डिजाइन एजुकेशन की भारत में जबरदस्त डिमांड है। बिजनेस लीडर हो या इंडस्ट्री हर सेगमेंट में इसका स्काेप काफी ज्यादा है। पहले इंटरनेट और फिर स्मार्ट फोन क्रांति ने डिजाइन सेक्टर को भारत में जबरदस्त उछाल दी है।
एजुकेशन डेस्क। वैसे तो भारत में डिजाइन यानी रचना प्राचीन काल से तमाम रूपों में मौजूद है। माना जाता है कि इसकी औपचारिक शिक्षा 1961 में अहमदाबाद में शुरू हुए पहले नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन की स्थापना के साथ हुई। आज विश्वविद्यालयों में अंडर ग्रेजुएट, मास्टर और डॉक्टरेट लेवल पर डिजाइन की पढ़ाई होती है। वहीं, वोकेशनल डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स चलाने वाले हजारों संस्थान और भी है। जैसा कि माना जाता है डिजाइन एक रचनात्मक यानी क्रिएटिव समस्या और समाधान की प्रक्रिया है। इसका उपयोग उपयोग हमारे जीवन को बेहतर बनाने के लिए नए इनोवेटिव सॉल्यूशन को बढ़ाने के लिए किया जाता है।
बीते दो दशक में भारत ने प्रॉडक्ट और सर्विस प्रॉडक्शन के लिए डिजाइन क्षेत्र में जबरदस्त बढ़ोतरी देखी है। मौजूदा समय में डिजाइन को ऑटोमोबाइल, घर, फर्निचर, फैशन और कपड़ों के साथ-साथ कस्टमर इलेक्ट्रॉनिक्स, फिल्म, मीडिया समेत कई क्षेत्रों में बेहतर विकल्प हासिल हैं। अलग-अलग सेगमेंट में डिजाइनरों की बढ़ती मांग के कारण डिजाइन एजुकेशन को और बेहतर, प्रासंगिक और तकनीक से भरपूर बनाया जा रहा है।
भारत में डिजाइन एजुकेशन और इसका स्कोप
डिजाइन को विशेषज्ञता यानी स्पेसिलाइजेशन के तौर पर पढ़ाया जाता है। इसमें कई चीजें शामिल हैं जैसे- औद्योगिक या उत्पाद डिजाइन (कंज्यूमर ड्यूरेबल्स, इलेक्ट्रॉनिक्स, चिकित्सा उपकरण, फर्निचर, खूबसूरत डिजाइन वाली लाइट्स और सेरेमिक), संचार डिजाइन (पैकेजिंग, प्रिंट मीडिया, ग्राफिक डिजाइन, इलस्ट्रेशन और ब्रांडिंग), फैशन और टेक्सटाइल्स (कपड़े, दूसरी एक्सेसरीज) , स्पेस डिजाइन (इंटीरियर्स, कम्युनिटी स्पेस, विरासत यानी हेरिटेज प्लेस और रिटेल), इंटरेक्शन डिजाइन (यूआई-यूएक्स, ह्यूमन मशीन इंटरेक्शन, ऐप्स और इंटरफेस), मूविंग इमेज (फिल्म, एनीमेशन, पॉडकास्ट)।
कोडिंग, मार्केट रिसर्च, निर्माण तकनीक का जलवा
डिजाइन एजुकेशन बिहैवियर में ज्ञान को लागू करने का एक व्यावहारिक मॉडल है, जो करके सीखने पर जोर देती है। कक्षाओं में पढ़ाया जाने वाला ज्ञान यानी थ्योरी अक्सर सीएडी, एर्गोनॉमिक्स, डिजाइन थ्योरी, डिजाइन का इतिहास, मटेरियल्स, मेन्युफेक्चरिंग, कोडिंग, मार्केट रिसर्च, निर्माण तकनीक, वर्चुअल रिएलिटी, परिधान निर्माण यानी गॉरमेंट कंस्ट्रक्शन आदि कोर्स से जुड़ा है। यही नहीं, विश्वविद्यालयों में छात्र थ्योरी और एक्सपेरिमेंट का मिश्रण सीखते-समझते हैं। हर सेमेस्टर को एक नए प्रोजेक्ट के साथ खत्म किया जाता है, जो उनके सीखने की क्षमता और गुणवत्ता को प्रदर्शित करता है।
भारत में डिजाइन स्कूल और एडमिशन के तरीके
पारंपरिक कोर्स के विपरीत परीक्षा के जरिए मूल्यांकन किए जाने वाले ज्यादातर डिजाइन स्कूल ज्यूरी के माध्यम से मूल्यांकन करते हैं। इसमें इंडस्ट्री के प्रोफेशनल डिजाइनर कड़ी बहस या तर्क के माध्यम से छात्रों के काम का मूल्यांकन करते हैं। छात्रों को बाजार की जरूरत, यूजर्स की जरूरत और डिमांड, मेटेरियल्स एंड प्रॉडक्शन, उपयोगिता यानी यूजेबिलिटी, आराम यानी कंफर्ट और सुरक्षा जैसे अलग-अलग मुद्दों से अपनी क्रिएटिविटी को सही ठहराना होगा। छात्रों से उम्मीद की जाती है कि वे अपनी डिजाइन के माध्यम से ज्यादा अपडेट इनोवशन लाएंगे। हालाांकि, देखा जाए तो यह एक बिजनेस लीडर या कारोबारी माइंड सेट को भी बढ़ाता है और दिशा में आगे बढ़ता है। इसमें कई डिजाइनर अपनी खुद की कंसल्टिंग फर्म या लेबल ब्रांडिंग शुरू करने का विकल्प चुनते हैं। डिजाइन एजुकेशन में तीन ट्रेडिशनल एग्जिट रूट हैं। इसमें स्टूडियो और बड़ी कंपनियों में नौकरी, उद्यमिता या कंसल्टिंग और आगे की शिक्षा व्यवस्था शामिल है।
दो मेटा फोर्स ने बदल दिया ह्यूमन डेवलपमेंट रूट
दरअसल, भारत में डिजाइन एजुकेशन बाजार की ताकत से काफी प्रभावित है। बीते कुछ वर्षों में हमने दो मेटा फोर्स को देखा है, जिन्होंने मानव विकास यानी ह्यूमन डेवलपमेंट रूट को बदल दिया है। 1990 के दशक में इंटरनेट के आने और 2000 के दशक में स्मार्टफोन क्रांति ने हमारे जीवन, उपभोग और व्यवहार के तरीके को आश्चर्यजनक रूप से बदल दिया है। प्रौद्योगिकी ने हमें तेज गति से नई वस्तुओं, कंटेंट और सेवाओं का उत्पादन करते हुए आगे छलांग लगाने की अनुमति दी है।
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