Asianetnews Hindi संघ लोक सेवा आयोग (UPSC 2020) में सिलेक्ट हुए 100 कैंडिडेट्स की सक्सेज जर्नी (Success Journey) पर एक सीरीज चला रहा है। इसी कड़ी में हमने डॉ शुभम मौर्या से बातचीत की। आइए जानते हैं उन्होंने किन परिस्थितियों का सामना कर UPSC का एग्जाम क्लियर किया।
करियर डेस्क. डॉ शुभम मौर्या (dr shubham maurya) शुरूआती दिनों से ही पढ़ने में तेज थे। शुरुआती पढ़ाई से डॉक्टरी की पढ़ाई तक उन्हें हर जगह सफलता ही सफलता मिली। संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) परीक्षा में उन्होंने पहली बार असफलता का स्वाद चखा लेकिन ऐसा नहीं कि उन्हें असफलता एक ही बार मिली हो। वह बार-बार इंटरव्यू तक गए लेकिन उनका चयन नहीं हुआ। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी उन्होंने अपना प्रयास जारी रखा। यूपीएससी 2020 (UPSC 2020) में यह उनका पांचवां अटेम्पट था। वह लगातार चौथी बार इंटरव्यू में शामिल हुए थे, UPSC में उनकी 241वीं रैंक आई। संघ लोक सेवा आयोग (UPSC 2020) के नतीजे 24 सितंबर, 2021 को जारी किए गए। फाइनल रिजल्ट (Final Result) में कुल 761 कैंडिडेट्स को चुना गया। Asianetnews Hindi संघ लोक सेवा आयोग (UPSC 2020) में सिलेक्ट हुए 100 कैंडिडेट्स की सक्सेज जर्नी (Success Journey) पर एक सीरीज चला रहा है। इसी कड़ी में हमने डॉ शुभम मौर्या से बातचीत की। आइए जानते हैं उन्होंने किन परिस्थितियों का सामना कर UPSC का एग्जाम क्लियर किया।
भदोही में हुई शुरुआती शिक्षा
उत्तर प्रदेश, भदोही के ज्ञानपुर नगर निवासी डॉ. शुभम की प्रारम्भिक शिक्षा भदोही जिले से ही हुई है। उन्होंने कक्षा एक से 12वीं तक की पढ़ाई सेंट थॉमस स्कूल गोपीगंज से पूरी की। वर्ष 2007 में 10वीं और वर्ष 2009 में 12वीं पास किया। फिर मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी के लिए कोटा, राजस्थान में रहे। वर्ष 2010 में उनका केजीएमयू लखनऊ में मेडिकल की पढ़ाई के लिए एडमिशन लिया और 2015 में उन्होंने एमबीबीएस पूरा किया।
चौथे अटेम्पट में मिली थी 576वीं रैंक
वर्ष 2019 के चौथे अटेम्पट में उन्हें 576वीं रैंक मिली थी। उन्हें इंडियन रेलवे ट्रैफिक सर्विस (आईआरटीएस) काडर मिला था। वर्तमान में आईआरटीएम, लखनऊ में ट्रेनिंग कर रहे हैं। वर्ष 2016 में उन्होंने पहला अटेम्पट दिया था लेकिन उनका प्रीलिम्स नहीं निकला था। वर्ष 2017 और 2018 की परीक्षा में वह लगातार दो बार इंटरव्यू तक गए लेकिन मेरिट लिस्ट में उनका नाम शामिल नहीं हो सका। 2019 और 2020 के इंटरव्यू में उन्हें सफलता हासिल हुयी। उन्होंने यूपीएससी की तैयारी वर्ष 2015 से ही शुरू कर दी थी।
धैर्य बहुत जरूरी
डॉ शुभम कक्षा 10वीं और 12वीं में डिस्ट्रिक्ट टॉपर रहे। 12वीं कक्षा के तुरंत बाद उनकी पीएमटी में ऑल इंडिया 65 रैंक आयी थी तो उनका दाखिला केजीएमयू में हुआ। इस दौरान उन्होंने असफलता देखी ही नहीं, सिर्फ सफलता ही सफलता देखी। यूपीएससी ने उन्हें फेलियर दिखाया और उनके साथ डील करना सिखाया। यही उनकी यूपीएससी जर्नी की सबसे बड़ी लर्निंग रही कि यदि आपका कोई लक्ष्य है तो किस तरह पेशेंस के साथ परिणाम लाए जाएं। किस तरह मेहनत के साथ प्रयास में लगे रहा जाए। यूपीएससी की परीक्षा में उन्होंने तीन साल लगातार फेलियर देखा, उसका अफसोस होता था। लेकिन उन्होंने उसे फेलियर नहीं बल्कि लर्निंग समझा। उनका कहना है कि फेलियर से ही आदमी सीखता है। यूपीएससी ने उन्हें विनम्र बना दिया।
इससे मिली प्रेरणा
शुभम जब भी प्रशासनिक अधिकारियों को जैसे कि डीएम या एसपी को देखते थे तो उन्हें लगता था कि उनके जैसा बनना है। उस पद तक पहुंचना है। उन्हें देखकर शुभम को इंस्पिरेशन मिलता था। शुरूआती दिनों में यह मोटिवेशन था और आखिरकार इसी इंस्पिरेशन की वजह से वह यूपीएससी परीक्षा की तैयारी के लिए आगे बढ़े।
मेडिकल ऑफिसर के पद पर छह महीने किया काम
शुभम कहते हैं कि यूपीएससी तैयारी के दौरान ज्यादा स्ट्रगल रहा। जब शुरूआत से आप अच्छे रहते हो, तो जब आप ऊंचाई से गिरते हो तो ज्यादा चोट लगती है। जब वर्ष 2017 और 2018 के इंटरव्यू के बाद उनका चयन नहीं हुआ। उसके बाद पिता सेवा से रिटायर हुए। उस समय इकोनॉमिक कांप्लेक्स फील हुए। उनका कहना है कि एमबीबीएस की डिग्री के बावजूद तीन साल से एक भी पैसे नहीं कमा रहा था। बस मेंटल काम्पलेक्स शुरू हुए। फिर मेडिकल ऑफिसर के रूप में प्रतागढ में छह महीने काम किया। तैयारी के दौरान आप सोसाइटी से कट जाते हैं। आपके दोस्त आगे निकलते रहते हैं। बस आपकी इंस्पिरेशन रहती है। आप उस पर खरे नहीं उतरते हो, तो दर्द महसूस होता है। सिर्फ दर्द ही नहीं बल्कि लर्निंग भी रहती है।
कम होने लगता है खुद पर विश्वास
डा शुभम के लिए सितम्बर का महीना खुशियां लेकर आया। सितम्बर में ही यूपीएससी के रिजल्ट में उन्हें सफलता मिली और सितम्बर में ही उनकी शादी हुई। उनकी पत्नी ऐश्वर्या सिंह का उनकी करियर की जर्नी में काफी सपोर्ट रहा है। उन्होंने आईआईटी बाम्बे से कम्प्यूटर साइंस से डिग्री ली है। वह उनकी स्कूल मेट भी रही हैं। डा शुभम अपनी सफलता का श्रेय अपने परिवार को देते हुए कहते हैं कि उनके नाना शीतला प्रसाद मौर्या और नानी कमला देवी ने उन्हें मोटिवेट किया। पिता डॉ रामबली मौर्या और मां कल्पना मौर्या ने उनका भरपूर सपोर्ट किया। टीचर्स का भी अहम रोल रहा, क्योंकि जब आप अफसल होते रहते हैं तो आपका खुद के उपर विश्वास कम होता रहता है। टीचर्स ने विश्वास दिलाया कि आपके अंदर यह करने की क्षमता है। उस दौरान सपोर्ट की जरूरत होती है। दोस्तों ने उत्साह बढ़ाया। यहां तक पहुंचने में सभी लोगों का सपोर्ट रहा है। उनकी बहन नेहा मौर्या ने एनआईटी दुर्गापुर से बॉयोटेक्नोलाजी में परास्तानक किया है। पिता डॉ. रामबली मौर्य मुख्य पशु चिकित्साधिकारी रह चुके हैं। माता डॉ. कल्पना मौर्य गवर्नमेंट कालेज में प्रधानाचार्य हैं।
पिता की मौजूदगी की वजह से दिमाग रहता है शांत
डा शुभम का कहना है कि दो बार यूपीएससी परीक्षा की पूरी प्रक्रिया के बाद फेल हो जाने के बाद काफी प्रेशर होता है। वह वर्ष 2019 के अटेम्पट में काफी डिप्रेश थे। उन्हें लगा कि उनकी तैयारी उस स्तर की नहीं थीं क्योंकि मेंस बहुत अच्छा नहीं हुआ था। चूंकि उनके पिता हमेशा इंटरव्यू दिलाने साथ जाते हैं। शुभम कहते हैं कि पिता की मौजूदगी की वजह से दिमाग शांत रहता है। इंटरव्यू बहुत ज्यादा रैंडम भी होता है। ज्यादातर सवाल आपके प्रोफेशनल और पर्सनल बैकग्राउंड के इर्दगिर्द ही पूछे जाते हैं। डॉ होने की वजह से आपसे स्वास्थ्य से जुड़े सवाल पूछे जाते हैं। पिछले बारे की तुलना में इस बार शुभम इंटरव्यू के लिए ज्यादा तैयार थे।
रिवीजन और राइटिंग प्रैक्टिस जरूरी
शुभम कहते हैं कि एक ही चीजों को चार अलग-अलग जगहों से पढ़ना और उसको कांसोलिडेट करना (संघटित करना) करना बहुत गलत चीज है। रिसोर्सेज को सीमित रखें, उन्हें अपने सेलेबस के हिसाब से रखें। रिवीजन करना बहुत जरूरी है। प्रश्न-उत्तर राइटिंग प्रैक्टिस होना बहुत जरूरी है। मेंस में आपको इसकी बहुत जरूरत पड़ती है। यदि आप इसका अभ्यास नहीं करते हैं तो मेंस की परीक्षा में दिक्क्त हो सकती है। किसी भी तरह के डिस्ट्रैक्शन से से बचना चाहिए। सोशल मीडिया का इस्तेमाल यदि परीक्षा की तैयारी के मकसद से हो तो करना चाहिए वरना बंद कर देना चाहिए।
प्रॉपर मोटिवेशन सही
हमारे सामने बहुत इंटरेस्टिंग अवसर हैं। काफी सारे अवसर सामने आए हुए हैं। विशेष तौर पर हम लोग प्राइवेट सेक्टर को इग्नोर करते हैं। जिस हिसाब से अभी तक का माइंडसेट रहा है। पर वह बहुत ही अच्छा क्षेत्र है, जो अभी खुला हुआ है। उन सब पर भी फोकस करना चाहिए। जो लोग गवर्नमेंट सेक्टर में काम करना चाहते हैं। उनके लिए सही मोटिवेशन होना जरूरी है। अक्सर देखा जा रहा है कि यूट्यूब और विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर सिविल सर्विस या अन्य के चमक-दमक वाले सामाजिक व्यवहार से जुड़े वीडियो बनाकर डाले जा रहे हैं। उससे बच्चे मोटिवेट हो रहे हैं। यह छिछले दर्जे का मोटिवेशन है। गवर्नमेंट सेक्टर में काम करने के लिए रिसोर्सेज बहुत कम होते हैं। दबाव बहुत ज्यादा होता है, बहुत तरह की समस्याएं होती है। मोटिवेशन अगर सोशल सर्विस है, मोटिवेशन अगर गवर्नमेंट के जरिए अच्छा काम करना है तो यह उस छिछले दर्जे के मोटिवेशन की तुलना में ज्यादा अच्छा मोटिवेशन है।
प्रतिस्पर्धा कठिन पर बहुत सारे टूल उपलब्ध
उन्होंने कहा कि यूथ के लिए प्रतिस्पर्धा टफ तो होने वाली है लेकिन बहुत सारे टूल भी उपलब्ध है। नई फील्ड उभर रही है। यदि सोशल मीडिया आदि प्लेटफार्म का सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए और मोटिवेशन सही हो तो सोशियो-इकोनामिक डेवलपमेंट अच्छे से हो सकता है। आने वाले समय में यूथ इंडिया को अच्छे से प्रोग्रेस करा सकता है।
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