
India Pakistan Partition Story 1947: भारत की आजादी का दिन 15 अगस्त 1947, वह दिन जिसका सपना करोड़ों भारतीयों ने पीढ़ियों तक देखा था। 90 साल लंबा संघर्ष, हजारों क्रांतिकारियों की कुर्बानियां, असंख्य आंदोलन और जेल की सलाखों के पीछे बिताए गए साल, सबका एक ही मकसद था आजाद भारत। लेकिन जब आजादी का सूरज उगा, तो उसके साथ एक ऐसा काला साया भी था जिसने खुशियों को आंसुओं में बदल दिया देश का विभाजन। कहते हैं, बंटवारा केवल जमीन का नहीं हुआ था, बंटवारा हुआ था इंसानों का, उनके रिश्तों का, उनकी यादों और भावनाओं का और ये घाव इतने गहरे थे कि पीढ़ियां बीत गईं, पर दर्द अब भी जिन्दा है।
उस समय देश में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी धर्मों के लोग रहते थे। लेकिन मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की मांग तेज कर दी। अगस्त 1946 में डायरेक्ट एक्शन डे के नाम पर कलकत्ता में भयानक दंगे भड़के। हजारों लोग मारे गए और पूरे देश में डर का माहौल बन गया। नेताओं पर दबाव डाला गया कि अगर गृहयुद्ध रोकना है, तो देश को दो हिस्सों में बांटना पड़ेगा। 1941 की जनगणना के मुताबिक भारत में लगभग 29 करोड़ हिंदू और 4 करोड़ मुसलमान थे, बाकी अन्य धर्मों के लोग। फिर भी धर्म के नाम पर एक बड़ा भूभाग काटकर पाकिस्तान बना दिया गया। इस फैसले में करोड़ों लोगों से राय तक नहीं ली गई।
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विभाजन के बाद 1.4 करोड़ से ज्यादा लोग बेघर हो गए। पाकिस्तान से 72 लाख हिंदू और सिख भारत आए और भारत से लगभग उतने ही मुसलमान पाकिस्तान गए। लाखों लोग ट्रेन और पैदल सीमाएं पार करने लगे। किसी के पास घर छोड़ने के अलावा कोई चारा नहीं था। कई परिवारों ने जमीन, दुकान, खेत, मकान सबकुछ वहीं छोड़ दिया। ट्रेनें जो पाकिस्तान से भारत आतीं, उनमें अक्सर लाशें भरी होतीं। जिनके प्रियजन उन ट्रेनों में थे, उनके लिए वह आखिरी सफर बन जाता।
विभाजन के दौरान अनुमान है कि 10 से 20 लाख लोग मारे गए। जगह-जगह दंगे भड़के। पंजाब, बंगाल, सिंध, कश्मीर, हैदराबाद, हर जगह इंसानियत का खून बहा। 80,000 से ज्यादा महिलाओं का अपहरण, बलात्कार या हत्याएं हुई। कई महिलाओं को पाकिस्तान में जबरन रोक कर धर्म बदलने और शादी करने पर मजबूर किया गया। सिंधी और पंजाबी हिंदुओं ने तो अपना पूरा प्रदेश खो दिया। सिंधी भाषा और संस्कृति धीरे-धीरे लुप्त होने लगी। पाकिस्तान में जो सिंधी मुसलमान बचे, उन्होंने भी उर्दू अपनाई। विभाजन के तुरंत बाद, कश्मीर पर कबायली हमलावर टूट पड़े। लूटपाट और कत्लेआम हुआ। कश्मीरी पंडितों को अपने घर छोड़कर जम्मू की ओर पलायन करना पड़ा।
भारत और पाकिस्तान विभाजन की सबसे बड़ी त्रासदी महिलाओं के हिस्से आई। हजारों महिलाओं और बच्चियों को अगवा किया गया, उनके साथ अत्याचार हुए। कई अपने परिवार से बिछुड़ गईं और कभी लौट न सकीं। नतीजा यह हुआ कि आजादी की सुबह के साथ एक ऐसा जख्म भी मिला, जो आज तक हरा है। लाखों लोगों की यादें, घर, रिश्ते सब उस बंटवारे में छिन गए और जो लोग जिंदा बचे, वे अपनी कहानियों में वह दर्द पीढ़ियों तक सुनाते रहे।
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