सूर्य और पृथ्वी से कितनी दूर है लैगरेंज पॉइंट, जहां जा रहा ISRO का आदित्य L1

आदित्य एल1 को पृथ्वी और सूर्य के खगोलीय तंत्र के लैगरेंज 1 पॉइंट पर स्थापित किया जाएगा। इसलिए आदित्य एल1 काफी खास माना जा रहा है। यहां रहकर वह सूर्य के बारें में अध्ययन करेगा।

Satyam Bhardwaj | Published : Aug 30, 2023 7:36 AM IST / Updated: Sep 02 2023, 09:43 AM IST

करियर डेस्क : चांद पर इतिहास रचने के बाद अब इंडियन स्पेस एजेंसी इसरो (ISRO) सूरज के पास पहुंचने की तैयारी कर रहा है। 2 सितंबर, 2023 को इसरो का आदित्य एल1 लॉन्च होगा। सूर्य की जानकारी हासिल करने के लिए इसरो का यह पहला अभियान है। Aditya-L1 सूर्य और पृथ्वी के एक प्रमुख बिंदु लैगरेंज 1 पर स्थापित किया जाएगा। इस मिशन के साथ एक बार फिर लैगरेंज पॉइंट (Lagrange point) की चर्चा बढ़ गई है। आइए जानते हैं लैंगरेज पॉइंट क्या है और यह हमारी पृथ्वी और सूर्य से कितना दूर है...

पृथ्वी से कितनी दूर है लैगरेंज पॉइंट

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सूर्य के पास किसी अभियान को भेजना मुश्किल है। ऐसे में नासा का सोलर पार्कर यान सूर्य के कुछ पास है। यह बुध ग्रह के पास तक भी जा रहा है। यूरोपीय स्पेस एजेंसी ईसा का सोलर ऑर्बिटर मिशन भी सूर्य की तरफ जा रहा है। इन सबके बीच आदित्य एल1 इसलिए खास माना जा रहा, क्योंकि यह सूर्य के पास नहीं बल्कि एक खास पॉइंट पर भेजा जा रहा है। आदित्य एल1 को पृथ्वी और सूर्य के खगोलीय तंत्र के लैगरेंज 1 पॉइंट पर स्थापित किया जाएगा। सौरमंडल में पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाती है। इस दौरान कुछ जगहों पर दोनों का गुरुत्वाकर्षण एक-दूसरे को कम कर संतुलन में लाता है। वैज्ञानिक इन जगहों को लैगरेंज बिंदु कहते हैं। लैगरेंज पॉइंट 1 पृथ्वी से करीब 15 लाख किमी दूर सूर्य और पृथ्वी के बीच में है।

लैगरेंज बिंदु कितनी तरह का होता है

सूर्य-पृथ्वी और उसके जैसे तंत्र गुरुत्वाकर्षण के लिहाज से 5 जगह काफी विशेष हैं। इसमें 2 स्थिर और 3 अस्थिर बिंदु हैं। L1, L2 और L3 अस्थिर बिंदु, जबकि L4 और L5 स्थिर बिंदु कहलाते हैं। एल1 सूर्य और पृथ्वी के बीच, एल2 पृथ्वी के पीछे सूर्य की विपरीत दिशा और एल 3 सूर्य के पीछे पृथ्वी की कक्षा का बिंदु है। जबकि एल4 और एल5 पृथ्वी की कक्षा में ऐसे बिंदु हैं, जो पृथ्वी-सूर्य के साथ मिलकर समकोण त्रिभुज का आकार बनाते हैं।

लैगरेंज पॉइंट पर ही क्यों भेजा जा रहा आदित्य एल1

लैगरंज बिंदु ऐसे स्थान हैं, जहां अगर कुछ रख दिया जाए तो वह वहां स्थिर हो जाएगा। मतलब वह चीज उसी स्थान पर ही रहेगी। उसे पृथ्वी और सूर्य के गुरुत्वाकर्षण से जूझना नहीं पड़ेगा। इसी वजह से आदित्य एल1 लैगरेंज पॉइंट पर ही भेजा जा रहा है ताकि वह उसी स्थान पर बना रहे। इसके अलावा आदित्य एल1 वेधशाला पृथ्वी के घूर्णन की वजह से दिन रात की समस्या से भी पूरी तरह बच जाएगा। इस जगह आदित्य एल1 पर सूर्यग्रहण का प्रभाव भी नहीं पड़ेगा। यहां से आदित्य एल 1 की मदद से इसरो को लगातर सूर्य का अध्ययन करने में मदद मिलती रहेगी।

आदित्य एल-1 से क्या-क्या पता चलेगा

आदित्य एल-1 की मदद से इसरो सूर्य के वातावरण और उसके बारें में गहन अध्ययन करने में मदद मिलेगी। इसके साथ ही आदित्य एल 1 सूर्य के ऊपरी वायुमंडल यानी क्रोमोस्फीयर, आंशिक आयनीकृत प्लाज्मा की भौतिकी, कोरोनल मास इजेक्शन की शुरुआत, क्रोमोस्फीयर और कोरोनल हीटिंग के साथ सौर ज्वालाओं का अध्ययन भी करेगा। इस मिशन से इसरो लैगरेंज बिंदु 1 के आसपास सूर्य से पैदा अंतरिक्ष मौसम के बारें में जानकारी भी हासिल करेगा।

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