Success Story: 20 सालों से रंगाई का काम करने वाली फैमिली से ताल्लुक रखने वाले इस युवक ने अपनी मेहनत से इस काम को बिजनेस का रूप दिया। जानिए अभिषेक सेन गुप्ता की सफलता की कहानी।
Success Story: पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के एक छोटे से गांव के एक युवक की सफलता कहानी बेहद प्रेरक है। इन्होंने अपने सपने काे सच करने की कोशिश की और मेहनत से सफलता पाई। यह युवक हैं अभिषेक सेन गुप्ता जिनकी इच्छा अपना उद्यम शुरू करने की थी। नॉन ग्रेजुएट अभिषेक अपने सपने को पूरा करने के लिए एक अच्छे गाइडेंस की तलाश में थे। इसी तलाश में वे एमजीआईआरआई तक पहुंचे। अपने प्रयासों से उन्होंने पहले मोबाइल के माध्यम से एमजीआईआरआई से जरूरी नॉलेज लिया, फिर वह स्वयं एमजीआईआरआई पहुंचे और खादी व कपड़ा डिविजन की साइंटिस्ट टीम से मिले और उन्हें अपने इलाके में अपना खुद का उद्यम शुरू करने की अपनी इच्छा के बारे में बताया।
रंगाई का काम करने वाली फैमिली से
अभिषेक सेन एक ऐसे परिवार से हैं, जो पिछले 20 वर्षों से रंगाई का काम कर रहा था। वह इसी क्षेत्र में और आगे बढ़ना चाहते थे और अपना खुद का उद्यम शुरू करना चाहते थे। पहले चरण में उन्हें एमजीआईआरआई में अपना उद्यम शुरू करने के लिए बेसिक नीड्स और स्टेप बाइ स्टेप आगे बढ़ने के बारे में जानकारी दी गई। एमजीआईआरआई के गाइडेंस में वे 20 दिनों तक प्राकृतिक रंगों के साथ खादी की रंगाई पर स्किल डेवलपमेंट ट्रेनिंग में शामिल हुए।
ट्रेनिंग के बाद उद्यम शुरू करने की तैयारी
एमजीआईआरआई में ट्रेनिंग पूरा होने के बाद उन्होंने अपने गांव बेनेपुकुर पारा, बीरभूम, पश्चिम बंगाल में अपना उद्यम शुरू करने की तैयारी शुरू कर दी। वह अपना बिजनेस माइक्रो लेवल पर शुरू करने की योजना बना रहे थे, इसके लिए आवश्यक धन की व्यवस्था उनकी फैमिली के सहयोग से हुई।
करुंगन नाम से शुरू किया अपना बिजनेस
अगस्त, 2016 में उन्होंने अपना उद्यम करुंगन नाम से शुरू किया। यहां बाटिक, प्राकृतिक रंगाई, टाई एंड डाई, शिबोरी लहरिया आदि सूती और रेशमी कपड़े की चीजों पर किया जाता है। यहां उन्होंने 5 लोगों को रोजगार भी दिया है और अपनी पारंपरिक रंगाई यूनिट शुरू की है।
हर महीने हो रही 50 हजार की कमाई
वर्तमान में प्रतिदिन 100 मीटर कपड़ा या तो रंगा जा सकता है या प्रिंट किया जा सकता है। रंगे या प्रिंट की गई चीजों की मार्केटिंग लोकल मार्केट में बिक्री आउटलेट के माध्यम से किया जा रहा है। वह अपनी सामग्री की मार्केटिंग के लिए देश भर में स्थानीय, जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर की सभी प्रदर्शनियों में भी भाग लेते हैं और लगभग 50,000 रु. हर महीने कमा रहे हैं।
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