्याज का कर्ज दिया। 

मिले कई पुरस्कार
जब जयकुमार इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे, तभी उन्होंने रोबोटिक्स के क्षेत्र में खास काम किया। इसके बाद उन्हें स्टेट और नेशनल लेवल के चार पुरस्कार मिले। इससे उनका हौसला बढ़ा। इसके बाद उन्होंने नैनो फिजिक्स में अध्ययन करना शुरू कर दिया। जयकुमार को शुरुआत में लार्सन एंड टूब्रो कंपनी में इंटर्नशिप करने का मौका मिला। इसके बाद उन्हें टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च में नौकरी मिल गई। उनका वेतन 30,000 रुपए मासिक था। इससे उनकी गाड़ी पटरी पर आने लगी। उन्होंने अपने कर्जे लौटाए और साथ ही इंजीनियरिंग के छात्रों को कोचिंग भी देने लगे। इस बीच, उन्होंने जीआईआई और टोफल एग्जाम की तैयारी भी की। 

कैसे आया वर्जीनिया यूनिवर्सिटी से बुलावा
जयकुमार बताते हैं कि टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च में रिसर्च एसोसिएट का काम करने के दौरान ही उनके दो रिसर्च पेपर इंटरनेशनल जर्नल्स में छपे। इसके बाद उन्हें वर्जीनिया यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएट रिसर्च एसोसिएट पद पर काम करने के लिए बुलावा आया। वहां काम पूरा करने के बाद उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि मिलेगी।

भारत में चाहते हैं कंपनी इस्टैब्लिश करना 
जयकुमार का कहना है कि डॉक्टरेट कर लेने के बाद उनकी इच्छा भारत में एक ऐसी कंपनी स्थापित करने की है, जहां नैनो टेक्नोलॉजी पर काम हो। उनका कहना है कि उनकी दिलचस्पी नैनेस्केल फिजिक्स में है और इसी से संबंधित टॉपिक पर वे रिसर्च कर रहे हैं। वे चाहते हैं कि नैनोस्केल डिवाइस बनाए जाएं। वे खुद भी इस दिशा में काम कर रहे हैं। फिलहाल, जयकुमार अपनी मां को अमेरिका बुलाने की तैयारी में लगे हुए हैं। उनका कहना है कि आज वे जो भी हैं, अपनी मां की बदौलत हैं। मां ने अगर उनके लिए दिन-रात मेहनत नहीं की होती और उन्हें कठिन परिस्थितियों में भी संघर्ष के लिए प्रेरित नहीं किया होता तो आज वे इस जगह पर नहीं होते। 

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