Indias First Independence Day: 15 अगस्त 1947 के पहले स्वतंत्रता दिवस की अनसुनी कहानियां और ऐतिहासिक पल जानिए। कैसा था आजादी की पहली सुबह का माहौल, लोगों की भावनाएं और जश्न का रंग, पढ़ें।
15 August Independence Day 2025: 15 अगस्त 1947 वह तारीख है जिसे सुनते ही हर भारतीय का दिल गर्व से भर जाता है। यह सिर्फ कैलेंडर का एक दिन नहीं, बल्कि सदियों की लड़ाई, त्याग और बलिदान का फल था। आधी रात को जब घड़ी ने बारह बजाए, तब एक नए भारत ने जन्म लिया। पूरा देश खुशी में डूबा था, लेकिन इसके साथ ही एक दर्द भी था बंटवारे का घाव। उस दिन का माहौल सिर्फ जश्न का नहीं, बल्कि भावनाओं, उम्मीदों और अनिश्चितताओं का भी था। जानिए उस ऐतिहासिक सुबह को दिल्ली, गांव-कस्बे, अखबार, नेता और आम लोग कैसे जी रहे थे।
भारत की स्वतंत्रता के बाद दिल्ली की पहली सुबह: खुशी और बेचैनी का संगम
आजादी की पहली सुबह से पहले वाली रात दिल्ली के लिए बहुत खास थी। ब्रिटिश राज का आखिरी दिन खत्म हो चुका था और नया भारत शुरू हो रहा था। राजधानी में एक अजीब-सी खामोशी थी, जैसे लोग सांस रोककर किसी बड़े पल का इंतजार कर रहे हों। रात 12 बजे, संविधान सभा में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने ऐतिहासिक भाषण "Tryst with Destiny" दिया, जिसमें उन्होंने कहा- जब पूरी दुनिया सो रही होगी, भारत जीवन और स्वतंत्रता की ओर जागेगा। यह भाषण रेडियो पर लाइव सुनाया गया और लाखों लोग अपने-अपने घरों में रेडियो से कान लगाकर इसे सुन रहे थे।

भारत की आजादी की सुबह जब लाल किले से भरी गई पहली हुंकार
सुबह होते ही लाल किले की प्राचीर पर पंडित नेहरू ने तिरंगा फहराया। हजारों लोग वहां मौजूद थे, जो अपनी आंखों से इस पल को देखने के लिए घंटों पहले से इकट्ठा हो गए थे। तिरंगा लहरते ही भीड़ में जयकारों की गूंज उठी, लोग जमीन को छूकर माथे से लगा रहे थे, मिठाइयां बांटी जा रही थीं और कुछ लोग भावुक होकर रो पड़े थे।
भारत की आजादी का जश्न के बीच बंटवारे का दर्द
हालांकि 15 अगस्त खुशी का दिन था, लेकिन इस खुशी के पीछे बंटवारे का गहरा दर्द भी छिपा था। पाकिस्तान बनने के बाद पंजाब और बंगाल में दंगे भड़क चुके थे। दिल्ली, लाहौर और अमृतसर जैसे शहरों में शरणार्थियों की भीड़ उमड़ पड़ी थी। ऑल इंडिया रेडियो के पत्रकार खुर्शीद अनवर ने अपनी रिपोर्ट में लिखा- दिल्ली की सड़कों पर एक ओर तिरंगा लहरा रहा था और दूसरी ओर ट्रेनें लाशों से भरी आ रही थीं। महात्मा गांधी उस दिन दिल्ली में नहीं थे। वे कोलकाता के नोआखाली में सांप्रदायिक हिंसा रोकने के लिए उपवास पर बैठे थे। उनका कहना था- यह स्वतंत्रता अधूरी है, अगर इसमें इंसानियत नहीं है।

भारत के लोगों के मन में उमड़ रही थीं मिश्रित भावनाएं
गांव-कस्बों में अलग-अलग तरह की प्रतिक्रियाएं थीं। कहीं रातभर दीये जलाए गए, लोकगीत गाए गए और झंडा फहराया गया। वहीं, सरहदी इलाकों में डर और अनिश्चितता का माहौल था। लखनऊ के सरदार बलबीर सिंह ने अपनी डायरी में लिखा- हमें गर्व था कि अब हम आजाद हैं, लेकिन मन में यह डर भी था कि अब हमारा भविष्य क्या होगा।
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आजादी की पहली सुबह प्रेस और अखबारों की भूमिका
उस दिन प्रेस की भूमिका बेहद अहम थी। अखबारों ने विशेष संस्करण छापे, नेताओं के भाषण और तस्वीरें प्रकाशित कीं और आजादी की खबर को घर-घर पहुंचाया। 'आजाद हिंद', 'नेशनल हेराल्ड' और 'जनसेवा' जैसे अखबारों ने इसे जन-उत्सव की तरह पेश किया, लेकिन साथ ही बंटवारे की त्रासदी को भी उजागर किया। 15 अगस्त 1947 सिर्फ एक जश्न का दिन नहीं था, बल्कि यह वो तारीख थी जिसमें खुशियां और आंसू, उम्मीदें और डर, एक साथ मौजूद थे। यह वह दिन था जब भारत ने पहली सांस आजादी की हवा में ली और साथ ही अपने भविष्य की जिम्मेदारी खुद उठाई।
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