कोचिंग हब कोटा में छात्रों के आत्महत्या का सिलसिला थम नहीं रहा है। अब झारखंड, रांची की रहने वाली एक और छात्रा ऋचा सिंह ने कोटा में आत्महत्या कर ली है। आखिर छात्र ऐसे कदम क्यों उठा रहे हैं। इसके पीछे का कारण क्या है और समाधान क्या है?
करियर डेस्क. राजस्थान के कोटा में आत्महत्या का एक और मामला सामने आया है। मिली जानकारी के अनुसार एक 16 वर्षीय छात्रा ने खुदकुशी कर ली है। वह नीट परीक्षा की तैयारी कर रही थी। छात्रा झारखंड की राजधानी रांची की रहने वाली है। मृत छात्रा का नाम ऋचा सिंह है। कोटा में यह छात्रा ब्लेज हॉस्टल इलेक्ट्रॉनिक कॉम्पलेक्स में रहकर नीट की तैयारी कर रही थी। मामले की जांच कोटा शहर के विज्ञान नगर पुलिस कर रही है। बता दें कि पिछले 8 महीनों में कोटा में आत्महत्या का यह 25वां मामला है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्या वजह है कि इंजीनियरिंग और मेडिकल परीक्षा की तैयारी के लिए कोटा जाने वाले कैंडिडेट आत्महत्या करने जैसे कदम उठा रहे हैं। इसका समाधान क्या है?
कोटा में कोचिंग का करोड़ों का कारोबार
बात दें कि पिछले कुछ सालों में राजस्थान का कोटा शहर प्रतियोगी परीक्षा खासकर जेईई, नीट जैसी परीक्षाओं की तैयारी कराने वाला कोचिंग हब के रूप में उभरा है। रिपोर्ट के अनुसार यहां कोचिंग का करोड़ों का कारोबार है। लेकिन इस बीच छात्राें के द्वारा उठाया जा रहा सुसाइड करने जैसा कदम अत्यंत दुखद है। आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं को देखत हुए ही कोटा प्रशासन ने हाल ही में हॉस्टल और पीजी में स्प्रिंग वाले सीलिंग फैन लगाने का आदेश दिया था. इसके अलावा प्रशासन कई तरह के प्रयास कर रहा है। इस तरह आत्महत्या करने के पीछे की मानसिक स्थिति को समझने के लिए हमने बात की मनोवैज्ञानिक (Psychologist) डॉ भूमिका सच्चर से जानें उन्होंने क्या कहा ?
पैरेंट्स नहीं पहचान पा रहे अपने बच्चों की क्षमता, पैसे के चक्कर में कोचिंग भी कर रहे नजरअंदाज
अक्सर पैरेंट्स अपने बच्चों की क्षमता को न पहचानते हुए उन्हें मेडिकल या इंजीनियर को ही अपने करियर, प्रोफेशन के रूप में चुनने का दवाब बनाते हैं। ऐसे में ये कारण बनते हैं बच्चों में तनाव का कारण
कई बच्चे अपने माता-पिता के सपने को पूरा करने के लिए नीट, जेईई की तैयारी करने लगते हैं और ऐसे में वे एक अलग सा मानसिक दबाव महसूस करते हैं।
ज्यादातर मीडिल क्लास या लोअर मीडिल क्लास के बच्चे जो कोटा जैसे बड़े शहर में कोचिंग में एडमिशन लेते हैं उनपर दबाव ज्यादा होता है क्योंकि उन्हें पता होता है कि उनके घर की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है।
कोचिंग संस्थानों में एवरेज, कमजोर और तेज सभी बच्चों को एक साथ एक ही रेस में पढ़ाया जाता हे जिससे कई बच्चे पिछड़ने लगते हैं , टेस्ट में नंबर कम आने लगते हैं जिससे उनपर मानसिक दबाव बनने लगता है।
कोचिंग में काउंसलिंग की सुविधा नहीं, कई बार टीचर्स भी सपोर्टिव नहीं होते और कम नंबर आने पर छात्रों को डांटने लगते हैं।
छात्रों पर घंटों पढ़ने का दबाव होता है जिससे वे तनाव में रहते हैं।
छात्रों की पसंद का करियर न होना भी एक कारण है जिसे पैरेंट्स को समझने की जरूरत है, बात करने की जरूरत है।
बच्चों को समझने में पैरेंट्स की भूमिका अहम, इन बातों का रखें ध्यान
अपने बच्चों को समझने में पैरेंट्स की भूमिका अहम।
अपने बच्चों पर अपनी पसंद न थोपें।
बच्चे की क्षमता को पहचानें।
अनावश्यक दबाव बनाने से बचें।
इंजीनियर, डॉक्टर बनने के अलावा करियर के अनगिनत विकल्प हैं मौजूद।
बच्चों के इस कदम के लिए कोचिंग, पैरेंट्स और सोसाइटी दोनों जिम्मेदार।
मेडकिल या इंजीनियरिंग में ही जायेगा बच्चा इस सोच से उपर उठें पैरेंट्स।
कोचिंग में हेल्दी एटमोस्फेयर होना जरूरी, काउंसलिंग की व्यवस्था भी हो
पैसे के चक्कर में अक्सर कोचिंग इंस्टीट्यूट बच्चे की योग्यता सही तरीके से जांचे बिना एडमिशन लेते हैं। इसमें सुधार की जरूरत।
कोचिंग का माहौल ऐसा हो की हर बच्चा अपने टीचर से बात कर सके, सवाल कर सके तब उनमें कॉन्फिडेंस आयेगा।
कोचिंग क्लास में स्टूडेंट्स की संख्या बहुत अधिक, टीचर कम जिससे वन टू वन इंटरएक्शन संभव नहीं होता।
हिचक रखने वाले बच्चे टीचर्स से सवाल करने में झिझकते हैं ऐसे में टीचर्स को हर छात्र पर नजर रखने की जरूरत है।
टीचर्स के साथ बच्चे का दोस्ताना रिश्ता जरूरी।
कोचिंग संस्थान में काउंसलिंग की व्यवस्था जरूर हो।
पैरेंट्स और कोचिंग के बीच कॉर्डिनेशन बहुत जरूरी है ताकि छात्र को सही तरीके समझा और गाइड किया जा सके।
बच्चे में किसी तरह का सडन बिहेवियर चेंजेज है तो तुरंत एक्शन लिया जाना जरूरी।