छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में चंडी देवी का एक ऐसा मंदिर हैं, जहां इंसान ही नहीं बल्कि भालुओं का भी पूरा परिवार माता के दर्शन के लिए पहुंचता है। घुंचापाली के पहाडि़यों पर चंडी माता का ये मंदिर कभी तंत्र साधना के लिए प्रसिद्ध था।
महासमुंद( Chhattisgarh). छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में चंडी देवी का एक ऐसा मंदिर हैं, जहां इंसान ही नहीं बल्कि भालुओं का भी पूरा परिवार माता के दर्शन के लिए पहुंचता है। घुंचापाली के पहाडि़यों पर चंडी माता का ये मंदिर कभी तंत्र साधना के लिए प्रसिद्ध था। बाद में यहां मां के दर्शन के लिए आने वाले भालूओं के आने कारण प्रसिद्द हो गया। प्राकृतिक सौन्दर्य और ऊंची पहाड़ी पर स्थित मां चंडी का ये मंदिर करीब डेढ सौ साल पुराना बताया जाता है।
बताया जाता है कि मां चंडी यह मंदिर करीब डेढ सौ साल पुराना है। मान्यता है कि यहां स्थित मां चंडी की प्रतिमा स्वयं प्रकट हुई थी। प्राकतिक रूप से साढे 23 फुट ऊंची दक्षिण मुखी इस प्रतिमा का शास्त्रों केअनुसार अपना एक विशेष महत्व है। गोड़ बाहुल्य और ओडिशा भाषीय क्षेत्र में स्थित यह तंत्र साधना के लिए महत्वपूर्ण स्थल था। ये मंदिर साधकों के लिए गुप्त स्थल माना जाता था और तंत्रोक्त प्रसिद्ध शक्ति पीठ के नाम से प्रचलित था। 1950-51 से यहां वैदिक रीति से पूजा पाठ चालू हुआ। अब यहां दूर-दूर से लोग अपनी मनोकामना लेकर आते हैं। यहां पूजा में आने वाला भालुओं का परिवार विशेष आकर्षण का केंद्र है।
शाम होते ही आने लगता है भालुओं का परिवार
बताया जाता है कि पिछले 8 सालों से भालुओं का परिवार यहां आरती के समय आ रहा है। ये भालू न केवल आरती में शामिल होते हैं बल्कि मंदिर के गर्भ गृह तक जाते हैं और माता का प्रसाद भी ग्रहण करते हैं। भालुओं का यहां आना माता की शक्ति और चमत्कार माना जाता है। हर शाम आरती के समय उनका कुनबा माता का प्रसाद लेता है और फिर वहां से बिना किसी को नुकसान पहुंचाए जंगल में लौट जाता है।