मासिक धर्म आने पर इस मिट्टी के घर में कैद हो जाती हैं महिलाएं, 50 साल से चली आ रही यह कुप्रथा

ग्रामीण अंचलों में मासिक धर्म को लेकर आज भी कई भ्रांतियां फैली हुई हैं। इसी के चलते छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के एक गांव में मासिक धर्म आने पर महिलाओं को एक कच्चे मकान में कैद-सा कर दिया जाता है। यहीं पर उन्हें खाना-पानी लाकर रख दिया जाता है। यह कुप्रथा पिछले 50 सालों से चली आ रही है। सरकार लगातार इस जागरुकता की बात करती है, लेकिन अब तक इस पर प्रतिबंध हीं लगाया जा सका है।

Asianet News Hindi | Published : Oct 5, 2020 10:50 AM IST

राजनांदगांव, छत्तीसगढ़. कोरोनाकाल में आइसोलेशन शब्द लोगों की जुबान पर चढ़ गया है। लेकिन आपको पता है कि राजनांदगांव जिले में एक गांव ऐसा भी है, जहां कोरोना से नहीं, मासिक धर्म के कारण महिलाओं को आइसोलेशन में जाना पड़ता है। ग्रामीण अंचलों में मासिक धर्म को लेकर आज भी कई भ्रांतियां फैली हुई हैं। इसी के चलते इस गांव में मासिक धर्म आने पर महिलाओं को एक कच्चे मकान में कैद-सा कर दिया जाता है। यहीं पर उन्हें खाना-पानी लाकर रख दिया जाता है। यह कुप्रथा पिछले 50 सालों से चली आ रही है। सरकार लगातार इस जागरुकता की बात करती है, लेकिन अब तक इस पर प्रतिबंध हीं लगाया जा सका है। इस गांव का नाम है सीतागांव। यह जिला मुख्यालय से करीब 125 किमी दूर है।


गांव की सरपंच ग्रेजुएट, फिर भी नहीं ला पाईं अब तक जागरुकता...

इस गांव की सरपंच चंदा मंडावी ने बीएससी किया है। वे लगातार इस कुप्रथा के खिलाफ गांववालों को जागरूक करने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन अब तक इस पर रोक नहीं लग पाई है। यहां के मुखिया यानी पटेल दुर्गूराम बताते हैं कि यह कुटिया करीब 50 साल पहले बनाई गई थी। इसे समय-समय पर दुरुस्त किया जाता है। इस कुटिया में बिजली-पानी का कोई इंतजाम नहीं है। मासिक धर्म के समय इसमें रहने वाली महिलाओं को खाना-पीना घर से लाकर रख दिया जाता है। बताते हैं कि 2 साल पहले तत्कालीन कलेक्टर भीम सिंह ने गांव आकर इस कुप्रथा के खिलाफ लोगों में अलख जगाई थी। इस दिशा में महिला एवं बाल विकास विभाग ने भी पहल की थी, लेकिन स्थिति जस की तस है। मौजूदा कलेक्टर टीके वर्मा कहते हैं कि फिर से गांव में टीम भेजी जाएगी।

नेपाल में भी थी ऐसी ही एक प्रथा

नेपाल में भी ऐसी ही कुप्रथा थी। इस पर नेपाली संसद ने 2007 में प्रतिबंध लगाते हुए अपराध घोषित कर दिया था। यहां भी महिलाओं को घर से बाहर झोपड़ी या कच्चे मकानों में रहने को विवश किया जाता था। 2016 में कुप्रथा के दवाब में दो महिलाओं की मौत के बाद इस पर प्रतिबंध लगाने की मांग उठी थी।

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