2 महीने से एक टापू पर भूखे फंसे हैं 100 से ज्यादा बंदर, चारों तरफ पानी..इनको 'भगवान राम' का इंतजार

100 से ज्यादा बंदरों का यह झुंड अपने भोजन की तलाश में कांकेर के दुधावा बांध के बीच टापू पर पहुंचा था। लेकिन अचानक डेम पर पानी आ जाने की वजह से वह वहां फंस गए। शासन और वन विभाग की टीम हेलीकॉप्टर के जरिए अब भूखे बंदरों को भोजन पहुंचाया जा रहा है।


कांकेर (छत्तीसगढ़). रामचरित के अनुसार भगवान राम ने त्रेता युग में रावण की लंका में जाने के और समुद्र को पार करने के लिए वानर सेना के सहयोग से एक सेतु का निर्माण कराया था। अब कलयुग में छत्तसीगढ़ के एक टापू पर 2 महीने से फंसे बंदरो को भी राम का इंतजार है ताकि उनको वह निकाल सकें। क्योंकि सरकार और प्रशासन अभी तक उनको नहीं निकाल पाया है।

100 से ज्यादा बंदर फंसे हैं टापू पर 
दरअसल, 100 से ज्यादा बंदरों का यह झुंड अपने भोजन की तलाश में कांकेर के दुधावा बांध के बीच टापू पर पहुंचा था। लेकिन अचानक डेम पर पानी आ जाने की वजह से वह वहां फंस गए। एक मछुआरे ने जब उनको देखा तो स्थानीय पुलिस विभाग को इसकी सूचना दी। अब तक प्रशासन उनको पकड़ने के लिए कोई खास प्रबंध नहीं कर पाया है।  

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हेलीकॉप्टर के जरिए पहुंच रहा है भोजन
शासन और वन विभाग की टीम हेलीकॉप्टर के जरिए अब भूखे बंदरों को भोजन पहुंचाया जा रहा है। बता दें कि जहां बंदर फंसे हुए हैं उस जगह पर इतना पानी भरा है कि उनको निकालने में बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। 

बंदरों के लौटने के लिए कराया हनुमान चालीसा पाठ
बंदरों को बचाने के लिए कई लोग तरह-तरह के काम कर रहे हैं। वहीं शहर का बजरंग दल भी अपने स्तर धार्मिक अनुष्ठान का सहारा ले रहा है। बंदरों के सकुशल टापू से बाहर आने के लिए रविवार के दिन पंचमुखी हनुमान मंदिर में हनुमान चालीसा का पाठ और आरती की गई।

भेजी जाएगी डॉक्टरों की टीम कलेक्टर
कांकेर के कलेक्टर केएल चौहान ने कहा कि दुधावा बांध के बीच टापू पर पशु चिकित्सकों की टीम भेजी जाएगी। वह वहां जाकर बंदरों स्थिति की सही जानकारी देगी। इसके साथ ही उनका प्राथमिक इलाज भी किया जाएगी। क्योंकिबंदरों को पर्याप्त भोजन नहीं मिलने से उनका स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है।

बांस के पुल पर ही सवाल
वन विभाग ने बंदरो को निकालने के लिए 3 तीन दिन पहले एक अस्थाई  बांसों के पुल का निमार्ण शुरु कर दिया है। जिसकी अवधी आज शाम को खत्म हो जाएगी। लेकिन अभी क पुल पूरा नहीं बन पाया है। आलम यह है कि डेम की गहराई अधिक होने के कारण मजदूरों गहराई वाले हिस्से में तो बांस भी ठीक तरीके से खड़े नहीं हो पा रहे है।

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