Teachers' Day: पिता की ख्वाहिश राधाकृष्णन न सीखें इंग्लिश, बने पुजारी, बेटे ने पकड़ी अलग राह, जानें रोचक बातें
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन पर हर साल शिक्षक दिवस मनाया जाता है। उनकी लाइफ के कई ऐसे रोचक किस्से हैं, जिनको जानने के बाद आप भी उनके कायल हो जाएंगे। सेंस ऑफ ह्यूमर से लेकर उनकी एक-एक बात जीवन को सीख देती है।
Asianet News Hindi | Published : Sep 1, 2022 11:56 AM IST / Updated: Sep 01 2022, 06:50 PM IST
करियर डेस्क : देश के पहले उपराष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Sarvepalli Radhakrishnan) के जन्मदिन यानी 5 सितंबर को शिक्षक दिवस (Shikshak Divas) मनाया जाता है। हर साल इस दिन शिक्षकों का सम्मान किया जाता है। सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक स्कॉलर, फिलॉसफर थे। देश की दो-दो केंद्रीय विश्वविद्यालय में कुलपति का पद संभाल चुके थे और दुनियाभर में अपने नॉलेज का लोहा मनवाया था। उनका प्रजेंस ऑफ माइंड भी काफी जबरदस्त था। इस शिक्षक दिवस हम आपको बताने जा रहे हैं सर्वपल्ली राधाकृष्णन की वो बातें जो बेहद दिलचस्प हैं और शायद ही जानते होंगे आप...
राधाकृष्ण का स्वभाव बेहद विनम्र था। जब वे देश के राष्ट्रपति बने थे तो अपनी सैलरी से सिर्फ ढाई हजार रुपए ही लेते था, बाकी की सैलरी प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष में दान कर देते थे। छात्रों के बीच उनकी गजब की पकड़ थी और छात्र उन्हें मानते भी बहुत थे। उनके साधारण होने और लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि जब वे मैसूर यूनिवर्सिटी छोड़कर कलकत्ता यूनिवर्सिटी में पढ़ाने जाने लगे, तब उनके छात्रों फूलों की बग्धी मंगाई और खुद खींचकर रेलवे स्टेशन तक गए।
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जब राष्ट्रपति थे, तब हफ्ते में दो दिन कोई भी बिना अपॉइमेंट उनसे मुलाकात कर सकता था. राष्ट्रपति से मिलना आम लोगों के लिए बेहद सरल था। वह ऐसे गेस्ट थे, जो अमेरिका के राष्ट्रपति भवन वाइट हाउस में हेलिकॉप्टर से पहुंचे थे। उनसे पहले कोई भी हेलिकॉप्टर से वहां नहीं पहुंचा था।
राधाकृष्ण के पिता की ख्वाहिश थी कि उनका बेटा पंडित या पुजारी बने। वे नहीं चाहते थे कि बेटा इंग्लिस सीखे और शिक्षक बनें लेकिन राधाकृष्णन पढ़ने में इतने होशियार थे कि आगे तक की पढ़ाई जारी रखी। तिरूपति के स्कूल और वेल्लोर में पढ़कर दुनिया में लोकप्रिय शिक्षक बने।
एक बार की बात है कि राधाकृष्णन चीन गए हुए थे, तब उनकी मुलाकात प्रसिद्ध क्रांतिकारी, राजनैतिक विचारक और कम्युनिस्ट दल के नेता माओ से हुई थी। मुलाकात के दौरान उन्होंने माओ के गाल पर थपकी दी थी। इस घटना से माओ आश्चर्य रह गए। तब राधाकृष्णन ने कहा कि उनसे पहले स्टालिन और पोप के साथ भी वे ऐसा ही कर चुके हैं।
साल 1962 की बात है ग्रीस के राजा भारत के राजनयिक दौरे पर आए हुए थे। तब सर्वपल्ली राधाकृष्णन ही उनका स्वागत करने पहुंचे थे। राजा का स्वागत करते हुए कहा- महाराज, आप ग्रीस के पहले राजा हैं, जो कि भारत में अतिथि की तरह आए हैं, क्योंकि सिकंदर तो यहां बिना आमंत्रण के ही मेहमान बनकर आ गया था। इसके बाद सर्वपल्ली राधाकृष्णन के प्रजेंस ऑफ माइंड की खूब चर्चा हुई।
जब राधाकृष्णन जब भारत के राष्ट्रपति बने तो दुनिया के महान फिलॉसफर में से एक बर्टेंड रसेल ने खुशी जाहिर करते हुए कहा था कि राधाकृष्णन का राष्ट्रपति बनना दर्शनशास्त्र के लिए सम्मान की बात है। कई और दर्शनशास्त्रियों ने इस पर प्रसन्नता जाहिर की थी।