400 साल पुरानी दास प्रथा का अंत: आज ही के दिन टूटी थी 15 मिलियन लोगों के गुलामी की 'जंजीर', जानें इतिहास

हर साल 23 अगस्‍त को 'गुलामों के व्‍यापार और उसके निषेध का अंतरराष्ट्रीय स्मरण दिवस के तौर पर मनाया जाता है। काफी समय पहले लोगों को खरीदना, बेचना और गुलाम बनाकर रखना आम बात हुआ करती थी लेकिन मानव सभ्‍यता के प्रयास से इस त्रासदी से बाहर निकलने में मदद मिली। 
 

करियर डेस्क : आज का दिन अंतराष्‍ट्रीय गुलाम व्‍यापार उन्‍मूलन दिवस (International Slavery Remembrance Day 2022) के रूप में मनाया जा रहा है। इसका उद्देश्य लोगों को दास प्रथा के उस वक्त की याद दिलाना है जब लाखों लोग उसका शिकार थे और उनकी जिंदगी जानवर से भी बदतर थी। ताकि लोग गुलामी प्रथा के मूल कारणों को जान सकें और भविष्य में दोबारा कभी ऐसा हो, इस तरफ प्रयास हो सके। 

क्या है इतिहास
मानव इतिहास में दास प्रथा को सबसे क्रूर और अमानवीय माना जाता है। दक्षिण अफ्रीका (South Africa) के 15 मिलियन लोगों ने 400 से ज्यादा सालों तक इस दंश को झेला। इसमें बच्चे, महिलाएं और पुरुष सभी शामिल थे। ये सभी ट्रान्साटलांटिक दास व्यापार के शिकार थे। साल 1791 में 22-23 अगस्त की रात में सेंट डोमिंगु में विद्रोह की शुरुआत हुई। यही विद्रोह आगे चलकर ट्रान्साटलांटिक गुलाम व्यापार को उखाड़कर फेंक दिया। तभी से इस दिन को मनाने की शुरुआत हुई।

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पहली बार कब और कहां मनाया गया यह दिन
पहली बार 23 अगस्त, 1998 में हैती में इस दिन को याद किया गया। इसके एक साल बाद सेनेगल के गोरी द्वीप में भी इस दिन को याद किया गया। जिसके बाद UNESCO ने इस दिन को अंतराष्‍ट्रीय गुलाम व्‍यापार उन्‍मूलन दिवस के रूप में मान्‍यता दी और तब से इस दिवस को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाने लगा। इस दिन यूनेस्को देशों के सदस्य खास कार्यक्रम आयोजित करते हैं, जिसमें प्रबुद्ध वर्ग के लोग औऱ युवा शामिल होते हैं। इस दिन गुलामी के कारणों, तरीकों और परिणामों को लेकर चर्चा होती है। बातचीत और संवाद के जरिए इस दिन के इतिहास पर अपनी बात रखी जाती है ताकि भविष्य में कभी भी इस तरह की क्रूरता दोबारा न दोहराई जा सके।

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