मुफ्त कोचिंग मिलने से दिहाड़ी मजदूर और सब्जी बेचने वालों के बच्चों ने NEET में पाई सफलता, भावुक कर देगी ये खबर

ये सारे सफल बच्चे जिंदगी प्रोग्राम का हिस्सा हैं जो कि अजय बहादुर सिंह के एक एनजीओ द्वारा चलाया जा रहा है। वे खुद भी भूख और कमी का शिकार रहे हैं। इसकी वजह से वे खुद कभी डॉक्टर नहीं बन पाए। इस प्रोग्राम के तहत पूरे ओडिशा से प्रतिभाशाली बच्चों को चुना जाता है और उन्हें भोजन के साथ साथ फ्री कोचिंग भी उपलब्ध कराई जाती है।

करियर डेस्क.  NEET Results 2020: गरीब बच्चों को मेडिकल परीक्षा की तैयारी करने वाले कैंडीडेट्स को सहायता पहुंचाने की अपनी मुहिम को पंख देने के लिए ओडिशा के चैरिटेबल ग्रुप ने कमर कस रखी है। इस साल इस चैरिटेबल ग्रुप के पढ़ाए हुए 19 बच्चों ने नीट परीक्षा में प्रवेश पाया है। ये बच्चे दिहाड़ी मजदूर, सब्जी विक्रेता, ट्रक ड्राइवर और इडली-वडा सेलर के बच्चे हैं।

शुक्रवार को जारी हुआ नीट 2020 का रिजल्ट 

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ये सारे सफल बच्चे जिंदगी प्रोग्राम का हिस्सा हैं जो कि अजय बहादुर सिंह के एक एनजीओ द्वारा चलाया जा रहा है। वे खुद भी भूख और कमी का शिकार रहे हैं। इसकी वजह से वे खुद कभी डॉक्टर नहीं बन पाए। इस प्रोग्राम के तहत पूरे ओडिशा से प्रतिभाशाली बच्चों को चुना जाता है,  उन्हें भोजन के साथ साथ फ्री कोचिंग भी उपलब्ध कराई जाती है।

कोरोना भी न रोक पाया

इस बार भी न तो भूख और न ही कोरोना इन गरीब बच्चों को डॉक्टर बनने से रोक पाया। जिंदगी फाउंडेशन के 19 के 19 बच्चे नीट परीक्षा में सफल पाए गए।

खेतिहर मजदूर की बेटी बनेगी डॉक्टर

जिंदगी फाउंडेशन के बच्चों में एक है खिरोदिनी साहू जो कि अंगुल जिले की रहने वाली हैं। खिरोदिनी के पिता एक खेतिहर मजदूर हैं। कोरोना के समय में उनकी नौकरी चली गई और खिरोदिनी बताती हैं कि 'मैं बीमार हो गई। इसके बाद मैं एंबुलेंस से भुवनेश्वर आईं और अजय सर को सारी बात बताई। उन्होंने मुझे सारी सहायता पहुंचाई, खिरोदिनी को ऑल इंडिया 2594 रैंक मिली।

सब्जी बेचने वाले का बेटा हुआ सफल

वहीं सत्यजीत साहू के पिता साइकिल पर रखकर सब्जियां बेचते हैं। सत्यजीत को 619 अंक मिले हैं। निवेदिता पांडा के पिता की पान की दुकान है। निवेदिता को 591 अंक मिले हैं। स्मृति रंजन सेनापति एक ट्रक ड्राइवर की बेटी हैं। नीट परीक्षा में स्मृति को 59044 रैंक आई है।

क्या है जिंदगी फाउंडेशन

अजय बहादुर सिंह ने यह फाउंडेशन साल 2017 में शुरू किया था। उन्होंने बताया कि वे इस सारे काम को करने के लिए किसी से भी डोनेशन नहीं लेते बल्कि अपने खुद के संसाधनों से इसका प्रबंधन करते हैं। उनका कहना है कि इसमें वे अपना बचपन देखते हैं। उन्होंने कहा कि पढ़ाई को जारी रखने के लिए मुझे चाय बेचना पड़ता था। इस प्रोजेक्ट के जरिए गरीब घर के बच्चों को सेलेक्ट किया जाता है और फ्री में उनके रहने खाने की व्यवस्था की जाती है।

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