जापान में छात्रों का टॉपलेस हेल्थ चेकअप: क्या है और क्यों हो रहा विवाद?

Topless health checkup of school students in Japan: जापान में स्कूली बच्चों का टॉपलेस हेल्थ चेकअप एक विवाद का विषय बन गया है, जहां बच्चों को चेकअप के दौरान कमर से ऊपर के कपड़े उतारने पड़ते हैं। अब इस प्रथा को बंद करने की मांग उठ रही है। जानिए

Anita Tanvi | Published : Sep 6, 2024 11:34 AM IST

Topless health checkup of school students in Japan: जापान में स्कूलों में छात्रों का टॉपलेस हेल्थ टेस्ट एक विवादास्पद प्रथा बन गई है, जिसमें छात्रों को हेल्थ चेकअप के दौरान कमर से ऊपर तक कपड़े उतारने के लिए कहा जाता है। यह प्रथा माता-पिता और छात्रों के लिए असहजता और चिंता का कारण बन रही है और अब इसे खत्म करने की मांग जोर पकड़ रही है।

क्या है टॉपलेस हेल्थ चेकअप? 

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इस हेल्थ चेकअप के दौरान, 5 से 18 साल के छात्रों, जिनमें लड़के और लड़कियां दोनों शामिल हैं, से कमर से ऊपर के कपड़े उतारने के लिए कहा जाता है। इसका उद्देश्य शारीरिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की जांच करना है, जैसे कि त्वचा की बीमारियां (जैसे एटोपिक डर्मेटाइटिस), हार्ट और अन्य फिजिकल प्रॉलम्स।

क्यों हो रहा है विरोध? 

बच्चे, विशेष रूप से लड़कियां, इस प्रक्रिया से काफी असहज महसूस करती हैं। कई छात्रों ने बताया है कि उन्हें इस बारे में किसी से बात करने में हिचकिचाहट होती है और यह उनके लिए एक मानसिक पीड़ा का कारण बनता है।

अलग-अलग स्कूलों में अलग नियम

जापान में हर स्कूल में यह प्रथा अनिवार्य नहीं है। स्थानीय शिक्षा बोर्ड और हेल्थ प्रोफेशनल्स यह तय करते हैं कि उनके स्कूलों में यह प्रक्रिया लागू होगी या नहीं। कुछ स्कूलों में यह नियम लागू है, जबकि कुछ में छात्रों को कपड़े पहने रहने की अनुमति दी जाती है।

कब से हो रहा है ये टेस्ट? 

यह प्रथा द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के कठिन समय में शुरू हुई थी, जब स्कूलों को बच्चों की शारीरिक सेहत पर नजर रखने की जिम्मेदारी दी गई थी। डॉक्टरों का मानना है कि यह परीक्षण शारीरिक बीमारियों की शुरुआती पहचान के लिए जरूरी है। हालांकि, आज के समय में इसके जारी रहने पर सवाल उठ रहे हैं।

क्या हो रहे हैं बदलाव? 

योकोहामा जैसे कुछ क्षेत्रों में, शिक्षा मंत्रालय ने स्कूलों से छात्रों की निजता और भावनाओं का ध्यान रखते हुए चेकअप का माहौल बेहतर बनाने के निर्देश दिए हैं। इसमें लड़के-लड़कियों की अलग-अलग जांच, पर्दे की व्यवस्था और शिक्षकों की उपस्थिति सुनिश्चित करने जैसे कदम शामिल हैं।

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