बिहार में शराबबंदी के बावजूद भी जहरीली शराब की चपेट में आकर तकरीबन 75 लोगों ने अपनी जान गंवा दिया। लेकिन आज आपको एक ऐसे शख्स के बारे में बताने जा रहे हैं जिसने छत्तीसगढ़ में शराब की दुकानों के खिलाफ ऐसा आन्दोलन छेड़ा जिससे सरकार भी हिल गई थी।
रायपुर(chhattisgarh). बिहार में शराबबंदी के बावजूद भी जहरीली शराब की चपेट में आकर तकरीबन 75 लोगों ने अपनी जान गंवा दिया। लेकिन आज आपको एक ऐसे शख्स के बारे में बताने जा रहे हैं जिसने छत्तीसगढ़ में शराब की दुकानों के खिलाफ ऐसा आन्दोलन छेड़ा जिससे सरकार भी हिल गई थी। आजादी के पहले ही छेडी गई इस मुहीम में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया लेकिन वह अपनी जिद पर अड़े रहे। इस आन्दोलन को छेड़ने वाले स्व. ठाकुर प्यारे लाल सिंह की आज यानि बुधवार को जयंती है।
ठाकुर प्यारेलाल सिंह एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और क्रांतिकारी थे। उन्हें छत्तीसगढ़ में श्रमिक आंदोलन के सूत्रधार और सहकारिता आंदोलन के प्रणेता के तौर पर भी जाना जाता है। प्यारेलाल जी का जन्म 21 दिसम्बर 1891 को राजनांदगांव जिले के दैहान ग्राम में हुआ था। उनके पिता का नाम दीनदयाल सिंह और माता का नाम नर्मदा देवी था। राजनांदगांव और रायपुर में शुरुवाती पढ़ाई करने के बाद उन्होंने नागपुर और जबलपुर में उच्च शिक्षा प्राप्त की। साल 1916 में वकालत की पढ़ाई करने के बाद वह बंगाल के क्रांतिकारियों के संपर्क में आ गए और क्रांतिकारी साहित्य प्रचार में जुट गए।
1926 में छेड़ा था ये आन्दोलन
1926 में वह रायपुर शहर में रहने लगे, इस दौरान उन्होंने छत्तीसगढ़ में शराब की दुकानों के खिलाफ ऐसी मुहीम छेड़ी कि उससे सरकार भी हिल गई। उनकी इस मुहीम में लोगों का कारवां जुड़ गया और सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया।इस आन्दोलन के आलावा भी उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता, नमक कानून तोड़ना, दलित उत्थान समेत कई मुद्दों पर अभियान चलाया। आजादी के आंदोलन में अंग्रेजों के खिलाफ मुहीम छेड़ने की वजह से उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। एक बार ठाकुर प्यारेलाल सिंह के तेवर कमजोर करने के लिए अंग्रेजो ने उनके घर छापा मारकर सारा उनका सामान कुर्क कर दिया था।
सहकारिता क्षेत्र में उनके नाम से पुरस्कार देती है छत्तीसगढ़ सरकार
धीरे-धीरे वह राजनीति में भी सक्रिय हुए और साल 1937 में रायपुर नगरपालिका के अध्यक्ष चुने गए। 1945 में छत्तीसगढ़ के बुनकरों को एकजुट करने के लिए छत्तीसगढ़ बुनकर सहकारी संघ की स्थापना भी की। उन्होंने आचार्य कृपलानी की किसान मजदूर प्रजा पार्टी का हिस्सा बनकर चुनाव लड़ा और 1952 में रायपुर से विधानसभा विधायक चुने गए। अपने अंतिम दिनों में उन्होंने आचार्य विनोबा भावे के भूदान और सर्वोदय आंदोलन का छत्तीसगढ़ में विस्तार किया। 20 अक्टूबर 1954 को भूदान यात्रा के दौरान अस्वस्थ हो जाने से उनका निधन हो गया। छत्तीसगढ़ सरकार उनके योगदान को याद करते हुए हर साल सहकारिता के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वालों को 'ठाकुर प्यारेलाल सिंह सम्मान' देती है।