आदित्य एल1 मिशन का नेतृत्व करने वाली महिला साइंटिस्ट निगार शाजी के अनुसार उनका परिवार चाहता था कि वे एक डॉक्टर बनें लेकिन उन्होंने इंजीनियरिंग को चुना। शाजी कहती हैं इसरो में कोई लिंग पूर्वाग्रह नहीं, केवल प्रतिभा मायने रखती है।
Nigar Shaji ISRO Aditya L1: मैथ्स ग्रेजुएट पिता की बेटी वैज्ञानिक निगार शाजी भारत के आदित्य एल-1 उपग्रह का नेतृत्व कर रही है। निगार शाजी बेंगलुरु में इसरो के हिस्से, यूआर राव सैटेलाइट सेंटर में एक वैज्ञानिक हैं और भारत की पहली अंतरिक्ष-आधारित सौर वेधशाला की प्रोजेक्ट डायरेक्ट हैं। वह उन कई महिलाओं में से एक हैं जिन्होंने जटिल सैटेलाइट मिशन में भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी की टीमों का नेतृत्व किया है। अंतरिक्ष में चार महीने से अधिक लंबे समय लगाकर आदित्य एल1, 3.7 मिलियन किमी से अधिक की दूरी तय करके सूर्य को नमस्कार करते हुए सूर्य का अध्ययन करने में सक्षम हुआ है। साइंटिस्ट शाजी के अनुसार केवल कुछ ही देशों ने अंतरिक्ष-आधारित सौर वेधशालाएं बनाने का साहस किया है और भारत इस चुनिंदा क्लब में शामिल हो गया है।
इसरो में जेंडर नहीं टैलेंट का है महत्व
साइंटिस्ट निगार शाजी के अनुसार इसरो में महिलाओं के लिए कोई ग्लास सीलिंग नहीं है। वह कहती हैं कि इसरो में केवल प्रतिभा मायने रखती है, जेंडर कोई भूमिका नहीं निभाता। वह इसरो के कई हीरोज में से एक हैं। इससे पहले एम वनिता ने चंद्रयान-2 मिशन का नेतृत्व किया था और थेनमोझी सेल्वी के ने अर्थ-इमेजिंग सैटेलाइट के निर्माण का नेतृत्व किया था। हाल ही में कल्पना के ने चंद्रयान -3 मिशन के डिप्टी प्रोजेक्ट डायरेक्टर के रूप में कार्यभार संभाला। इसरो के में पुरुष और महिला वैज्ञानिक मिल कर भारत के लिए कंधे से कंधा मिलाकर काम करते हैं।
पिता ने इंजीनियर बनने के लिए प्रेरित किया
निगार शाजी के पिता ने ही उन्हें इंजीनियर बनने के लिए प्रेरित किया। उनके पिता शेख मीरन मैथ्स ग्रेजुएट थे, जिन्होंने अपनी पसंद से खेती करना शुरू किया। तमिलनाडु के तेनकासी जिले के ग्रामीण सेनगोट्टई में पली-बढ़ी निगार शाजी ने नोबेल पुरस्कार विजेता मैरी क्यूरी की सफलताओं के बारे में सुना, जिससे उन्हें भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन में नौकरी करने की प्रेरणा मिली।
बीआईटी मेसरा से इलेक्ट्रॉनिक्स में मास्टर डिग्री
निगार शाजी की प्रारंभिक शिक्षा सरकारी स्कूल में हुई। इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्युनिकेशन में इंजीनियरिंग की डिग्री के लिए वह मदुरै कामराज विश्वविद्यालय, तिरुनेलवेली के सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ाई करने गईं। बाद में उन्होंने बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, मेसरा से इलेक्ट्रॉनिक्स में मास्टर डिग्री की।
परिवार चाहता था डॉक्टर बनें लेकिन शाजी ने इंजीनियरिंग को चुना
निगार शाजी का परिवार चाहता था कि वह डॉक्टर बनें, लेकिन उन्होंने इंजीनियर बनना चुना। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन में उनकी प्रोफाइल के अनुसार वे वर्तमान में लो अर्थ ऑर्बिट एंड प्लेनेटरी मिशन प्रोजेक्ट डायरेक्ट हैं और इसरो द्वारा डेवलप सभी लो अर्थ ऑर्बिट स्पेसक्राफ्ट और इंटरप्लेनेटरी मिशन के डेवलपमेंट के लिए जिम्मेदार हैं। वह आदित्य-एल1 अंतरिक्ष यान की प्रोजेक्ट डायरेक्टर भी हैं, जो सोलर स्टडी के लिए सन-अर्थ लैग्रेंजियन प्वाइंट पर पहली भारतीय अंतरिक्ष-आधारित सौर वेधशाला है।
स्पेसक्राफ्ट टेस्ट इंजीनियर के रूप में करियर की शुरुआत
उन्होंने अपना करियर एक स्पेसक्राफ्ट टेस्ट इंजीनियर के रूप में शुरू किया और शानदार योगदान के साथ करियर की सीढ़ी चढ़ती गईं। वह सौर मंडल से परे ग्रहों के अध्ययन के लिए शुक्र मिशन और EXO वर्ल्ड मिशन के लिए अध्ययन निदेशक के रूप में अतिरिक्त जिम्मेदारी संभालती हैं।
आदित्य एल1 अपने डेस्टिनेशन पर पहुंचा
आदित्य एल1 सूर्य के करीब अपनी लंबी यात्रा पर था और यह आज अपने डेस्टिनेशन पर पहुंच गया है। लगभग 126 दिनों की यात्रा के बाद आदित्य एल 1 को पृथ्वी से 1.5 मिलियन किमी दूर हेलो ऑर्बिट में स्थापित किया गया, जहां से वह सूर्य का निरंतर अध्ययन कर सकेगा। इसरो के अनुसार आदित्य एल1 से वैज्ञानिक नतीजे आने शुरू हो गए हैं। आदित्य एक उपग्रह है जो यह पूर्व चेतावनी देने में मदद करेगा कि सूर्य कब क्रोधित होने वाला है।
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