
Teachers Day 2025: भारत में हर साल 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन अपने गुरु, टीचर्स और उन लोगों के प्रति आभार जताने के लिए समर्पित है, जिन्होंने हमें किसी न किसी रूप में राह दिखाई अपना मार्गदर्शन दिया। हमारे देश के इतिहास में ऐसे कई महान शिक्षक और शिक्षा सुधारक हुए हैं, जिन्होंने न सिर्फ पढ़ाने का तरीका बदला बल्कि समाज की सोच और भविष्य को भी नई दिशा दी। आज भारत में एजुकेशन अगर उच्च श्रेणी का है, तो इन महान शिक्षकों के योगदानों की वजह से ही। टीचर्स डे 2025 पर जानिए उन 10 महान शिक्षकों के बारे में, जिनकी वजह से भारतीय शिक्षा का चेहरा हमेशा के लिए बदल गया।
भारत के दूसरे राष्ट्रपति और महान दार्शनिक, प्रोफेसर डॉ. राधाकृष्णन का मानना था कि शिक्षा का असली उद्देश्य स्वतंत्र सोच और अच्छे विचारों का विकास है। उनके सम्मान में हर साल 5 सितंबर को टीचर्स डे मनाया जाता है। 5 सितंबर को ही उनकी जयंती भी है, दरअसल उनके कहे अनुसार ही इस दिन का शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और आंध्र विश्वविद्यालय के कुलपति भी बने। शिक्षा जगत में उनका बड़ा योगदान रहा। कलकत्ता विश्वविद्यालय में मानसिक और नैतिक विज्ञान के अध्यक्ष और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पूर्वी धर्म और नैतिकता के प्रोफेसर के तौर पर भी उन्होंने काम किया।
भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले ने 1848 में पुणे के भिडेवाड़ा में लड़कियों और पिछड़े वर्ग के बच्चों के लिए पहली स्कूल शुरू की, जो उस समय एक ऐतिहासिक कदम था। वे जाति और लिंग पर होने वाले भेदभाव के खिलाफ खड़ी रहीं और विधवाओं पर होने वाले अत्याचारों का विरोध किया। उनके सम्मान में पुणे विश्वविद्यालय का नाम बदलकर सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय रखा गया है। सावित्रीबाई मराठी की एक अच्छी लेखिका भी थीं।
सावित्रीबाई के पति ज्योतिराव फुले ने दलितों और वंचित समाज को शिक्षा का अधिकार दिलाने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने सामाजिक सुधार को शिक्षा से जोड़कर एक नई सोच जगाई। 1873 में उन्होंने सत्यशोधक समाज की स्थापना की, जिसका उद्देश्य महिलाओं, दलितों और पिछड़े वर्गों को शिक्षा और अधिकार दिलाना था। फुले ने अपनी पत्नी के साथ मिलकर लड़कियों के लिए देश की पहली स्कूल पुणे में खोली और अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले को पढ़ाकर उन्हें भारत की पहली महिला शिक्षिका बनाया।
प्राचीन भारत के महान विद्वान चाणक्य (कौटिल्य) ने तक्षशिला विश्वविद्यालय में राजनीति, अर्थशास्त्र और प्रशासन पढ़ाया। चाणक्य, चन्द्रगुप्त मौर्य के महामंत्री और महान राजनैतिक गुरु थे। उन्हें कौटिल्य और विष्णुगुप्त नाम से भी जाना जाता है। वे राजनीति, कूटनीति और अर्थशास्त्र के अद्भुत विद्वान थे। अपनी बुद्धि और नीतियों से उन्होंने न केवल चन्द्रगुप्त मौर्य को सम्राट बनाया, बल्कि अखंड भारत की नींव भी रखी। उनकी किताबें अर्थशास्त्र और चाणक्य नीति आज भी शिक्षा और नेतृत्व की प्रेरणा देती हैं।
भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ कलाम ने करोड़ों युवाओं को अपने सपनों पर विश्वास करना सिखाया। उनका मानना था कि शिक्षा का मतलब सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं है, बल्कि "सीखकर करना" (learning by doing) ही असली शिक्षा है। कलाम भारत के 11वें निर्वाचित राष्ट्रपति और देश के महान वैज्ञानिक थे। उन्होंने चार दशकों तक इसरो और डीआरडीओ में काम किया और भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम और मिसाइल तकनीक को नई ऊंचाई दी। इसी कारण उन्हें "मिसाइल मैन ऑफ इंडिया" कहा जाता है।
नोबेल पुरस्कार विजेता कवि रवींद्रनाथ टैगोर ने शिक्षा को सिर्फ क्लासरूम तक सीमित नहीं रखा। उन्होंने विश्व-भारती विश्वविद्यालय की स्थापना की और कला, प्रकृति और रचनात्मकता को पढ़ाई का हिस्सा बनाया। सिर्फ 8 साल की उम्र में उन्होंने पहली कविता लिखी और 16 साल की उम्र में उनकी पहली लघुकथा प्रकाशित हुई। अपने जीवन में उन्होंने कई उपन्यास, निबंध, कहानियां, नाटक और हजारों गीत लिखे। उनकी कविताएं और छोटी कहानियां सबसे ज्यादा लोकप्रिय रहीं।
उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) की स्थापना की। उनका सपना था कि भारत के हर वर्ग को सस्ती और अच्छी शिक्षा मिले, जिसमें भारतीय संस्कृति और आधुनिक शिक्षा का संतुलन हो। वे भारत के पहले और आखिरी व्यक्ति थे जिन्हें “महामना” की उपाधि मिली। उन्होंने पत्रकारिता, वकालत, समाज सुधार और मातृभाषा के प्रचार के साथ अपना पूरा जीवन देश सेवा में समर्पित कर दिया।
युवाओं के प्रेरणास्रोत स्वामी विवेकानंद का मानना था कि शिक्षा का मकसद सिर्फ जानकारी देना नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण करना है। उन्होंने आत्मविश्वास, अनुशासन और आध्यात्मिकता पर आधारित शिक्षा की वकालत की। वे बचपन से ही विचारशील और मननशील थे। उन्हें धार्मिक शिक्षाओं में गहरी रुचि थी और साथ ही वे पश्चिमी विज्ञान और विचारों को भी समझना चाहते थे।
बचपन की शिक्षा पर खास ध्यान देने वाले गिजुभाई बधेका ने भारत में मोंटेसरी पद्धति और एक्टिविटी बेस्ड पढ़ाई को बढ़ावा दिया। उन्होंने बच्चों की रुचि और खेल-खेल में सीखने को सबसे अहम माना। उन्होंने बाल मंदिर नामक स्कूल की स्थापना की और बच्चों के सही विकास के लिए शिक्षा के नए तरीके अपनाए। उन्होंने बच्चों के लिए कई रोचक कहानियां लिखीं, जो गुजराती में दस पुस्तकों में और हिंदी में पांच पुस्तकों में प्रकाशित हुईं।
बिहार के शिक्षक आनंद कुमार ने सुपर 30 प्रोग्राम शुरू करके गरीब और होनहार बच्चों को IIT जैसी बड़ी परीक्षाओं तक पहुंचाया। उन्होंने साबित किया कि सही मार्गदर्शन और शिक्षा से हर सपना पूरा हो सकता है। आनंद कुमार की मेहनत और योगदान को दुनिया ने भी सराहा। उन्हें 2010 में टाइम मैगजीन की एशिया की टॉप लिस्ट में शामिल किया गया। 2023 में उन्हें शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में योगदान के लिए पद्म श्री से भी सम्मानित किया गया।
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